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जगदानंद सिंह के साथ RJD में चेहरा बदलने की कवायद, कम नहीं हैं चुनौतियां

राजद ने रामचंद्र पूर्वे की जगह जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर पार्टी का चेहरा बदलने की नई शुरुआत तो की है लेकिन अभी भी पार्टी के पास चुनौतियां कम नहीं हैं। जानिए...

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 29 Nov 2019 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 11:23 PM (IST)
जगदानंद सिंह के साथ RJD में चेहरा बदलने की कवायद, कम नहीं हैं चुनौतियां

पटना [अरविंद शर्मा]। संगठनात्मक चुनाव के जरिए राष्ट्री य जनता दल (आरजेडी) ने बिहार में अपना चेहरा बदलने की शुरुआत कर दी है। एक साल के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं। जगदानंद सिंह लालू-राबड़ी के जमाने के नेता हैं। जबकि, आरजेडी का नेतृत्व नया है।

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आरजेडी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। पारिवारिक विवाद भी जब-तब सिर उठाते रहते हैं। ऐसे में जगदानंद के सामने नई चुनौतियों से इनकार नहीं किया जा सकता है।

विधानसभा चुनाव को लेकर राजद के सामने हैं कई सवाल 

लोकसभा चुनाव में हार ने राजद को बड़ा सबक दिया। अबतक पिछड़ों की राजनीति करके बिहार में डेढ़ दशक तक सत्ता में बने रहने वाली इस पार्टी ने सवर्ण जाति से आने वाले जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर चेहरा बदलने की पहल कर दी है। किंतु इसके साथ ही कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।

सबसे बड़ा संकट कोर वोट की हिफाजत का है। नई तरकीब के सहारे सवर्ण मतदाताओं को रिझाने-समझाने का सवाल बाद में है। सवाल यह भी छोटा नहीं है कि तेजस्वी यादव की जनसभाओं में जुटती रही भीड़ को वोट में तब्दील कैसे किया जाए? क्या नया नेतृत्व इस प्रयास में सफल हो सकेगा।

पहले जगदानंद को आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है। विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में जाने से पहले इन्हीं पर दांव क्यों लगाया गया? आरजेडी की 22 वर्षों की राजनीति में किसी सवर्ण को पहली बार संगठन की कमान दी गई है तो इसकी प्रमुख वजह बीजेपी-जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाने की मंशा है।

मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण को बनाए-बचाए रखते हुए अगर राजद अपने मकसद में कामयाब हो जाता है तो विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू की परेशानी बढ़ सकती है। हालांकि, लालू प्रसाद की नई चाल में आरजेडी के लिए बड़ा खतरा यह है कि अनिश्चित को प्राप्त करने के चक्कर में निश्चित ही खत्म न हो जाए। आधार वोटरों को अगर यह लगने लगा कि अब उनके कुनबे में दूसरों का वर्चस्व होने लगा है तो वे इधर-उधर भी झांक सकते हैं।

संगठन के विभिन्न पदों पर पहले ही 45 फीसद आरक्षण की व्यवस्था करके माय समीकरण को सीमित दायरे में बांध दिया गया है। हालांकि आते ही जगदानंद ने भी लालू की लाइन पर ही चलते रहने का संकेत देकर राजद के आधार वोटरों को थोड़ा सुकून जरूर दिया है। बकौल जगदानंद, उनकी जमात में 90 फीसद लोग हैं और लड़ाई है 10 फीसद वालों से। लालू ने भी 90 के दशक में ऐसा ही नारा दिया था।

नेतृत्व में पीढ़ी का अंतर

जगदानंद के सामने दो पीढिय़ों के नेतृत्व में समन्वय बनाने की भी चुनौती कम बला नहीं है। लालू एवं तेजस्वी में पीढ़ी का अंतर है। खुद प्रदेश अध्यक्ष भी लालू के जमाने के ही नेता हैं। किंतु काम करना पड़ेगा नेता प्रतिपक्ष के हिसाब से। ऐसे में परिणाम ही एकमात्र आधार होगा, जो सारे मतभेदों को भर सकता है।


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