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जेपी आंदोलन में फणीश्‍वरनाथ रेणु पर भी पड़ी थी पटना पुलिस की लाठियां, लौटा दिया था पद्मश्री सम्‍मान

जेपी आंदोलन के दौरान रेणु पर भी पड़े थे खून के छींटे जेपी पर हुए लाठी के प्रहार के बाद सरकार के रवैए से नाराज हो लौटाया था पद्मश्री पुरस्कार व पेंशन डाक बंगला चौराहे पर अनशन के दौरान कहा था जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 08:35 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 08:35 AM (IST)
जेपी आंदोलन में फणीश्‍वरनाथ रेणु पर भी पड़ी थी पटना पुलिस की लाठियां, लौटा दिया था पद्मश्री सम्‍मान
महान साहित्‍यकार फणीश्‍वर नाथ रेणु। फाइल फोटो

पटना, प्रभात रंजन। फणीश्वर नाथ रेणु शांत चित्त से रहने वाले रचनाकार थे, लेकिन स्थितियों के मूकदर्शक बने रहने वाले नहीं थे। उन्होंने एक जगह स्वीकार किया है कि एक हाहाकार चल रहा है, बाहर और भीतर। यह हाहाकार ही एक आंदोलन था। उसी के वशीभूत होकर उनका जीवन चलता था।

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आंदोलनजीवी था रेणु का व्‍यक्तित्‍व

रेणु पर शोध करने वाले रचनाकार भारत यायावर ने बताया, वे बहुत कम उम्र से ही जन आंदोलन में भाग लेते रहे थे। धीरे-धीरे उनका व्यक्तित्व ही आंदोलनजीवी हो गया था। अपनी कमजोर काया के बावजूद वे सतत महसूस करते थे कि उनका जीवन 'दिव्य प्रतिवाद' से ही संचालित होता है। रेणु अनेक विधाओं में लिखते रहे थे। वे जीवन स्थितियों के मूक दर्शक नहीं, बल्कि जीवन संग्राम में उतरकर लिखते रहे। हिंदी साहित्य में 'नेपाली क्रांति कथा' जैसी कृति उनकी अनमोल रचना रही।

स्‍वतंत्रता आंदोलन में भी रही भूमिका

भारत यायावर ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही जेपी आंदोलन में भी उनकी अहम भूमिका रही। संपूर्ण क्रांति के दौरान धर्मवीर भारती की कविता 'मुनादी' से सभी वाकिफ हैं, लेकिन दूसरी ओर रेणु ने उस आंदोलन के दौरान बांग्ला भाषा में एक कवितानुमा पत्र अपने मित्र समीर राय चौधरी को लिखा था। बांग्ला भाषा में लिखित कविता का अनुवाद पंकज मित्र ने किया है। पंकज मित्र हिंदी के महत्वपूर्ण कहानीकार हैं।

पुलिस की लाठियों से लहूलुहान हो गए थे रेणु

बांग्ला से हिंदी में रेणु की रूपातंरित कविता 'भाई समीर! तुम्हारे साथ बात-मुलाकात के बाद, तुम्हारे चले जाने के बाद, सारा पटना शहर घेर दिया गया बांसों से, जैसे बांस का एक विशाल पिंजरा या किला नहीं, इंद्रजाल बनाया गया हो, बांध दिया आकाश पाताल, नदी झरने-पहाड़ खेत मैदान। फिर भी आए लोग, कामयाब हुए थे आने में, आकाश-पाताल गुंजाते हुए, तुम प्रतिनिधि नहीं रहे हमारे, विधायकों इस्तीफा दो।' भारत यायावर ने बताया कि आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण के साथ रेणु को भी लाठियां पड़ी थीं। वे लहूलुहान हो गए थे।

सरकार से नाराज होकर लौटा दिया था पद्मश्री सम्‍मान

वहीं, बिहार विधान परिषद के सदस्य व पटना विवि के पूर्व प्राध्यापक डॉ. रामवचन राय ने कहा, रेणु और जेपी का संबंध 1942 के आंदोलन से रहा। वे जेपी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। जब आंदोलन के दौरान पटना के इनकम टैक्स गोलंबर पर जेपी को लाठी लगी थी तो जीप पर रेणु भी बैठे थे। उनके खून के छींटे रेणु पर भी पड़े थे। जेपी पर लाठी का प्रहार और सरकार के तानाशाही रवैये से दुखी होकर रेणु ने भारत सरकार को अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने के साथ बिहार सरकार से मिलने वाली मासिक पेंशन भी लौटा दी थी।

जो तटस्‍थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध

17 अप्रैल 1974 को रेणुजी अपने कुछ रचनाकार, मूर्तिकार व पत्रकार मित्रों के साथ डाक बंगला चौराहे पर सुबह से शाम तक अनशन पर बैठे थे। उन्होंने अनशन के दौरान ही कहा था कि 'जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध।' अनशन समाप्त होने पर जनसमूह के बीच रेणु ने अपनी कविता भी सुनाई थी।


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