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बिहार में किसानों ने भी बदला ट्रेंड, सरकार नहीं, अच्छी हैं प्राइवेट कंपनियां, जानिए वजह

बिहार में सरकार के उदासीन रवैये और पैक्स की झंझटों से परेशान किसान इस बार डायरेक्ट गेहूं प्राइवेट कंपनियों को बेच रहे हैं। उन्हें इसमें आसानी हो रही है और घर बैठे पैसे मिल जा रहे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 08 May 2020 01:19 PM (IST)Updated: Fri, 08 May 2020 01:19 PM (IST)
बिहार में किसानों ने भी बदला ट्रेंड, सरकार नहीं, अच्छी हैं प्राइवेट कंपनियां, जानिए वजह
बिहार में किसानों ने भी बदला ट्रेंड, सरकार नहीं, अच्छी हैं प्राइवेट कंपनियां, जानिए वजह

अरविंद शर्मा, पटना। बिहार में गेहूं खरीद में इस बार नया ट्रेंड देखा जा रहा है। सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद की रफ्तार पिछली बार की तरह ही सुस्त है, जबकि नामी-गिरामी कंपनियों ने अबतक अच्छी-खासी खरीदारी कर ली है। सरकारी एजेंसियों की तुलना में लगभग सौ गुना से भी ज्यादा। किसानों को आसानी हो रही है। पैक्सों के पचड़े से निजात मिल रही है और घर बैठे ही गेहूं बिक जा रहा है।

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सरकारी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते किसान

सरकारी समर्थन मूल्य पर राज्य में गेहूं की खरीद 15 अप्रैल से शुरू हो गई है, किंतु ताजा आंकड़े हैरान करने वाले हैं। अभी तक सिर्फ 440 किसानों से महज दो हजार तीन सौ टन की सरकारी खरीदारी हो पाई है। दूसरी तरफ प्राइवेट कंपनियों ने दो लाख 40 हजार मीट्रिक टन की खरीदारी कर ली है। इस आंकड़े का बढऩा तय है, क्योंकि राज्य में जून तक गेहूं की बिक्री होती है। हालांकि सरकार ने 15 जुलाई तक तिथि निर्धारित कर रखी है। गेहूं का इस्तेमाल कंपनियां आटे के अलावा ब्रेड, बिस्किट एवं पास्ता बनाने में करती हैं।

किसानों को राहत के लिए राज्य सरकार ने इस बार शीर्ष स्तर पर पहल की है। जिला स्तर पर निगरानी समितियां बनाई गई हैं, जो गेहूं की प्राइवेट खरीद की निगरानी करती हैं और प्रतिदिन का ब्योरा सरकार को देती हैं।

सरकार की सुस्ती, प्राइवेट कंपनियां उठा रहीं फायदा

रिपोर्ट के मुताबिक आशीर्वाद आटा बनाने वाली कंपनी ITC राज्य में पहले से ही खरीदारी कर रही है। गेहूं खरीदने वाली यह सबसे बड़ी कंपनी है। इस बार Fortune आटा बनाने वाले अडानी समूह ने भी दखल दिया है। स्थानीय स्तर की कई कंपनियों का भी शेयर बढ़ा है। इनमें आटा और सत्तू का काम करने वाली पटना सिटी की त्रिकमल कंपनी एवं आइआइटीयन शशांक की Farm and Farmers जैसी कंपनियां भी बड़े खरीदारों को चुनौती दे रही हैं। शशांक ने समस्तीपुर, वैशाली और चंपारण से अच्छी खरीदारी की है।

पैक्सों पर नहीं, बाजार पर भरोसा

गेहूं के सरकारी समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य में खास फर्क नहीं होने के चलते प्राइवेट कंपनियों का हस्तक्षेप बढ़ा है। किसानों को घर बैठे ही 18-19 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर मिल जा रही है। भुगतान भी तुरंत हो जाता है। सरकारी दर 1925 रुपये है। ऐसे में किसान पैक्सों के फेर में नहीं पडऩा चाहते।

सासाराम जिले के चेनारी के किसान सत्येंद्र तिवारी का गेहूं कंपनी वाले 1850 रुपये क्विंटल की दर से घर से ही ले गए। फिर उन्हें पैक्सों के पास जाने की क्या जरूरत? जाहिर है, राज्य सरकार ने इसबार सात लाख टन गेहूं खरीदारी का लक्ष्य तय किया है, लेकिन किसान फिर भी दिलचस्पी नहीं ले रहे।


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