सीएजी रिपोर्ट : जमीन का पता नहीं खरीद डाले 3.03 करोड़ के पाइप
बिहार राज्य जल पर्षद की कार्यशैली ने एक बार फिर उसे कठघरे में खड़ा कर दिया है। भारत के नियंत्रक लेखा महापरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जल पर्षद के पास जमीन का ठिकाना नहीं था।
पटना। बिहार राज्य जल पर्षद की कार्यशैली ने एक बार फिर उसे कठघरे में खड़ा कर दिया है। भारत के नियंत्रक लेखा महापरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जल पर्षद के पास जमीन का ठिकाना नहीं था और बिना जमीन मिले ही उसने कास्ट आयरन पाइप की खरीद कर डाली। नतीजा सरकार को 3.03 करोड़ रुपये की चपत लगी। कुछ ऐसा ही हाल पटना नगर निगम का भी रहा। निगम ने तो अनियमितता और घपले के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तीन ड्राइवरों को एक ही समय में एक ही अंचल में विभिन्न वाहनों के भाड़ा और ईंधन मद में 1.02 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। 5.91 लाख का भुगतान वैसे वाहनों के नाम पर किया गया जो न तो भाड़े के थे न पटना नगर निगम के। बीस हजार रुपये का भुगतान वैसे वाहनों के नाम पर उस अवधि के लिए किया गया जिस अवधि में वे निगम मुख्यालय में ही खड़े थे।
सीएजी ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि राज्य जल पर्षद द्वारा जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित किए बगैर इंद्रपुरी और पटेल नगर में जलापूर्ति की योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 2.49 और 2.83 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की। 2009 में स्वीकृत योजना के लिए उस वक्त तक जमीन की पहचान भी नहीं की गई थी, मगर असैनिक कार्यों के लिए जल पर्षद ने 15170 मीटर पाइप की खरीद कर डाली। जबकि पाइप का प्रयोग ही नहीं हुआ और 2013 में सरकार ने योजना का टेंडर भी निरस्त कर दिया। कार्य योजना ठीक प्रकार से न बनाने और बिना मतलब पाइप खरीद लिए जाने से सरकार को 3.03 करोड़ रुपये का निष्क्रिय व्यय हुआ। इसी प्रकार पटना नगर निगम के सिटी अंचल में कचरा ढोने के लिए दो हाइवा और एक जेसीबी को 9.45 लाख रुपये का अधिक भुगतान किया गया। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन मशीनों से जितना कूड़ा उठा दिखाया गया उतने कचरे के लिए एक ही मशीन की काफी थी।