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एक पिता का एेलान-किसी भी सूरत में देशद्रोही पुत्र मुझे मंजूर नहीं, जानिए क्यों...

एक पिता ने दिल पर पत्थर रखकर एेलान किया कि किसी देशद्रोही या अपराधी से हमें कोई मतलब नहीं रखना है। किसी भी सूरत में देशद्रोही पुत्र मुझे मंजूर नहीं है। जानिए उसने एेसा क्यों कहा...

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 04 Nov 2019 11:04 AM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 10:15 PM (IST)
एक पिता का एेलान-किसी भी सूरत में देशद्रोही पुत्र मुझे मंजूर नहीं, जानिए क्यों...
एक पिता का एेलान-किसी भी सूरत में देशद्रोही पुत्र मुझे मंजूर नहीं, जानिए क्यों...

मधुबनी, जेएनएन। उत्तरप्रदेश के रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हुए आतंकी हमले में फांसी की सजा पाने वालों में जिले के सकरी थाना क्षेत्र के गंधवारी गांव निवासी मोहम्मद शब्बीर अहमद का बड़ा पुत्र मोहम्मद सबाउद्दीन भी शामिल है। पिता ने कहा कि जब पहली बार पता चला कि सबाउद्दीन आतंकी हमलों का दोषी है तो बहुत दुख हुआ। लेकिन, उसी समय निर्णय ले लिया था कि कभी उससे मिलने नहीं जाएंगे। कोई पैरवी या मुकदमा में बचाव नहीं करेंगे।

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यदि वह निर्दोष साबित होकर वापस आएगा तभी मेरा बेटा कहलाएगा। देशद्रोही या अपराधी से हमें कोई मतलब नहीं रखना है। सजल नेत्रों से पिता ने कहा कि लगता था कि वह निर्दोष है। बरी होकर वापस आएगा । लेकिन, उसे तो फांसी की सजा मिली। इससे परिवार सदमे में हैं। सबाउद्दीन की मां बेसुध सी है। दोनों बहनों की शादी हो चुकी है। वे ससुराल में हैं। दोनों छोटा भाई पढ़ाई खत्म कर दूसरे शहर में नौकरी कर रहा है। घर पर वृद्ध माता-पिता ही हैं।

रामपुर की घटना से बदनामी हुई 

मुखिया अशोक राम, ग्रामीण विमल कुमार ठाकुर, मो. कमरे आलम व मो. गन्नी समेत ने कहा कि एक अच्छे परिवार का युवक इस तरह की घटना को अंजाम देगा, सोच भी नहीं सकते थे। रामपुर की घटना से गांव समाज की बदनामी हुई। इस तरह की सोच वाले युवाओं के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं है। 

कौन है सबाउद्दीन

शब्बीर अहमद एलएलबी करने के बावजूद अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेतीबारी कर परिवार का पालन पोषण करते रहे हैं। वर्ष 2001 से पंचायत समिति सदस्य हैं । शब्बीर अहमद के तीन पुत्र व दो पुत्रियों में मो. सबाउद्दीन सबसे बड़ा है। बचपन से वह शांत स्वभाव का था। उसने मौसी के यहां कमतौल में रहकर दसवीं की पढ़ाई की थी। इसके बाद दरभंगा मिल्लत कॉलेज में इंटर में नामांकन करवाया। इसी दरम्यान अलीगढ़ पढऩे चला गया।

वहां पढ़ाई में सफल नहीं होने पर गांव आया। इसके बाद दो अन्य साथियों के साथ बेंगलुरु काम के साथ पढ़ाई भी करने का बहाना बनाकर वर्ष 2005-6  में चला गया। तब से उसका संपर्क पिता से नहीं रहा। 


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