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Chhath Special: केवल छठ करने के लिए गांव में बनाया 'व्हाइट हाउस', महापर्व पर जुटता है पूरा परिवार

नालंदा जिले में चंडी होते हुए हरनौत जाने में नरसंडा से एक किलोमीटर आगे एनएच से सटे उत्तर बना आकर्षक मकान सबका ध्यान खींचता है। यह मकान हरनौत प्रखण्ड के बेढऩा गांव के निवासी अरुण कुमार सिंह ने विशेषकर छठ व्रत करने के लिए गांव से थोड़ा हटकर बनवाया है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 05:43 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 09:53 PM (IST)
Chhath Special: केवल छठ करने के लिए गांव में बनाया 'व्हाइट हाउस', महापर्व पर जुटता है पूरा परिवार
महापर्व पर परिवार की एकजुटता के लिए बनाया व्‍हाइट हाउस। जागरण।

पटना, जेएनएन। नालंदा जिले में चंडी होते हुए हरनौत जाने में नरसंडा से एक किलोमीटर आगे एनएच से सटे उत्तर बना आकर्षक मकान सबका ध्यान खींचता है। यह मकान हरनौत प्रखण्ड के बेढऩा गांव के निवासी अरुण कुमार सिंह ने विशेषकर छठ व्रत करने के लिए गांव से थोड़ा हटकर बनवाया है। लगभग 12 कट्ठे के भू-खण्ड पर बाउंड्री वाल के अंदर चमकता हुआ उजला मकान आधुनिक डिजाइन से निॢमत है। इसे स्थानीय लोगों ने व्हाइट हाउस नाम दे रखा है। यह पूरी तरह वातानुकूलित है। परिसर में एक तालाब है, जो सूर्य देव को अर्घ्य अॢपत करने के लिए खोदा गया है। तालाब के चारों तरफ फूल-पत्तियां एवं पेड़ लगे हैं। मकान की छत पर भी बड़ा सा हौज अर्घ्य देने के लिए बनाया गया है। अरुण सिंह के सभी भाइयों के परिवार यहां साल में सिर्फ एक बार काॢतक छठ के अवसर पर एकत्र होते हैं। श्री सिंह के भाइयों का पटना, कोलकाता, रांची आदि शहरों में मकान एवं व्यवसाय है। लेकिन सिर्फ छठ व्रत करने के लिए गांव में इतना निवेश करने के पीछे  इनका मानना है कि गांव का जीवन कई मामले में शहरी जीवन से बेहतर लगता है। अच्छी सड़कें व बिजली होने से जीवन आसान हो गया है। अरुण कुमार सिंह के दूर के रिश्तेदार और हमेशा साथ रहने वाले हसनपुर गांव निवासी झल्लू सिंह बताते हैं कि 30 वर्षों बाद गांव में वापसी हुई है। चार सालों से इस मकान में छठ अनुष्ठान होता आ रहा है। गांव की मिट्टी से जुड़े रहने के लिए इस मकान का निर्माण किया गया। पांच-छह दिन मात्र यहां ठहरने में किसी को कोई परेशानी नहीं हो, इसलिए हर सुख-सविधा का ख्याल निर्माण में रखा गया है। कहते हैं,जब इसका नाम ही लोग व्हाइट हाउस रख दिए हैं तो उस हिसाब से हर साल मेंटेनेंस भी करवाना पड़ता है। कोरोना काल में इस मकान का उद्देश्य औऱ सार्थक हो जाता है, क्योंकि इस बार शासन का जोर घर में अर्घ्यदान कराने पर है।

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मेहनत ने पहुंचाया छह भाइयों को शिखर पर

पटना के कंकड़बाग डॉक्टर्स कॉलनी स्थित जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल के स्वामित्व से अरुण सिंह अधिक पहचाने जाते हैं। बताते हैं, बेढऩा निवासी जगदीश कुमार सिंह के 6 पुत्र जनार्दन कुमार सिंह, सुधीर कुमार सिंह, मुनीन्द्र सिंह, शिव कुमार सिंह, अरुण कुमार सिंह एवं सबसे छोटे तरुण कुमार सिंह हुए। गांव पर मात्र 18 बीघे जमीन थी। यानी प्रत्येक भाई के हिस्से मात्र तीन बीघे जमीन। यह सोच जनार्दन सिंह ने कमाई के लिए कोलकाता का रुख किया। वहां ईंट भट्ठे का काम सीखा, फिर इसी व्यवसाय से भाइयों को जोड़ा। खूब मेहनत की। वहीं से तरक्की की राह खुलती चली गई। बाद में पटना में  बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कम्पनी बनाए। पिता जगदीश प्रसाद सिंह की मौत के उपरांत उन्ही के स्मृति में पटना में हॉस्पिटल बनाया गया। अरुण सिंह के बड़े भाई जनार्दन सिंह की मौत हो चुकी है। सभी भाइयों का कई शहरों में अपना अलग-अलग व्यवसाय है। संयुक्त परिवार है। किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं। परिवार में तीन डॉक्टर हैं। कहते हैं इस परिवार में कई पीढिय़ों से छठ व्रत होता आ रहा है। हमलोग निर्वाह कर लेंगे। नई पीढ़ी क्या करेगी ? वो जाने। लेकिन इतनी तो समझ है कि जब नई पीढ़ी के सदस्य सब्जी भी ऑनलाईन मंगवा सकते हैं तो इस अनुष्ठान से भला  कैसे पार पाएंगे ? समझ से परे है।

तालाब की जगह छत पर अर्घ्य अर्पण

छठ हाउस परिसर में तालाब खोदने का एकमात्र उद्देश्य अर्घ्य अर्पण ही था। परन्तु जगह कम पड़ गई। सूर्योदय व सूर्यास्त ठीक से नहीं दिखता। इस कारण व्रती छत पर अर्घ्य अॢपत करते हैं। छत से उगते और डूबते सूर्य के दर्शन सही समय पर हो जाते हैं। छत पर बड़ा सा हौज है, जिसमें डुबकी लगाकर स्नान करने भर पानी जमा रहता है। पारण के बाद यह छठ हाउस अगले साल तक फिर प्रहरियों एवं माली के हवाले हो जाएगा।

कई डॉक्टर बने पर बेढऩा का प्राइमरी स्कूल भवनहीन

चंडी प्रखण्ड का सीमावर्ती हरनौत का यह गॉव विवादों की वजह से विकास में पिछड़ा रहा है। बर्चस्व की लड़ाई- झगड़े भी खूब होते रहे। यहां कई डॉक्टर हुए। कुछ पटना में तो कुछ दिल्ली में जा बसे। कुछ डॉक्टर अमेरिका में भी हैं। गांव का प्राथमिक विद्यालय भवन हीन है। विद्यालय के जमीन का मामला न्यायालय में लंबित है। हालांकि अब दो तरफ से यहां पक्की सड़क की पहुंच हो गई है। फिर भी जो परिवार गांव छोड़ चुके, वे लौटने के मूड में नहीं हैं। बहुत से घरों में ताले लटके मिलते हैं।


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