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बालिका गृह यौनशोषण कांड:TISS की रिपोर्ट से सुप्रीम कोर्ट की फटकार तक

बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने अन्‍य 16 शेल्टर होम की जांच भी सीबीआइ को सौप दी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 29 Nov 2018 09:46 AM (IST)Updated: Thu, 29 Nov 2018 04:02 PM (IST)
बालिका गृह यौनशोषण कांड:TISS की रिपोर्ट से सुप्रीम कोर्ट की फटकार तक
बालिका गृह यौनशोषण कांड:TISS की रिपोर्ट से सुप्रीम कोर्ट की फटकार तक

 पटना [काजल]। मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम कांड में 40 बच्चियों के साथ दुष्कर्म के बाद हड़कंप मच गया था। बच्चियों ने रोंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती सुनाई। लेकिन, मामले का खुलासा जिस टाटा इंस्टीचट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) की सोशल ऑडिट रिपोर्ट से हुआ, उसमें मुजफ्फरपुर के अलावा अन्य 16 शेल्टर होम में भी बच्चियों के शोषण की चर्चा है। उन मामलों में महज खानापूरी की गई। जिस मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में कार्रवाई की गई, उसमें पुलिस की मंशा पर सवाल खड़े हुए हैं। मामले ने तूल पकड़ा तो जांच सीबीआइ के हवाले की गई। अब सुप्रीम कोर्ट इसकी मॉनीटरिंग कर रही है। साथ ही केस में लापरवाही बरतने को लेकर कोर्ट ने बिहार सरकार और पुलिस को लगातार फटकारा है। 

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टिस की रिपोर्ट में हुआ था खुलासा

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) मुंबई की 'कोशिश टीम' ने बिहार के शेल्टर होम्स  पर अपनी सोशल ऑडिट रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि किस तरह वहां रहने वाली बच्चियों को प्रताड़ित किया जाता था। उनका यौन शोषण भी होता था। 

रिपोर्ट मिलने के बाद भी बिहार के समाज कल्याण विभाग ने तत्काल कार्रवाई नहीं की। बानगी ये कि मार्च में मिली रिपोर्ट पर कार्रवाई करने का आदेश मई के अंतिम सप्ताह में दिया गया।

विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में टिस की रिपोर्ट को एजेंडे में शामिल किया गया था। लेकिन इसपर इतनी ही चर्चा हुई कि रिपोर्ट में बताई गई कमियों को दूर किया जाए। शेल्टर होम में हुए अपराध को लेकर एफआइआर दर्ज करने की बात नहीं कही गई।

विपक्ष ने मामले की सख्ती से जांच करने की मांग की

जब मामले ने तूल पकड़ा तो विभाग ने सभी जिलों के सहायक निदेशक (बाल संरक्षण इकाई) को एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद ब्रजेश ठाकुर के संरक्षण में चलनेवाले मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के खिलाफ 29 मई को एफआइआर दर्ज की गई। विपक्ष ने इस मामले पर सरकार को घेरा। लेकिन अन्य शेल्टर होम के मामलों में कार्रवाई सवालों के घेरे में ही रही है। 

रोंगटे खड़े करने वाले थे बच्चियों के बयान

ब्रजेश ठाकुर के शेल्टर होम से निकाली गईं बच्चियों ने पॉक्सो कोर्ट के मजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दिए, वे रोंगटे खड़े कर देते हैं। बच्चियों ने कहा कि उन्हें रोज पीटा जाता था, नशीली दवाइयां दी जाती थीं और उनसे दुष्कर्म  किया जाता था। एक बच्ची ने ब्रजेश ठाकुर की तस्वीर की शिनाख्त की और कहा कि होम में उसे ‘हंटरवाला अंकल’ कहा जाता था। उक्त बच्ची ने कहा, ‘वह जब कमरे में दाखिल होता तो रूह कांप जाती थी। कुछ बच्चियों ने यह भी बताया कि जब वे विरोध करती थीं, तो उन्हें कई दिनों तक भूखा रखा जाता था। कुछ बच्चियों को रात को बाहर ले जाया जाता था। रात के अंधेरे में आनेवाले बाहरी लोगों के नाम बच्चियों को नहीं मालूम, मगर उनकी दरिंदगी की दास्तां  उन्होंने सुनाई। बच्चियां उनकी शिनाख्त ‘तोंद वाले अंकल’, ‘मूंछ वाले अंकल’ और ‘नेताजी’ के रूप में करती थीं। बच्चियों की मानें तो शेल्टर होम की बच्चियों की हत्याएं तक की गईं। 

ब्रजेश ठाकुर की खुलती गई पोल

जांच शुरू हुई तो ब्रजेश ठाकुर की करतूतों का धीरे-धीरे पर्दाफाश होता चला गया। उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाद पता चला कि शेल्टर होम चलाने के बदले बिहार सरकार से ब्रजेश ठाकुर अवैध तरीके से करोड़ों रुपये लेता था। ब्रजेश की पहुंच बड़े अधिकारियों और नेताओं तक थी। वह अवैध तरीके से एनजीओ के नाम पर सरकारी फंड लेता था। अपने रसूख के बल पर उसने करोड़ों की संपत्ति बना ली थी। यह ब्रजेश का रसूख ही था कि बीते पांच अप्रैल को टिस की रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को मिल जाने के आने के बाद भी 17 अप्रैल को उसे 25 लाख रुपये का एक और फंड आवंटित किया गया। मामले की एफआइआर दर्ज होने के बाद भी ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ को पटना में भिक्षुक गृह का टेंडर दे दिया गया।  हालांकि, इसपर किरकिरी हुई तो ब्रजेश के एनजीओ को ब्लैह लिस्टेड किया गया, टेंडर भी रद किया गया। 

