सात दिन बाद गंभीर होकर संक्रमित पहुंच रहे अस्पताल
तीसरी लहर में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की नई गाइडलाइन के अनुसार सात दिन बाद होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों को स्वस्थ मान लिया जाता है। पांचवें छठे और सातवें दिन बुखार नहीं आने पर वे बाहर जाकर अपने कार्य भी कर सकते हैं।
पटना। तीसरी लहर में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की नई गाइडलाइन के अनुसार सात दिन बाद होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों को स्वस्थ मान लिया जाता है। पांचवें, छठे और सातवें दिन बुखार नहीं आने पर वे बाहर जाकर अपने कार्य भी कर सकते हैं। स्वस्थ होने का यह मानक अधिकतर संक्रमितों के मामले में सही साबित हो रहा है, लेकिन कुछ रोगी ऐसे भी हैं जिनकी हालत इसके बाद गंभीर हो रही है। एम्स पटना में भर्ती 65 संक्रमितों में से 17 ऐसे हैं, जो पाजिटिव होने के आठ दिन बाद गंभीर लक्षण लेकर भर्ती हुए हैं। रूबन मेमोरियल और पारस जहां एम्स के बाद सबसे अधिक संक्रमित इलाज करा रहे हैं, वहां भी ऐसे दस से अधिक मरीज हैं।
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3,911 उपचाराधीन मरीजों
में 168 ही भर्ती
तीसरी लहर में 95 प्रतिशत से अधिक मरीजों में कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे हैं या बहुत हल्के दिख रहे हैं। ऐसे में करीब 96 प्रतिशत मरीज होम आइसोलेशन में रहकर ही अपना इलाज करा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग भी आइसीएमआर की नई गाइडलाइन के आधार पर इन लोगों को सात दिन में स्वस्थ मान लेता है। बावजूद इसके बहुत से लोगों को इसके बाद भी ठंड लगना, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, थकान, मांसपेशियों या शरीर में दर्द, सिरदर्द, गले में खराश, मतली-उल्टी और दस्त की शिकायत रहती है। इनमें से कई लोगों की हालत अचानक बिगड़ती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है।
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सात दिन बाद ये लक्षण
हों तो तुरंत जाएं अस्पताल
एम्स के कोरोना नोडल पदाधिकारी डा. संजीव कुमार ने बताया कि यदि सात दिन बाद भी सांस लेने में तकलीफ, सीने में लगातार दर्द या दबाव, भ्रम, जागते रहने में असमर्थता, त्वचा और नाखून का रंग पीला या नीला हो तो तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की इम्यून पावर अलग होती है, ऐसे में कोरोना संक्रमण का अलग-अलग असर देखने को मिलता है। सात दिन में स्वस्थ हो ही जाएंगे यह कोई जरूरी नहीं है।
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शरीर में कोरोना वायरस
का चरणवार प्रभाव
- 4 दिनों में वायरस फेफड़े तक पहुंचता है। इसके बाद सांस लेने में परेशानी शुरू हो जाती है। नौ दिन तक में फेफड़ों में सूजन के साथ तरल पदार्थ भर जाता है और सांस की समस्या गंभीर हो जाती है।
-8 से 15 दिनों में संक्रमण फेफड़ों से खून में पहुंच जाता है और अगले सात दिन में सेप्सिस की आशंका बढ़ जाती है। सेप्सिस, खून में बैक्टीरियल संक्रमण का रोग है, जिसमें सूजन, खून के थक्के बनने और रक्त धमनियों से स्त्राव होने के कारण मल्टी आर्गन फेल्योर हो जाता है।