बॉलीवुड फिल्म सुपर-30 के बाल कलाकार पटना में कोविड से हारे, भूखमरी का कर रहे सामना
फिल्म सुपर-30 में अभिनय करने वाले पटना के स्लम एरिया के बाल कलाकारों ने अपने अभिनय से बॉलीवुड में बिहार का डंका बजाया था। कोविड काल में इनकी माली हालत खस्ता है। लॉकडाउन में फिल्मों में काम नहीं मिलने से इनकी प्रतिभा को विराम लग गया है।
पटना, प्रभात रंजन। बॉलीवुड फिल्मों में काम करने वाले शहर के बाल कलाकारों ने साबित किया कि बिहार में भी प्रतिभाएं हैं। दरकार है केवल सही मंच मिलने की। फिल्म निर्देशक विकास बहल की फिल्म सुपर-30 में अभिनय करने वाले बाल कलाकारों ने अपने अभिनय से बॉलीवुड में बिहार का डंका बजाया था। फिल्म की सफलता से पटना के स्लम एरिया में रहने वाले इन 'आसमां के सितारो' का कद अर्श पर पहुंच गया था। लेकिन, कोरोना काल ने इनकी प्रतिभा विकास पर विराम लगा दिया है। लॉकडाउन में इन कलाकारों के माता-पिता को घर चलाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
आर्थिक स्थिति हुई खराब :
बाल कलाकार घनश्याम बताते हैं, उनके पिता राजेंद्र बनारसी भूजा की दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। उसका बड़ा भाई भी जगनपुरा में ठेला लगा भूजा बेचता था। लोहानीपुर के रहने वाले घनश्याम ने बताया, लॉकडाउन के कारण दुकान बंद हो गई तो कर्ज लेकर घर चलाया जा रहा है। कुछ संस्थाओं ने घर आकर राशन पहुंचाया था। बाल कलाकार सूरज प्रकाश बताते हैं, उनके पिता लाल मोहन प्राइवेट जॉब करते थे, लेकिन संक्रमण के कारण उनका काम भी नियमित नहीं होने से घर चलाने में परेशानी हो रही है। यही हाल बाल कलाकार सन्नी का भी है। उसके पिता महेश दास की कबाड़ी की दुकान है। लॉकडाउन में दुकान बंद होने से घर की माली हालत खस्ता हो गई है।
सुपर-30 के बाद आने लगे थे फिल्मों के ऑफर :
बाल कलाकारों की मानें तो फिल्म सुपर-30 में काम करने के बाद मुंबई से अन्य फिल्मों में अभिनय के लिए फोन पर ऑफर आते थे। लोग पूछते थे कि मुंबई में हो ना? जब उन्हें अपने बारे में बताता था कि मैं पटना में रहता हूं तो वे सांत्वना देकर बाद में फोन करने की बात कहते थे। बाल कलाकारों का कहना है कि हमारा परिवार दैनिक मजदूरी करके खाने वाला है। ऐसे में मुंबई में रहकर जीवन व्यतीत करना किसी सपने से कम नहीं है।