टूट के बावजूद बिहार में विपक्षी दल की सक्रिय भूमिका में रालोसपा, कर रहा अांदोलन पर आंदोलन
पना के बाद से लेकर अब तक कई टूट होने और कई प्रमुख नेताओं के अलग हो जाने के बावजूद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रदेश में विपक्षी दल की सक्रिय भूमिका निभा रही है।
पटना, एसए शाद। स्थापना के बाद से लेकर अब तक कई टूट होने और कई प्रमुख नेताओं के अलग हो जाने के बावजूद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रदेश में विपक्षी दल की सक्रिय भूमिका निभा रही है। पार्टी लगातार आंदोलनात्मक कार्यक्रम चला रही है और इन कार्यक्रमों के माध्यम से केंद्र एवं राज्य की सरकार पर हमलावर है। 26 दिसंबर से रालोसपा अध्यक्ष एक बार फिर से अपनी 'समझो-समझाओ, देश बचाओ' यात्रा पर हैं।
यह यात्रा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजेंस(एनआरसी) के खिलाफ है। प्रदेश में विपक्षी दलों में राजद और कांग्रेस बड़े दलों में शामिल हैं। रालोसपा के पास फिलहाल न कोई सांसद, विधायक और न ही विधान पार्षद है। फिर भी आंदोलनात्मक कार्यक्रमों में यह इन दोनों दलों से आगे है। वर्तमान यात्रा से पूर्व उपेंद्र कुशवाहा ने शिक्षा में सुधार को लेकर कई यात्राएं कीं। अक्टूबर में राजभवन मार्च के दौरान कुशवाहा सहित कई रालोसपा कार्यकर्ता पुलिस के लाठीचार्ज में जख्मी हुए। 26 नवंबर को उन्होंने शिक्षा में सुधार कार्यक्रम को लेकर आमरण अनशन भी किया जो 30 नवंबर तक जारी रहा।
देखा जाए तो रालोसपा के गठन के दो साल बाद ही पार्टी में टूट हो गई। सांसद अरुण कुमार ने अलग होकर खुद की अपनी पार्टी बना ली। फिर पार्टी के दोनों विधायक एवं एकमात्र विधान पार्षद भी अलग हो गए। वे उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से अलग होने के फैसले के खिलाफ थे। इसी मुद्दे पर पार्टी के एक और सांसद ने भी साथ छोड़ दिया। कई और प्रमुख नेता भी अलग हो गए। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी संसदीय सीट हार गए। कुशवाहा ने कहा कि इतने प्रमुख नेताओं के साथ छोडऩे का असर इस कारण पार्टी पर नहीं पड़ा, क्योंकि कार्यकर्ता उनके साथ हैं। और कार्यकर्ताओं के उनके साथ जुड़े रहने के पीछे की वजह रालोसपा की जनता के मुद्दों से जुड़े रहने की रणनीति है। उन्होंने कहा कि वर्तमान यात्रा के दौरान लोग उनसे पूछ रहे हैं कि क्या एक दो दिन किसी मुद्दे पर आंदोलन करने से कुछ हो जाएगा? यह एक अहम सवाल है।