Move to Jagran APP

कोर्ट में पिता थे चपरासी, जज की कोठी देख बेटी ने जिद ठानी, सपने को बना दिया हकीकत

पिता कोर्ट में चपरासी थे। पिता को जज के सामने जी हुजूरी करता देख छोटी-सी बच्ची को बुरा लगता था। वो बचपन से ही जज बनने का सपना देखती रही। कड़े संघर्ष के बाद वो पूरा हुआ। जानिए...

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 11:38 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 09:40 PM (IST)
कोर्ट में पिता थे चपरासी, जज की कोठी देख बेटी ने जिद ठानी, सपने को बना दिया हकीकत
कोर्ट में पिता थे चपरासी, जज की कोठी देख बेटी ने जिद ठानी, सपने को बना दिया हकीकत

पटना, जेएनएन। बचपन में अपने पिता को अदालत में चपरासी का काम करते देखा था। पिता को दिन भर जज साहब के पास खड़े रहते देखा था। जज की कोठी और उनको मिलने वाला सम्मान देखकर अपने सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाली अर्चना ने बचपन में ही ठान लिया था कि एक दिन मैं भी जज बनूंगी और अपने पिता का नाम रौशन करूंगी।

loksabha election banner

बचपन की जिद को बदला हकीकत में 

बचपन की अपनी इस जिद को एक कोर्ट में चपरासी का काम करने वाले पिता की बेटी अर्चना ने हकीकत में बदल दिया है। उस लड़की ने बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा पास  कर ली है और जल्द ही जज बन जाएगी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है, लेकिन उसे बस एक ही अफसोस है कि उसकी कामयाबी देखने के लिए जज की कोठी में रहने के लिए उसके पिता इस दुनिया में नहीं हैं।  

कल घर में थी गरीबी, आज है जज बिटिया  

मूल रूप से पटना के धनरूआ थाना अंतर्गत मानिक बिगहा गांव की अर्चना पटना के कंकड़बाग में रहती थीं और आज वे अपने गांव में 'जज बिटिया' के नाम से मशहूर हो रही हैं। पटना के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, शास्त्रीनगर से बारहवीं पास अर्चना ने पटना यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी ऑनर्स किया है।

वो बताती हैं कि ग्रैजुएशन की पढ़ाई करते समय साल 2005 में उनके पिता गौरीनंदन प्रसाद की असामयिक मृत्यु हो गई और छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनपर ही आ गई। उन्होंने कंप्यूटर टीचर की जॉब कर ली। घरवालों के दबाव पर  21 साल में ही मेरी शादी कर दी गई तो मैंने भी ख़ुद को समझा लिया कि मेरी पढ़ाई का अब अंत हो गया है।"

पति ने दिया साथ, ख्वाब बने हकीकत 

लेकिन, उनके पति राजीव रंजन ने उनके सपनों को पूरा करने में अर्चना की मदद की और शादी के दो साल बाद साल 2008 में पुणे विश्वविद्यालय में अर्चना का एलएलबी कोर्स में दाखिला करा दिया। उसके बाद रिश्तेदार ताना मारते थे और कहते थे कि मेरे पति गोइठा में घी सुखा रहे हैं। उस समय मेरे सामने अंग्रेज़ी में पढ़ाई करने की चुनौती तो थी ही, मैं उस वक्त बिहार से पहली बार बाहर निकली थी।"

कानून की पढ़ाई पूरी कर जब वे वापस पटना लौटीं तो उन्हें पता चला कि वो गर्भवती हैं। फिर साल 2012 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ गई थी। लेकिन अर्चना ने एक मां की जिम्मेदारी को निभाते हुए अपने सपनों को पूरा करने की जिद को भी पाले रखा। 

हर काम में कठिनाइयां आती हैं, हौसला नहीं छोड़ना चाहिए  

अर्चना बताती हैं कि वो अपने 5 माह के बच्चे और अपनी मां के साथ आगे की पढ़ाई और तैयारी के लिए दिल्ली चली गईं। यहां उन्होंने एलएलएम की पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की और साथ ही अपनी आजीविका के लिए कोचिंग भी चलाया।

वह कहती हैं कि हर काम में कठिनाइयां आती हैं परंतु हौसला नहीं छोड़ना चाहिए और अपनी जिद पूरी करनी चाहिए। अर्चना बताती हैं कि उनके पति राजीव रंजन पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं और उन्होंने हर वक्त उनका साथ दिया।

अर्चना कहती हैं, "कल जो लोग मुझे तरह-तरह के ताने देते थे, आज इस सफलता के बाद बधाई दे रहे हैं। मुझे इस बात की खुशी है। बस अफसोस इस बात का है कि आज मेरे पिता मेरी कामयाबी देखने के लिए साथ नहीं है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.