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सांवला रंग और बेटी जनने पर जिस बहू को ससुराल वालों ने घर से निकाला जज बन अब वो सुनाएगी फैसला

पटना के छज्जूबाग की रहने वाली वंदना मधुकर ने इस साल ज्यूडिशियरी की परीक्षा पास की है। ये वहीं वंदना हैं जिन्हें सांवले रंग और बेटी जनने पर घर से निकाल दिया गया था।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 13 Dec 2019 09:41 AM (IST)Updated: Sat, 14 Dec 2019 10:30 PM (IST)
सांवला रंग और बेटी जनने पर जिस बहू को ससुराल वालों ने घर से निकाला जज बन अब वो सुनाएगी फैसला
सांवला रंग और बेटी जनने पर जिस बहू को ससुराल वालों ने घर से निकाला जज बन अब वो सुनाएगी फैसला

अंकिता भारद्वाज, पटना। लोग कहते हैं न कि लड़कियां, लड़कों से कमजोर नहीं हैं- सही कहते हैं। पटना की वंदना इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। जिस बहू को ससुरालवालों ने उसके सांवले रंग को लेकर ताने मारे और बेटी जनने पर घर से निकाल दिया, वही बहू राज्य ज्यूडिशियरी की परीक्षा पास कर जज बन गई है। ससुराल से निकाले जाने के बाद संघर्ष और मजबूत हौसले की बदौलत उड़ान भरने वाली पटना के छज्जूबाग की 34 वर्षीय वंदना मधुकर माता-पिता के साथ पूरे मोहल्ले की अब चहेती बन गई है। उसने नौकरी करते हुए बेटी को पाला और उच्चस्तर की पढ़ाई जारी रखी।

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मोकामा में थीं नियोजित शिक्षक

वंदना का मायका मोकामा के राम शरण टोला में है। विवाह 2015 में पटना में हुआ। जब शादी हुई थी तो वह मोकामा में ही नियोजित शिक्षक थीं। शादी के बाद पटना आकाशवाणी में ट्रांसमिशन एक्जक्यूटिव पद संभाला। इसके बाद से घर में कलह बढ़ गई। ससुराल वाले और पति पूरी सेलरी घर में देने के लिए कहते थे।

बेटी होने के बाद छोडऩा पड़ा घर

वंदना बताती हैं कि शादी के एक साल बाद मई, 2016 में बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद ससुराल वाले उनके सांवले रंग के साथ लड़की के जन्म के लिए ताने देने लगे। उनका कहना था कि अगली बार गर्भवती होने पर चेकअप कराना होगा और फिर लड़की हुई तो गर्भपात। प्रताडऩा से तंग आकर वंदना 20 दिन की बेटी को लेकर मायके मोकामा चली गईं।

स्वजनों का मिला पूरा सहयोग

विधि स्नातक वंदना का कहना है कि जब वह मानसिक परेशानी के दौर से गुजर रही थीं, तब उन्हें बाढ़ कोर्ट के अधिवक्ता मधुसूदन शर्मा ने जज की परीक्षा देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने तैयारी की और 29 नवंबर को बिहार की न्यायिक परीक्षा पास कर ली। वंदना अपनी उपलब्धि का श्रेय पिता किशोरी प्रसाद और माता उमा प्रसाद के साथ मधुसूदन शर्मा को देती हैं। उनका कहना है कि जज की कुर्सी पर बैठने के साथ ईमानदारी से कार्य और पीडि़तों को त्वरित न्याय देना उनकी प्राथमिकता होगी। 


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