गुजरात से लौटने वालों की दर्दनाक दास्तान: घर वापसी से मिला दूसरा जन्म
गुजरात के जामनगर से 12947 अजीमाबाद एक्सप्रेस से पटना जंक्शन पहुंचे बिहार के मजदूरों ने वहां फैली हिंसा के बारे में दर्दनाक आपबीती सुनाई कि किस तरह वहां उनके साथ किस तरह सुलूक किया।
पटना [जेएनएन]। पांच मिनट पहले फैक्ट्री में ही बैठकर गुजराती-बिहारी भाई-भाई का नारा देने वाले सहयोगी का रुख बदल जाएगा, यह सपने में भी नहीं सोच सकता था। पांच मिनट पहले पड़ोसी घर में आकर पत्नी से चने का सत्तू मांगकर ले गया और जब थोड़ी ही देर बाद उपद्रवी मोहल्ले में आकर हंगामा करने लगे तो वह भी उनके साथ नजर आया। इसे देख दुख हुआ।
गुजरात के जामनगर से 12947 अजीमाबाद एक्सप्रेस से पटना जंक्शन पहुंचे मधुबनी निवासी अजय कुमार दास आपबीती सुनाते हुए भावुक हो उठे। दास ने बताया कि गुजरात के प्रमुख शहरों के नगरीय क्षेत्र में उपद्रवियों का बहुत असर नहीं है। परंतु दूर-दराज फैक्ट्रियों में काम करने वाले बिहारियों को काफी परेशान किया जा रहा है।
पुलिस के अधिकारी भी गुजरातियों को सहयोग कर रहे हैं, जिससे बिहार के लोगों में अविश्वास पनपने लगा है। अहमदाबाद के कालूनगर में रहकर छोटा कारोबार करने वाले पूसा के मो. आलम भी इसी ट्रेन से आए हैं। बोले-घर में ताला बंदकर आए हैं। स्थिति शांत होने के बाद ही जाएंगे।
बहाने बना कर रहे बवाल
अहमदाबाद के मधुपुरा में रहकर सिलाई का काम करने वाले मुकेश कुमार पटना जिले के मोकामा के घोसवरी के रहने वाले हैं। बताते हैं कि सबकुछ ठीक चल रहा था। अचानक तीन दिन पहले मोहल्ले के एक गुजराती कपड़ा सिलवाने आए। पैसे को लेकर विवाद शुरू कर दिया। उसके समर्थन में अन्य गुजराती जुट गए। उन लोगों ने उसकी पिटाई कर दी और गुजरात छोडऩे को कहा।
मोकामा के गौतम सत्यदेव ने बताया कि सोची-समझी राजनीति के तहत गुजरातियों को बिहारियों के खिलाफ भड़काया जा रहा है। इससे गुजरातियों को ही क्षति पहुंचेगी। उनकी फैक्ट्रियों में साठ फीसद मजदूर बिहार के ही हैं।
अहमदाबाद में फैक्ट्री में काम करने वाले बाढ़ निवासी अजीत कुमार एवं धर्मेन्द्र कुमार ने बताया कि आलमारी बनाने वाली फैक्ट्री में सौ की संख्या में उपद्रवी लाठी-डंडे लेकर पहुंचे। जो भी मिला, उसकी पिटाई कर दी। मालिक को सारे बिहारी मजदूरों को भगाने की धमकी देकर चले गए।
रोटी के लिए तरसे, की गई पिटाई
गुजरात में जो हालात हैं, वहां 'भइया' (बिहार, यूपी वालों के लिए संबोधन) लोगों का सुरक्षित रह पाना संभव नहीं। सप्तक्रांति एक्सप्रेस से उतरते ही गुजरात से आए मजदूरों ने कहा कि अपनी माटी पर लौटने के बाद यह एहसास हुआ कि हम सुरक्षित हैं।
गुजरात से लौटे ज्योतिश राय, बृजेश कुमार, अजय कुमार, जितेंद्र, वीरेंद्र, धनेष और रमेश आदि ने बताया कि 28 सितंबर के बाद से घर वापसी पहाड़ सरीखा गुजरा। हम बाजार में निकलते थे तो लोग पैनी नजर से देखते थे। मोहल्ले वालों ने बात करना छोड़ दिया था।
स्थानीय युवकों ने हमारी पिटाई भी की। रविवार को दिन में कई लोग राजपुर स्थित हमारी कॉलोनी में आ धमके। चेतावनी दी, यदि रात में गुजरात नहीं छोड़ा तो खैर नहीं। हम डर गए। हमारे पास किराए तक के रुपये नहीं थे।
दिनभर की मेहनत के बाद इसका जुगाड़ हुआ। रविवार रात्रि करीब 11 बजे छुपते हुए ऑटो से निकटवर्ती किलोल रेलवे स्टेशन पहुंचे। ट्रेन पकड़ रात में एक बजे अहमदाबाद पहुंचे। वहां से कुछ मजदूरों ने दिल्ली तो कुछ ने गोरखपुर की ट्रेन पकड़ ली। सुनील, अमित, मोनू, संजय, दीनबंधु, तारकेश्वर व बिट्टू ने कहा कि घर वापसी के बाद ऐसा लग रहा है जैसे दोबारा जन्म हुआ हो।
रोटी के लिए तरसे, की गई पिटाई
28 सितंबर के बाद से हर दिन रोटी के लिए तरसना पड़ा। जिन फैक्ट्रियों में काम करते थे, वहां से भगा दिया गया। मजदूरी नहीं दी गई। जो रुपये थे, भोजन के जुगाड़ में समाप्त हो गए।
जो गुजराती नहीं बोल पाते, उनके साथ की मारपीट
मजदूरों ने कहा कि भूखों मर जाएंगे, लेकिन अब रोजगार के लिए गुजरात नहीं जाएंगे। अपने ही देश में हमारे साथ बेगानों जैसा व्यवहार हुआ। हमसे गुजराती बोलने को कहा जाता। जो नहीं बोल पाते, उनके साथ मारपीट की जाती थी।
कंपनी ने दिया धोखा, नहीं दी मजदूरी
गुजरात के मेहसाणा जिले में बैग बनाने वाली कंपनी में बगहा के करीब डेढ़ सौ मजदूर काम करते थे। कंपनी ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ पनपे आक्रोश का जमकर फायदा उठाया। वापसी के समय मजदूरी के रुपये देने से मना कर दिया। करीब आठ लाख कंपनी पर बकाया रह गया।