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बिहार के इस मंत्री को उमा भारती नहीं दे रहीं समय, जानिए क्या है मामला...

बिहार में तीन नदी जोड़ योजनाओं की मंजूरी का मामला सभी तरह का आपत्तियों के निराकरण के बाद अंतिम चरण में है। इस संबंध में जल संसाधन मंत्री ललन सिंह केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से स्वयं मिलकर स्थिति स्पष्ट कर देना चाहते हैं, पर समय नहीं मिल रहा।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 20 May 2016 08:26 AM (IST)Updated: Fri, 20 May 2016 02:53 PM (IST)
बिहार के इस मंत्री को उमा भारती नहीं दे रहीं समय, जानिए क्या है मामला...

पटना। बिहार में तीन नदी जोड़ योजनाओं की मंजूरी का मामला सभी तरह का आपत्तियों के निराकरण के बाद अंतिम चरण में है। बाधा बस पर्यावरण स्वीकृति है। इस संबंध में जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से स्वयं मिलकर स्थिति स्पष्ट कर देना चाहते हैं, पर समय नहीं मिल रहा। चार दिनों से कोशिश हो रही है।

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ललन सिंह ने बताया कि नदी जोड़ योजनाओं की स्वीकृति को ले पर्यावरण स्वीकृति की कोई आवश्यकता नहीं। इस बारे में केंद्र सरकार के पूर्व से निर्देश हैं। इस आपत्ति के संबंध में वे ही वे केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से मिलकर स्थिति स्पष्ट कर देना चाहते हैं।

जल संसाधन मंत्री ने कहा कि कोसी मेची लिंक योजना व बूढ़ी गंडक-नून-वाया गंगा लिंक योजना के बारे में राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने तथा सकरी-नाटा लिंक योजना के बारे में केंद्रीय जल आयोग ने पर्यावरण क्लियरेंस के बारे में लिखा है।

वहीं, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक केवल जल विद्युत परियोजनाओं के संबंध में ही पर्यावरण क्लियरेंस चाहिए। नदी जोड़ योजना में इसकी जरूरत नहीं है। कोसी-मेचा लिंक योजना में भी पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना लागू होती है। इस योजना के लिए वन एवं जनजाति के नुकसान की पृच्छा है। इस बारे में भी राज्य सरकार अपेक्षित प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने को तैयार है।

सकरी-नाटा लिंक योजना के कमांड क्षेत्र से भी जनजातीय आबादी प्रभावित नहीं होती है। इस योजना में वन तथा जनजातीय लोगों के पुनर्वास तथा पुनस्र्थापन से संबंधित कोई मुद्दा ही नहीं है, क्योंकि कोई भी नया कमांड क्षेत्र सृजित नहीं हो रहा है। पूर्व से स्थित कमांड क्षेत्र का ही पुनस्र्थापन हो रहा है।

बूढ़ी गंडक-नून-वाया-गंगा लिंक योजना का मुख्य उद्देश्य बाढ़ शमन है जो आपदा प्रबंधन का अंग है। जल का अंतरण भी बूढ़ी गंडक बेसिन के अंतर्गत ही किया जा रहा है। इस योजना की स्वीकृति में भी पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन का कोई मामला नहीं बनता है।


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