मधु के सहारे टेंडर लेता था ब्रजेश

ब्रजेश ठाकुर के धंधे में मुख्य कर्ता-धर्ता मधु थी। वह देह व्यापार से जुड़ी रही थी। सामाजिक जीवन में साफ-सुथरी छवि रहे, इसके लिए वह संस्था के कार्यक्रमों में कार्यकर्ता की हैसियत से काम करती थी। ब्रजेश ने उसे ‘वामा शक्ति वाहिनी’ की कर्ता-धर्ता बनाया था। उसका उपयोग अधिकारियों को अपने पाले में लेकर टेंडर हासिल करने में भी किया जाता था। ब्रजेश की इस राजदार से फिलहाल सीबीआइ पूछताछ कर रही है। 

ब्रजेश ने लगा रखे थे समाजसेवी व पत्रकार के चेहरे

ब्रजेश ठाकुर व उसके गुर्गों ने कई चेहरे लगा रखे थे। बाहरी दुनिया में समाजसेवी व पत्रकार के चेहरे लगाकर उसने शराफत की चादर ओढ़ रखी थी। ब्रजेश अपने को अखबार का संपादक व एक न्यूज एजेंसी का रिपोर्टर बताकर सरकारी अधिकारियों पर धौंस भी जमाता था। ब्रजेश ठाकुर के अखबारों (कमल, हालात-ए-बिहार और न्यूज नेक्स्ट) के प्रसार तो बहुत कम थे, लेकिन सरकारी विज्ञापन नियमित मिलते थे। साथ ही प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो के मान्यत प्राप्त पत्रकारों में ब्रजेश ठाकुर का नाम भी शामिल था। उसकी पहुंच की वजह से ही इस मामले में पुलिस ने उतनी गंभीरता नहीं दिखाई, जितनी जरूरी थी।

संदेह के घेरे में रही पुलिस और सरकार की कार्यशैली

ब्रजेश के शेल्टर होम मामले की जांच के क्रम में सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार को बुधवार को फिर फटकार लगाई। साथ ही उसने बिहार पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस सही से जांच करती तो सीबीआइ जांच की नौबत ही नहीं आती। इसके पहले भी कोर्ट कई अवसरों पर बिहार सरकार को फटकार लगा चुकी है। स्पंष्ट है कि इस मामले में पहले दिन से ही समाज कल्याण विभाग व पुलिस की कार्यशैली कटघरे में हैं। 

समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को देना पड़ा था इस्तीफा

ब्रजेश ठाकुर पर समाज कल्याण विभाग की महरबानी के पीछे उसका रसूख था। रसूख इसलिए कि तत्कालीन विभागीय मंत्री मंजू वर्मा व उनके पति से उसके दोस्ताना संबंध थे। जांच के दौरान मंजू वर्मा के पति के ब्रजेश के शेल्टर होम में लड़कियों के पास जाने की बात भी चर्चा में आई। 

इस मामले में सरकार की किरकिरी होने पर मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआइ जांच की जद में वे भी आ गईं हैं। इसी जांच के दौरान बेगूसराय स्थित उनके घर पर छापेमारी के दौरान अवैध हथियार व कारतूस मिलने पर मंजू वर्मा व उनके पति के खिलाफ आर्म्स एक्ट का मामला दर्ज हो गया। इसमें दोनों जेल में हैं। इस मामले में भी बिहार पुलिस मंजू वर्मा को गिरफ्तार नहीं कर सकी। सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दबाव में पहले उसके पति ने फिर मंजू वर्मा ने खुद सरेंडर किया। 

ताजा घटनाक्रम से सकते में सरकार 

पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठे तो राज्य  सरकार ने मामले की सीबीआइ जांच की अनुशंसा कर दी। फिर, इसकी मॉनीटरिंग सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाथों में ले ली। ताजा घटनाक्रम की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से राज्य  सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने टिस की रिपोर्ट में शामिल शेष 16 शेल्टर होम की जांच का आदेश भी सीबीआइ को दे दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और बिहार पुलिस को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि अगर पुलिस सही कार्रवाई करती तो सीबीआइ जांच की नौबत ही नहीं आती। कोर्ट ने इस मामले को भयावह और दिल दहला देने वाला बताया है। सरकार और पुलिस की कार्यशैली और जांच पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि बच्चियों के साथ इतनी बड़ी अमानवीय घटना हो गई और आपने कहा कि कुछ हुआ ही नहीं, ये कैसी जांच हो रही है? साथ ही कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच कर रहे किसी भी अधिकारी का तबादला नहीं किया जाएगा। 

बड़ा सवाल: कौन है असली गुनाहगार 

बहरहाल, रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की जांच जारी है। टिस की रिपोर्ट से सीबीआइ व सुप्रीम कोर्ट तक इसने लंबा सफर तय किया है, सफर जारी है। इस बीच बड़ा सवाल यह है कि आखिर बच्चियों के शोषण का असली गुनाहगार कौन है- ब्रजेश या वह सिस्टम, जिसमें ऐसे लोग पैदा होते है?


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