Move to Jagran APP

Diwali Celebration: ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग में 14 नवंबर को मनेगा दीपोत्सव, जानिए शुभ मुहूर्त व कैसे करें पूजा

Diwali Celebration हिंदू धर्मावलंबियों के लिए ये पूरा महीना व्रत उपवास पर्व और त्‍योहारों का है। कार्तिक स्‍नान का सिलसिला शुरू हो चुका है। इसी महीने में 13 तारीख को धनतेरस और 14 को दिवाली मनाई जाएगी। जानिए किस तरह ईश्‍वर की उपासना करने से आपके घर समृद्ध‍ि आएगी।

By Shubh NpathakEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 06:51 AM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 06:51 AM (IST)
Diwali Celebration: ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग में 14 नवंबर को मनेगा दीपोत्सव, जानिए शुभ मुहूर्त व कैसे करें पूजा
दिवाली की तैयारी में जुट गया है अपना शहर।

जेएनएन, पटना : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस साल दिवाली 14 नवंबर दिन शनिवार को मनाई जाएगी। वैसे तो दिवाली का पर्व पांच दिनों तक चलता है। यह पर्व धनतेरस के दिन से आरंभ होकर भैया दूज पर खत्म होता है। पांच दिवसीय महापर्व में सबसे पहले धनतेरस, दिवाली, नरक चतुर्थी, गोवर्धन पूजा और भैया दूज आता है। इस बार अधिकमास लगने के कारण दिवाली करीब एक महीने की देरी से आ रही है।

loksabha election banner

लक्ष्मी-गणेश के साथ ही कुबेर व सरस्वती की भी करें पूजा

दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ कुबेर व सरस्वती की पूजा की जाती है। ज्योतिष आचार्य पीके युग ने बताया कि 14 नवंबर को अमावस्या तिथि दोपहर दो बजकर 17 मिनट से आरंभ होकर 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 36 बजे तक रहेगा। ऐसे में दीपावली 14 नवंबर को ही मनाया जाएगा। दीपावली पर ग्रह-गोचरों का बेहद शुभ संयोग बना है। पूजन के दौरान प्रदोष काल, अभिजीत मुहूर्त एवं स्थिर लग्न का विशेष महत्व होता है। इसके साथ ही वौघडिय़ा मुहूर्त भी विशेष फलदायी होता है। पंडित राकेश झा ने बताया कि दीपावली के दिन स्वाति, सौभाग्य, सिद्धि व सर्वार्थ सिद्धि योग में माता लक्ष्मी की पूजा की जाएगी। पूजा के दौरान मां को सुगंधित इत्र, कमल पुष्प, कौड़ी, कमलगट्टा अर्पण कर पूजन कर सकते हैं।

पूजन के शुभ मुहूर्त -

स्थिर लग्न -

वृष लग्न - शाम 5.49 बजे से शाम 7.46 बजे तक

सिंह लग्न - मध्यरात्रि 12 बजकर 17 बजे से 2.33 तक

वृश्चिक लग्न - सुबह 7 बजकर 9 मिनट से नौ बजकर 26 मिनट तक।

कुंभ लग्न - दोपहर 1.14 बजे से दोपहर 2.44 बजे तक है।

रामायण व महाभारत काल से पूजा की परंपरा 

दीपावली की परंपरा रामायण और महाभारत काल से है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से वापस अयोध्या लौटने और पांडवों के 13 वर्ष के वनवास-अज्ञातवास से लौटने पर लोगों ने दीप जला कर अपनी खुशी जाहिर की थी। स्कंद पुराण, विष्णु पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी के विवाह के उपलक्ष्य में दीपावली का पर्व मनाया जाता हैै।

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा 

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा 13 नवंबर को होगी। पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 45 से शाम 8 बजकर 24 मिनट तक प्रदोष काल एवं वृष लग्न में करना श्रेष्ठ है। धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण के साथ नई वस्तुओं की खरीदारी करने की परंपरा है।

राशि के अनुसार करें खरीदारी -

मेष - सोना, चांदी, बर्तन, गहने, वस्त्र

वृषभ - हीरा, पीतल, चांदी के आभूषण

मिथुन - भूमि, रत्न, सोना, चांदी

कर्क - वाहन, वस्त्र, पीतल के बर्तन

सिंह - इलेक्ट्रानिक समान, हीरा, सोना, चांदी

कन्या - सोना, फर्नीचर, पन्ना

तुला - कॉस्मेटिक सामग्री, आभूषण, हीरे के गहने

वृश्चिक - मकान, सोना, चांदी

धनु - धातु की बनी वस्तुएं, पीले वस्त्र

मकर - रेशमी वस्त्र, सोना, चांदी

कुंभ - वाहन, पुस्तक, मकान, गहने

मीन - पुखराज रत्न, वस्त्र, पीतल के बर्तन

इसके अलावा साबूत धनिया, भगवान गणेश व लक्ष्मी की चांदी या मिट्टी की मूर्ति, कौड़ी, श्रीयंत्र, रेशमी वस्त्र की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.