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कैंपस में गुंडागर्दी ही मान ली गई है छात्र राजनीति

विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छोटी-मोटी गुंडागर्दी को ही छात्र राजनीति का उद्देश्य मान लिया गया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 13 Mar 2018 10:36 AM (IST)
कैंपस में गुंडागर्दी ही मान ली गई है छात्र राजनीति
कैंपस में गुंडागर्दी ही मान ली गई है छात्र राजनीति

पटना । विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छोटी-मोटी गुंडागर्दी को ही छात्र राजनीति का उद्देश्य मान लिया गया है। छात्रों को भटकाना, बात-बात पर विश्वविद्यालय और कॉलेज को बंद कराना, चुनाव लड़ना, अपने संगठन की नीतियों को जबरदस्ती मनवाना ही युवा राजनीति नहीं है। राजनीति का मतलब केवल चुनाव लड़ना ही नहीं है। उक्त बातें सोमवार को पटना साइंस कॉलेज के जिम्नेजियम हॉल में स्वराज अभियान के वरीय नेता योगेंद्र यादव ने कहीं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को छात्र राजनीति के पांच प्रमुख उद्देश्य और इसके लाभ बताए।

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प्रथम उद्देश्य चुनाव लड़ना, जीतना और साथियों के बीच लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को साझा करना। दूसरा सच्चाई के लिए संघर्ष है। तीसरा रचनात्मक कार्य के माध्यम से सामाजिक सुधार को बढ़ावा देना। चौथा ज्ञान का निर्माण करना है। यह विश्वविद्यालय में मिलने वाली शिक्षा से इतर है। पांचवा अपने आतंरिक मन से संबंध स्थापित करना है। इन्हीं पांच उद्देश्यों पर युवा राजनीति की बुनियाद है। आज युवा राजनीति की बुनियाद कमजोर होने के कारण ही लोकतांत्रिक स्तंभों पर प्रहार हो रहा है। भारत की राजनीतिक दशा और दिशा किसान तथा युवा ही तय करते हैं। 1974 के आंदोलन में पटना विश्वविद्यालय के योगदान का भी स्मरण किया। उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ते थे तो पटना से 1200 किलोमीटर दूर उनके गांव में एक नारा गूंजता था 'अंधकार में एक प्रकाश, जयप्रकाश'। उस आंदोलन की बुनियाद पटना विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में ही रखी गई थी।

दरवाजे पर दस्तक दे चुका है बड़ा संकट :

योगेंद्र यादव ने कहा कि 1974 से ज्यादा बड़ा संकट देश में दस्तक दे चुका है। दुर्भाग्य है कि उससे हमें बाहर निकालने के लिए जेपी जैसे नेता हमलोगों के बीच नहीं हैं। वर्तमान में विविधता को अस्वीकार किया जा रहा है। जबकि विविधता में विश्वास के कारण ही भारत तमाम दुश्वारियों के बावजूद अखंड है। सोवियत संघ जैसे राष्ट्र मजबूत होने के बाद भी विविधता को स्वीकार नहीं करने के कारण बिखर गए। आजादी के सात दशक बाद 'लिंचिंग' जैसे शब्द से सोसाइटी को दो-चार होना पड़ रहा है। सांस्कृतिक, भौगोलिक, भाषाई, वैचारिक, आर्थिक विविधता होने के बाद भी बहुसंख्य गरीब और निरक्षर देशवासी ने यूरोप को लोकतंत्र सही मायने बताया है।

राजनीतिक बयानबाजी को लेकर हुई नोकझोंक

महाराष्ट्र के किसान आंदोलन सहित केंद्र सरकार की नीतियों की पोस्टमार्टम पर प्रो. अनिल कुमार ने आपत्ति दर्ज की। इसके बाद योगेंद्र यादव के समर्थक में दर्जनों लड़के प्रोफेसर के खिलाफ नारेबाजी और उन्हें मंच से उतारने की मांग करने लगे। योगेंद्र यादव के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ।


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