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मुंबई हमले के 10 साल: खौफ के वो दिन याद कर आज भी सिहर जाते ये लोग

26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले की याद आज भी लोगों की जेहन में ताजा है। उस दौरान मुंबई में रहे बिहारियों व उनके परिवारों पर क्‍या गुजारी, आइए जानते हैं इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 12:39 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 01:13 PM (IST)
मुंबई हमले के 10 साल: खौफ के वो दिन याद कर आज भी सिहर जाते ये लोग
मुंबई हमले के 10 साल: खौफ के वो दिन याद कर आज भी सिहर जाते ये लोग
पटना [जेएनएन]। मुंबई पर हुए 26/11 आतंकी हमले की आज बरसी है। हादसे के वक्‍त बिहार के आप्रवासी भी बड़ी संख्‍या में मुंबई में थे। उस दौरान उनपर व उनके बिहार में रहने वाले परिजनों पर क्‍या बीती, याद करके वे आज भी सिहर जाते हैं।
ये थी घटना
विदित हो कि 26 नवम्बर 2008 को मुंबई में देर रात कई जगहों पर कुछ समय के अंतराल में हुए दर्जन भर श्रृंखलाबद्ध विस्फोट और गोलीबारी हुई थी। इस आतंकी वारदात में 166 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि लगभग 600 से अधिक घायल हो गए थे। मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल स्टेशन, ताज होटल, होटल ओबेरॉय, लियोपोल्ड कैफ़े, कामा अस्पताल तथा दक्षिण मुंबई के अन्य कई स्थानों पर आतंकी हमले हुए थे। घटना के दौरान एक आंतकी अजमल कसाब को सुरक्षा बलों ने जिंदा पकड़ लिया था, जिसे बाद में फांसी की सजा दी गई। इस आतंकी हमले की साजिश 'लश्कर ए तय्यबा' के सह संस्थापक हाफिज सईद ने रची थी।

मां से बात हुई तो मिली राहत
जिस दिन मुंबई में आतंकी हमले की खबर आई, बिहार के मोतिहारी की रहने वाली अनामिका मुंबई में नई थीं। अचानक हुए हादसे से वे हतप्रभ रह गईं। इधर, मोतिहारी में उनकी मां को बेटी की सलामती की चिंता खाए ता रही थी। अनामिका बताती हैं कि घरवालों को अपने सुरक्षित रहने की जानकारी कैसे दें, इसे लेकर परेशान थी। किसी तरह मोबाइल कनेक्‍ट हुआ तो मां से बात करने के बाद राहत मिली।
अनामिका से अंदर तक हिल गईं थीं। कई दिनों तक सदमे में रहीं। बताया, असुरक्षा को बोध भी हुआ। लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ सामान्‍य होता चला गया।
खाए जा रही थी अपनों की चिंता
मुंबई के अंधेरी इलाके में रहने वाले तथा वहां एक निजी कंपनी में अधिकारी आलोक कुमार कहते हैं, 'कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या हो रहा है। लोगों के मरने की लगातार आ रहीं खबरों के बीच अपनों की चिंता हो रही थी। उन दिनों आलोक का परिवार पटना में था। पत्‍नी अनुप्रिया बताती हैं, 'ट्रांसफर के बाद आलोक मुंबई गए ही थे कि घटना हो गई। इधर, पटना में पूरा परिवार परेशान था कि यह क्‍या हो गया।'
भयानक था वो दिन
मुंबई हमले के दौरान वहां के एक होटल में अधिकारी दरभंगा के आशीष अपने होटल में ही कैद थे। डर से बाहर निकल नहीं रहे थे। कहते हैं, 'वह भयानक दिन था।' इस बीच मुंबई में जगह-जगह आतंकियों से मुठभेड़ की खबर मिल रही थी। मुंबई में रहने वाले परिवार की चिंता हो रही थी तो बिहार में रहने वाले परिजनों को अपनी सलामती की बात बताने की बताने को लेकर भी परेशान था।
लोगों की सुरक्षा की चिंता
मुंबई में केंद्रीय सेवा के बड़े अधिकारी प्रवीण बताते हैं, '26 नवंबर 2008 की रात अचानक मुंबई गोलियों की आवाज से दहल उठा था। कहते हैं, 'मैं तो सुरक्षित था, लेकिन लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंता हो रही थी।'
नहीं मिले आतंकवाद को बढ़ावा
मोतिहारी की अजिता व जया मुंबई में बैंक अधिकारी हैं। कहतीं हैं, 'उस घटना के बाद लगा था कि देश में आतंकवाद की रीढ़ तोड़ दी जाएगी। लेकिन बाद में भी कई आतंकी घटनाएं हुईं। आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।'

आतंकवादी का कोई मजहब नहीं
सहरसा के शमशाद की अपनी व्‍यथा है। वे कहते हैं कि मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद देश में मुसलमानों को आतंकवाद से जोड़कर देखने वालों की संख्‍या बढ़ गई। कहते हैं, देश के लिए सभी धर्मों के लोगों ने कुर्बानी दी है और आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता।

आइए लें आतंकवाद मिटाने की शपथ
मुजफ्फरपुर के रंजीत कहते हैं, 'आज मुबई हमले की बरसी के दिन आइए हम आतंकवाद को मिटाने में सहयोग की शपथ लें। जरूरी नहीं कि इसके लिए हमें सुरक्षा बलों में शामिल होकर हथियार उठाना हो। अपनी सजगता से किसी संदिग्‍ध आतंकी गतिविधि की सूचना सुरक्षा बलों को देना भी आतंकवाद के खिलाफ बड़ा योगदान हो सकता है।'

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