धान की उन्नत किस्मों से तकदीर बदल रहे बिहार के किसान, 100 रुपए तक कीमत और विदेश तक है मांग
Paddy Farming in Bihar बिहार में किस्म-किस्म के धान चावल की खुशबू विदेश तक परंपरागत किस्म के साथ-साथ सुगंधित धान की खेती पर किसानों का जोर बढ़ रही मांग कस्तूरी चावल सौ से डेढ़ सौ रुपये किलो तक
पटना/भागलपुर/भभुआ, नीरज कुमार/नवनीत मिश्र/रवींद्र वाजपेयी। धान बिहार की प्रमुख फसल है, जिसकी खेती में अब बड़े पैमाने पर बदलाव है। धान की परंपरागत किस्में तो हैं ही, इससे अलग सुगंधित किस्मों की ओर भी आकर्षण तेजी से बढ़ा है। यही कारण है कि अलग-अलग स्वाद के कारण न सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी यहां के उत्पाद की मांग बढ़ी है। इससे तैयार चावल की मांग देश के महानगरों तक है। बिहार के किसान अब धान की परंपरागत किस्मों को छोड़कर कामयाबी की नई इबारत लिखने में लग गए हैं।
बिहार राज्य बीज निगम के मार्केटिंग हेड रविंद्र कुमार वर्मा बताते हैं कि राज्य के मध्य हिस्से यानी मगध क्षेत्र में बासमती एवं कस्तूरी प्रभेद की खेती खूब की जा रही है। यह उन्नत किस्म का धान है। मगध क्षेत्र में करीब 10 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती की जा रही है। उत्पादन प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल के करीब है। बासमती और कस्तूरी चावल की कीमत बाजार में 100-150 रुपये किलो तक है।
रोहतास में सोनाचूर, चंपारण में मिरचइया
कैमूर और रोहतास में मुख्य रूप से सोनाचूर धान का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी खेती करीब 20 हजार हेक्टेयर में की जा रही है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर करीब 40 क्विंटल है। यह उन्न्त किस्म का धान है। वहीं, चंपारण के खेतों में मिरचइया की अच्छी पैदावार हो रही है। मिरचइया धान की खेती फिलहाल दो हजार हेक्टेयर में की जा रही है। इसका उत्पादन 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो रहा है।
बढ़ा है कतरनी का बाजार
पटना के नौबतपुर स्थित नगवां के किसान अजय कुमार कहते हैं कि बासमती की मांग तेजी से बढ़ी है। पहले शौकिया तौर पर एक हेक्टेयर में खेती करते थे, अब पांच हेक्टेयर में कर रहे हैं। बिहटा के किसान गिरेंद्र शर्मा कहते हैं कि धान की उन्नत किस्म का बाजार हमेशा बना हुआ है, जबकि सामान्य धान बेचने में परेशानी होती है। भागलपुर के किसान अलीम अंसारी कहते हैं कि कतरनी का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। पिछले दस सालों में इसमें लगभग 30 फीसद की वृद्धि हुई है।
भागलपुर के कतरनी की मांग अमेरिका तक
भागलपुर के कतरनी चावल की मांग विदेश में भी है। यह चावल नेपाल, भूटान और मालदीव के साथी ही स्विट्जरलैंड, अमेरिका और सऊदी अरब तक जाने लगा है। अगले साल तक 500 टन चावल निर्यात की योजना पर काम हो रहा है। वहीं कैमूर जिले के मोकरी गांव में उपजने वाले गोविंद भोग चावल की भी खूब मांग है। यही चावल अयोध्या के कुछ मंदिरों में भोग लगाने में भी इस्तेमाल होता है।