शहादत की पंक्ति में अग्रणी रहे बिहारी जवान, रेंग के पहुंचे वतन, नहीं मानी हार
जब देश की बात होगी तो बिहार का जिक्र होगा। सरहद की सुरक्षा में बिहारी जवानों का अहम योगदान रहा है। वर्ष 2018 में बिहार के 86 सपूत शहीद हुए पर देश पर आंच न आने दी।
जितेंद्र कुमार, पटना। बिहार के खून में देश सेवा रही। इस मिट्टी पर पले-बढ़े वीर सपूतों ने वतन के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। सरहद पर इनकी धमक से देश सुरक्षित रहा। वर्ष 2018 में बिहार के 86 सपूत शहीद हुए पर देश पर आंच न आने दी। सेना दिवस पर बिहार रेजिमेंट के साथ पूरा देश सर्वोच्च बलिदानियों को श्रद्धांजलि देकर याद कर रहा है।
आजादी के पहले हुआ बिहार रेजिमेंट का गठन
देश में 71वां सैनिक दिवस 15 जनवरी को आयोजित किया गया था। उस समय सन् 1949 में ब्रिटिश कमांडर जनरल फ्रांसिस बुचर से पहले भारतीय सैन्य ले. जनरल केएम करियप्पा ने पदभार लिया था। करियप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर बने तब से 15 जनवरी को बड़े गर्व के साथ सेना दिवस मनाया जाता है। भारतीय सेना का गठन तो इस्ट इंडिया कंपनी ने किया था लेकिन 1942 में आजादी के पहले बिहार रेजिमेंट का गठन किया गया। जिसने भारतीय सेवा की इकाई के रूप में वीरता की बड़ी लकीर खींची है। देश के मेजर जनरल तेजवीर सिंह, ब्रिगेडियर मनोज नटराजन सहित सेना के उच्च पदों पर शान के प्रतीक के रूप में सेवा दे रहे हैं।
विजय का प्रतीक है अखौड़ा द्वार और थियेटर
बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में नागरिकों की हिफाजत में बिहार रेजिमेंट के 10वीं बटालियन के जवान तैनात थे। वहां जम्मू-कश्मीर के पुंछ की तरह ही पाकिस्तानी फौज ने भारतीय सैनिकों पर भारी गोलाबारी की, जिसमें बिहारी सिपाही बर्नाबास और सिपाही प्रधान मुरंडी वीर गति को प्राप्त हो गए। जबकि सिपाही पंडा मुंडा और लान्स नायक पौलुस लकड़ा जख्मी हो गए। महीने भर के बाद नवंबर 1971 में बटालियन के तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल को तब के पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश का आदेश मिला। इस युवा बटालियन ने बिहारी वीरता का परिचय दिया और पूर्वी पाकिस्तान पर कब्जा के लिए थियेटर सम्मान हासिल कर लौटा। बिहार रेजिमेंट में बना अखौड़ा द्वार और थियेटर इसी विजय का प्रतीक है।
लड़ाई कैसी भी बिहार ने दिखाया युद्ध कौशल
सेना के मध्य कमान के मेजर जनरल एसबीएल कपूर ने बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ यानी 1991 में स्वर्ण जयंती समारोह के मौके पर वीर बिहारियों के इतिहास संग्रह कराया है। इसमें बिहार के जवानों की वीरता और बलिदान का उल्लेख किया गया है। गोवा की स्वतंत्रता की लड़ाई बिहार रेजिमेंट ने जीती थी। बंगला देश तब पूर्वी पाकिस्तान की आजादी में मुक्ति सेना बनकर वीर बिहारियों ने 1971 में परचम लहराया था। श्रीलंका और सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र के शांति सेना के रूप वीर बिहारियों ने शौर्य और पराक्रम से वीरता का पताका लहराया। नागालैंड, मीजोरम, मणीपुर में प्रवेश की बारी हो या 1944 में वर्मा की लड़ाई में बिहार रेजिमेंट युद्ध कौशल और वीरता का प्रदर्शन किया है।
1971 युद्ध पदक विजेता
वीर चक्र
1. ले.क. पीआइ लौलर
2. लांस नायक चंद्रकेत प्रसाद यादव
3. मेजर एचएस ग्रेवाल (मरनोपरांत)
4.ले.क. पीसी साहनी
5. मेजर डीपी सिंह
6. मेजर एमएम रवि
