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शिक्षा की अलख जगा रहे गौरव और उनकी टीम

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया..

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 08:59 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 08:59 AM (IST)
शिक्षा की अलख जगा रहे गौरव और उनकी टीम
शिक्षा की अलख जगा रहे गौरव और उनकी टीम

पटना। मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। इस पंक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं गोला रोड निवासी गौरव सिंह। गौरव और उनके दोस्त प्रवीण ने वर्ष 2015 में 'बीइंग सोशल : एक नई शुरुआत' का सफर नई दिल्ली से शुरू किया था। दोनों नौकरी करने के साथ-साथ सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को कौशांबी स्लम के बच्चों को पढ़ाते थे। इस मुहिम में सोशल मीडिया के जरिये लोग जुड़ते गये। संस्था के अध्यक्ष गौरव का 2017 में पटना तबादला हो गया। इन्होंने पटना में भी सोशल मीडिया के जरिये लोगों से संपर्क करना शुरू किया। 2018 में दीघा स्लम में दोबारा शुरुआत हुई। गौरव और उनकी 42 सदस्यीय टीम शनिवार और रविवार को दो घंटे दीघा स्लम के बच्चों को पढ़ाती है। संस्था के तौर पर यह कवायद दिल्ली के साथ ही बेंगलुरु, पुणे, मुंबई और जयपुर तक पहुंच चुकी है। इसमें पांच हजार से अधिक लोग जुड़े हैं। इनमें ज्यादातर निजी नौकरीपेशा और छात्र शामिल हैं। टीम के छह लोग जाते हैं पढ़ाने : गौरव की टीम में यूं तो 42 लोग हैं, लेकिन इनमें से छह लोग ही बारी-बारी स्लम में पढ़ाने जाते हैं। संस्था के वाट्सएप गु्रप 'कला पाठशाला' पर यह तय होता है कि अगले शनिवार को कौन से छह लोग पढ़ाने के लिए जा रहे हैं। पढ़ने वाले बच्चों के तीन समूह बनाये गए हैं। इनमें 5-7 साल, क्लास 2-5 के बच्चे और क्लास 6-9 के बच्चों को अलग-अलग पढ़ाया जाता है। हर समूह को टीम के दो-दो सदस्य पढ़ाते हैं और अगले पांच दिन के लिए होमवर्क देकर जाते हैं। स्टेशनरी आइटम के लिए गौरव अपनी सैलरी का 10-15 फीसद हर महीने लगाते हैं। बाकी सदस्य भी अपनी स्वेच्छा से इसमें सहयोग करते हैं। दीघा स्लम के बच्चों को पढ़ाने वाले में करिश्मा, पुष्कर, अभिषेक, श्वेता, पूजा, त्रिलोक, कोमल, शुभम जैसे कई सक्रिय सदस्य शामिल हैं। कोरोना संक्रमण की वजह से आजकल यह क्लास बंद चल रही है। सोशल मीडिया से भी मिलता है आर्थिक सहयोग : इस टीम के लोग अपने पॉकेट मनी से तो बच्चों को स्टेशनरी उपलब्ध कराते ही हैं, साथ ही किसी कार्यक्रम के आयोजन के लिए सोशल मीडिया से भी मदद लेते हैं। सोशल मीडिया के जरिये अभी तक इस संस्था को 8-10 लाख रुपये की मदद मिल चुकी है।

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