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शिक्षा नीति में आदर, अनुशासन और व्यवहार पर ध्यान देना जरूरी: तुषार गांधी Patna News

महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी शनिवार को गांधी और आज की शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने पटना में थे।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 09:10 AM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 09:10 AM (IST)
शिक्षा नीति में आदर, अनुशासन और व्यवहार पर ध्यान देना जरूरी: तुषार गांधी Patna News
शिक्षा नीति में आदर, अनुशासन और व्यवहार पर ध्यान देना जरूरी: तुषार गांधी Patna News

पटना, जेएनएन। यहां कितने शिक्षक हैं जो स्कूल के बाहर बच्चों के माता-पिता से बात भी करते हैं? कितने अभिभावक ऐसे हैं जिन्हें अपने बच्चों के स्कूल में व्यवहार की चिंता होती है। हमारी शिक्षा नीति में आदर, अनुशासन और व्यवहार के बारे में कम ध्यान है। इसकी बजाय मा‌र्क्स लाने की होड़ में बच्चों को शामिल कर दिया गया है। बुनियादी और नैतिक शिक्षा में गिरावट के कारण बच्चे गुस्सैल हो रहे हैं और इससे किसी को कोई मतलब नहीं रह गया है।

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उक्त बातें महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने शनिवार को रत्‍‌न सागर प्रकाशन की ओर से आयोजित 'गांधी और आज की शिक्षा' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा कि मोबाइल और इंटरनेट में अच्छा और बुरा दोनों है। बच्चों को मालूम है कि उनके माता-पिता और शिक्षक क्या देख रहे हैं। जरूरत है कि बच्चों को धार्मिक और सच्ची शिक्षा दी जाए ताकि अच्छाई को ग्रहण करें।

आज मेरे मोबाइल पर भी बुरी चीजें अधिक आती हैं। यह आपकी ताकत पर निर्भर करता है कि अच्छी चीजों से सीख सकें। आज पांचवीं-छठी कक्षा से बच्चे तनाव में आ रहे हैं। उसके गुस्से से शिक्षक को कोई मतलब नहीं। माता-पिता कहते हैं कि अपना फ्रस्ट्रेशन स्कूल में निकालो। ऐसे ही बच्चे 12वीं कक्षा तक आते-आते आत्महत्या कर लेते हैं। बच्चों का पोस्टमॉर्टम नहीं बल्कि डाइग्नोज कर उसके तेवर को रचनात्मक कार्य की ओर ले जाने की जरूरत है। शिक्षा व्यवस्था में ज्ञान हासिल करना जरूरी करना है।

आज एक मामूली चूक से हमारा चंद्रयान सफल नहीं हुआ। कोई जरूरी नहीं कि इंजीनियर ही कंप्यूटर चिप का निर्माण कर सकता है। बापू की बुनियादी शिक्षा श्रम, उद्यम, व्यवहार, सामाजिक सरोकार और रोजगार आधारित थी। बिहार में बापू के चंपारण और भितिहरवा आने के सवाल पर कहा कि स्वर्गीय राजकुमार शुक्ल की जिद के कारण उन्हें बिहार आना पड़ा था।

चंपारण और भितिहरवा जाकर देखा है। वहां के 150 वर्षो बाद भी जो स्थिति है, उसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा। इससे पूर्व प्रो. शंकर प्रसाद ने कहा कि शहरी जीवनशैली में शिक्षा का मूल सिद्धांत भटक गया है। स्कूलों और घरों में नैतिक मूल्यों की शिक्षा की कमी हो गई है। बच्चों को मा‌र्क्स लाने की होड़ में धकेल दिया गया है। बापू की बुनियादी शिक्षा एक श्रमिक और सफाईकर्मी को भी आदर भाव देने की थी।


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