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बिहार में कांग्रेस का अजब संकट: जीते तो टिके, हारे तो गायब हो गए नेता; कन्‍हैया के बहाने आइए डालते हैं नजर

Kanhaiya Kumar News बिहार में कांग्रेस का यह अजीब संकट है। यहां शेखर सुमन से शत्रुघ्‍न सिन्‍हा तक कई बड़े नेता पार्टी में आए लेकिन जीते तो टिके हारे तो गायब हो गए। अब पार्टी में कन्‍हैया कुमार की एंट्री के साथ इसपर चर्चा तो बनती हीं है

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 12:53 PM (IST)Updated: Thu, 30 Sep 2021 09:52 AM (IST)
बिहार में कांग्रेस का अजब संकट: जीते तो टिके, हारे तो गायब हो गए नेता; कन्‍हैया के बहाने आइए डालते हैं नजर
कन्‍हैया कुमार तथा शत्रुघ्‍न सिन्‍हा के साथ शेखर सुमन। फाइल तस्‍वीरें।

पटना, अरुण अशेष। Kannaiya Kumar News बिहार में कांग्रेस (Bihar Congress) के लिए यह बड़ा अजीब संकट है। बड़े नाम वाले नेता आते हैं। चुनाव जीत गए तो टिकते भी हैं, लेकिन हारे तो पार्टी को यह खबर भी नहीं लगती है कि कहां चले गए। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) से कांग्रेस (Congress) में आए कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को लेकर भी यही सवाल पूछा जा रहा है कि कब तक टिकेंगे। हालांकि, दूसरे नेताओं की तुलना में कन्हैया को लेकर थोड़ा इत्मीनान का भाव है। इसलिए कि कांग्रेस के पास अच्छे वक्ता की कमी थी। कन्हैया को लग रहा था कि सीपीआइ उनके कद लायक संगठन नहीं है। दोनों एक-दूसरे की भरपाई कर सकते हैं। यह भी कि कन्हैया संसदीय राजनीति के शुरुआती दौर में हैं। इससे पहले जो नेता कांग्रेस में आए, चले गए या सुस्त बैठे हैं, चुनावी राजनीति के आजमाए चेहरा रहे हैं।

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शत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन

अभिनेता शेखर सुमन (Shekhar Suman) 2014 के चुनाव में पटना साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार बने थे। खूब तामझाम हुआ था। हार के बाद प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम (Sadaquat Ashram) का मुंह नहीं देखा। उसके पांच साल बाद बड़े फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughan Sinha) आए। 2019 में पटना साहिब से चुनाव लड़े। हारने के बाद भी साल भर सक्रिय रहे। साल भर बाद हुए विधानसभा चुनाव में पुत्र को कांग्रेस का टिकट दिलवाया। उसके बाद कांग्रेसी और शत्रुघ्न सिन्हा दोनों एक-दूसरे को भूलने लगे।

और भी कई चेहरे हैं गायब

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद रहे उदय सिंह पप्पू खुद को खानदानी कांग्रेसी बता कर 2019 में दाखिल हुए। चुनाव हारे और सदाकत आश्रम का रास्ता भूल गए। बाहुबली निर्दलीय विधायक अनंत सिंह (Anant Singh) की पत्नी नीलिमा सिंह मुंगेर से चुनाव लड़ी थीं। चुनाव में अनंत सिंह सक्रिय रहे। परिणाम निकलने के साथ ही दोनों का रूख बदल गया। कांग्रेस में दोनों की सक्रियता नजर नहीं आ रही है। हां, दूसरे दलों से आए नेताओं में अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है। वे राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) से आए और कांग्रेस में टिक गए। प्रतिबद्धता को देखते हुए ही कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में भेजा।

हार के डर से भी हुए अलग

आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड (JDU) होते हुए कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम की सक्रियता नहीं देखी जा रही है। उनके भतीजे राजेश राम स्थानीय क्षेत्र प्राधिकार का पिछला चुनाव (2015) कांग्रेस टिकट पर जीते थे, लेकिन पार्टी की अच्छी संभावना नहीं देखते हुए जेडीयू में शामिल हो गए हैं। पूर्व मंत्री रमई राम (Ramai Ram) को भी कांग्रेसी ठीक मान रहे हैं। वे 2009 में कांग्रेस के टिकट पर गोपालगंज से लोकसभा का चुनाव लड़े। उन्होंने भी वही किया। चुनाव परिणाम के बाद कभी कांग्रेस कार्यालय नहीं आए। साल भर बाद जेडीयू के टिकट पर विधानसभा पहुंच गए।

कन्‍हैया को लेकर बोली कांग्रेस

कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य प्रेमचंद्र मिश्रा (Prem Chandra Mishra) कहते हैं कि कई नेता आए और गए। जहां तक कन्हैया कुमार का सवाल है, हम उम्मीद करते हैं कि वे पार्टी में बने रहेंगे। कन्हैया अच्छे वक्ता हैं। धर्मनिरपेक्ष पृष्ठभूमि से आए हैं। कांग्रेस में उनका सम्मान करेगी। इससे पहले जो नेता आकर चले गए हैं, उनका उद्देश्य सीमित था। वे टिकट के लिए ही पार्टी में शामिल हुए थे। कन्हैया के साथ यह पक्ष नहीं है।


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