बिहारः बारिश के पानी से उगे नालंदा के इस पेड़ में हर कोई खोंसता है सिक्का, जानें क्या है कारण
राजगीर की धरती और गर्म जलस्रोतों में ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों में भी ईश्वर विराजते हैं। बड़ा उदाहरण राजगीर की रत्नागिरी पहाड़ी के शिखर पर विश्व शांति स्तूप के पीछे जापानी बौद्ध मंदिर के ठीक सामने स्वत उग आया बहेड़ा का पेड़ है। जानें क्या है इसका इतिहास।
बिहारशरीफ। सुनने में अटपटा लगेगा, परंतु यह लोकआस्था का विषय है। राजगीर की धरती और गर्म जलस्रोतों में ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों में भी ईश्वर विराजते हैं। बड़ा उदाहरण राजगीर की रत्नागिरी पहाड़ी के शिखर पर विश्व शांति स्तूप के पीछे जापानी बौद्ध मंदिर के ठीक सामने स्वत: उग आया बहेड़ा का पेड़ है। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध के दर्शन के बाद इस पेड़ के तने में सिक्का खोंसकर मनोकामना पूरी करने का आग्रह करते हैं। यह परम्परा कब और किसने शुरू की, इसके बारे में किसी को ठीक-ठीक पता नहीं।
और मनोकामना की जाने लगी...
दरअसल, पत्थर की कंदराओं में जमी थोड़ी सी मिट्टी और वर्षा के जल के सहारे यह पेड़ स्वत: उग आया। इसके अंकुर भी संभवत: किसी पक्षी की विष्टा से हुए होंगे। यानी औषधीय गुण वाला यह पेड़ पूर्णत: प्रकृति प्रदत्त है। मंदिर के पुजारी का तर्क है कि हिन्दु और बौद्ध दोनों धर्म प्रकृति पूजा करते हैं। यही वजह है कि पत्थर के सीने पर उग आए पेड़ को किसी ने ईश्वरीय देन माना होगा। तभी से इस पेड़ के सामने मनोकामना की जाने लगी होगी। चढ़ावे के तौर पर इसके तने में सिक्के खोंसे जाने लगे होंगे।
जबरन नहीं खोंसे जाने चाहिए सिक्के
इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डॉ. वृजेन्दु का कहना है कि पेड़-पौधों की पूजा करना तो ठीक है, परंतु उसके तने में जबरन सिक्के नहीं खोंसे जाने चाहिए। इससे उन्हें नुकसान होता है। अगर चढ़ावा ही चढ़ाना है तो इर्द-गिर्द रख दें। उन्होंने बताया कि बहेड़ा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसका तना मुलायम होता है, इसी कारण सिक्के धंस जाया करते हैं। बहरहाल, जापानी बौद्ध मंदिर के सामने चोटी के नीचे तलहटी में आयुध फैक्ट्री की ओर झुके इस पेड़ की स्थिति यह है कि यह सिक्कों से पूरी तरह भर चुका है। सूर्योदय व सूर्यास्त के वक्त जब इस पेड़ पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो सिक्के इस कदर जगमगा उठते हैं, मानों बहेड़ा के पेड़ का तना ही चमक रहा हो।