Move to Jagran APP

ग्राम-चौपाल : जिस पर विश्वास, उसी ने किया घात

अक्सर देखा जाता है कि जिस पर विश्वास होता है वही आघात पहुंचाता है। ऐसा ही देखने को मिल रहा है राज्य के पशुपालकों के लिए बने विश्वविद्यालय में। सबसे बड़े साहब ने अपनी पहचान के लोगों की टीम बनाई थी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 07:59 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 07:59 AM (IST)
ग्राम-चौपाल : जिस पर विश्वास, उसी ने किया घात

नीरज कुमार, पटना

loksabha election banner

अक्सर देखा जाता है कि जिस पर विश्वास होता है, वही आघात पहुंचाता है। ऐसा ही देखने को मिल रहा है राज्य के पशुपालकों के लिए बने विश्वविद्यालय में। सबसे बड़े साहब ने अपनी पहचान के लोगों की टीम बनाई थी। टीम पर उन्हें काफी भरोसा था, परंतु दो वर्ष में ही हाकिम का विश्वास डोल गया और उन्होंने जिसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी, उसी के खिलाफ जांच बिठानी पड़ी। जांच टीम जब तक रिपोर्ट देती, अधिकारी विश्वविद्यालय छोड़कर फरार हो गए। साहब के टीम बनाते समय ही कई लोगों ने आवाज उठाई थी लेकिन उस समय साहब ने ध्यान नहीं दिया। जब पानी सिर से ऊपर उठ गया, तब उनका ध्यान गया। अब तो काफी देर हो चुकी है और विश्वविद्यालय में भगदड़ मची है। एक के बाद एक अधिकारी विश्वविद्यालय छोड़ भाग रहे हैं। हर अधिकारी भयभीत है कि न जाने कौन, कब फंस जाए?

--------------

मानसून कमजोर, अधिकारी सक्रिय

मौसम विभाग भी केंद्र सरकार का अनोखा विभाग है। अपनी भविष्यवाणी के लिए हमेशा चर्चा में रहता है। यह ऐसा विभाग है, जिसका संबंध हर व्यक्ति से है। विभाग द्वारा की गई भविष्यवाणी सभी के लिए उपयोगी होती है। साथ ही हर व्यक्ति विभाग की भविष्यवाणी का मूल्यांकन करता है। जब भविष्यवाणी गलत साबित होती है तो विभाग की बदनामी भी खूब होती है। अभी हाल में ऐसी ही भविष्यवाणी को लेकर मौसम विभाग की किरकिरी हो रही है। मौसम विभाग बार-बार मानसून की सक्रियता की भविष्यवाणी करता है, लेकिन बारिश होती ही नहीं। दूसरी ओर, शहर में इतनी बारिश होती है कि चारों तरफ जलजमाव हो जाता है और विभाग बताता है कि बारिश हुई ही नहीं। हालांकि मौसम विभाग अपनी गलत भविष्यवाणी का ठीकरा हमेशा संसाधनों के अभाव पर फोड़ता है। लेकिन यह भूल जाता है कि संसाधनों को दूर करना भी उसी की जिम्मेदारी है। उससे लोगों का कोई लेना-देना नहीं है।

----------

कोरोना संकट : साहब ठीक, मैडम बीमार

कोरोना को अच्छा मानें या बुरा, यह एक विचारणीय सवाल है। कुछ लोग इसे एक संकट के रूप में देख रहे हैं, तो कुछ लोगों को लिए कोरोना एक अवसर बनकर आया है। राजधानी स्थित मछुआरों से जुड़े सरकारी कार्यालय में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा। कोरोना के बहाने कार्यालय हमेशा खाली रहता है। जब भी कार्यालय में जाइए, अधिकांश कर्मचारी गायब मिलेंगे। पूछने पर रटारटाया जवाब मिलता है, साहब कोरोना संक्रमण के शिकार हैं। जब पूछा जाता है कि साहब कितने दिन से बीमार हैं तो दबी जुबा से कर्मचारी बताते हैं, साहब ठीक हो गए हैं, लेकिन मैडम बीमार हैं। सरकार द्वारा जून में विभागीय अधिकारियों का स्थानांतरण किया गया था, लेकिन दो माह बाद भी कामकाज अभी पटरी पर नहीं लौटा है। इसका खामियाजा गरीब मत्स्य पालकों को भुगतना पड़ रहा है। वे कार्यालय से बराबर लौट रहे हैं।

-----------

खाल पर भारी पड़ी खाद

कृषि प्रधान राज्य में खाद की जरूरत सभी को पता है। सरकार भी किसानों के हित की बात करती है लेकिन अधिकारियों की लापरवाही सब पर भारी पड़ रही है। अब तक अधिकारी यूरिया को लेकर बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं लेकिन जब जरूरत पड़ी तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। खाद को लेकर जब सरकार सख्त हुई तो अधिकारी अपनी-अपनी खाल बचाने में जुट गए। प्रखंड से लेकर निदेशालय तक हर अधिकारी एक-दूसरे को टोपी पहनाने में लगे हैं। अधिकारियों की मारामारी में किसान पिस रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि वे अपनी समस्या की गुहार किससे लगाएं? खाद मिल नहीं रही है और अधिकारी सुनने को तैयार नहीं। चुनावी मौसम है। सरकार भी सतर्क है कि जल्दी ही किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो इसका भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.