1971 युद्ध के सेना मेडल
1. सिपाही रामचंद्र पांडेय
2. सिपाही सलूका बनरा (वीरगति)
3. सिपाही प्रदूमन हेम्ब्रम(मरनोपरांत)
4.सूबेदार एंथोनी होरा (मरनोपरांत)
5.हवलदार राम कठिन पांडेय
विशिष्ट सेवा मेडल
1. ले.क. ओपी बिस्ला
2. ले.क. इएम राव
मैंशन इन डिस्पैच (सेना सम्मान)
1. कप्तान एसपी सिंह
2. सेकिंड ले. एडी सिंह
3. नायक सूबे. इंद्रदेव सिंह
4. सिपाही धर्मनाथ सिंह
5. मेजर हरकीरत सिंह
6. हवलदार बिशनदेव सिंह
7. कप्तान एमएल कार
8. मेजर मौजी राम
9. सूबे. बिश्राम दीन
10. मेजर एसआर भोटिया
कारगिल युद्ध में नहीं भूल सकते बिहार का योगदान
तारीख 28 मई 1999। कश्मीर के कारगिल जिले के बटालिक सेक्टर में बिहार रेजिमेंट के पहली बटालियन मोर्चे पर तैनात थी। सैन्य टुकड़ी के साथ मेजर सर्वानन उन्नीकृष्णन पेट्रोलिंग में निकले थे। करीब 14229 फीट की उंचाई पर पाकिस्तान की सेना से आमना-सामना हो गया। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि दुश्मन घुसपैठ कर चुके हैं। वक्त नहीं था कि सेना मुख्यालय से मदद का इंतजार करें। दुश्मन सामने से गोली बरसाए जा रहे थे।
18 सपूतों ने टाइगर हिल पर फहराया तिरंगा
मेजर सर्वानन ने अपने कंधे पर 90 एमएम राकेट लांचर उठाया और दुश्मन पर फायर झोंक दिया। इस हमले में पाकिस्तान के दो घुसपैठिए सैनिक मारे गए। कारगिल युद्ध की शुरुआत यहीं से हुई। दुश्मनों से लड़ते हुए पहला बलिदान मेजर सर्वानन ने दिया। इनके साथ से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सिपाही प्रमोद कुमार, पटना जिले के नायक गणेश प्रसाद यादव जैसे जांबाजों ने कारगिल विजय को शहादत देने वाली अग्रिम पंक्ति में नाम अमर कर गए। बिहार के 18 वीर सपूतों के बलिदान से 26 जुलाई 1999 को सेना ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा कारगिल पर विजय हासिल की। इस युद्ध में देश के करीब 448 सैनिक शहीद हुए। वहीं देश की रक्षा के लिए शहीद मेजर सर्वानन और नायक गणेश प्रसाद यादव को वीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया।
घर वाले करते रहे शव का इंतजार, जिंदा पहुंचा जवान
सन् 1988 में 20 वर्षीय नौजवान शत्रुघ्न सिंह बिहार रेजिमेंट दानापुर में देश सेवा के लिए भर्ती हुआ था। ट्रेनिंग के बाद रेजिमेंट के पहली बटालियन में शामिल हुआ। कश्मीर में पाकिस्तान की सीमा पर 10 वर्षों की सेवा पूरी हो चुकी थी। 17 मई 1999 को छुट्टी लेकर घर लौट रहा था कि कारगिल में युद्ध घोषणा सुनकर घर लौटने का इरादा त्याग दिया। जम्मू से वापस कारगिल पहुंचा और युद्ध के पहले दिन ही शहीद हुए सैनिकों की पहली सूची में शामिल हो गया। घर में 11 दिनों से शव का इंतजार में बीबी-बच्चों की आंखें पथरा गई थीं। सरकार ने मुआवजा राशि का चेक भी पहुंचा दिया था। श्रद्धांजलि दी जा चुकी थी।
पाक दुश्मनों की गोली पैर में लगने के बाद पीठ पर मशीनगन के साथ शत्रुघ्न सिंह बर्फ की चोटी पर रेंग रहे थे। खंजर से बुलेट को निकाल कर तीन दिनों तक पाक सैनिकों पर गोली चलाते रहे। जब पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी थमा तो शत्रुघ्न रेंगते हुए अपने वतन का रुख किया। करीब 11 दिनों के पराक्रम से बटालिक सेक्टर के दुर्गम चोटी स्थित भारतीय सेना के पोस्ट पर लौट आए। अपने पराक्रम के कारण 30 वर्षों की सेवा में शत्रुघ्न सिंह सिपाही से अफसर बन चुके हैं। कारगिल युद्ध विजय के लिए इन्हें राष्ट्रपति ने वीर चक्र से सम्मानित किया। इन दिनों सूबेदार मेजर के रूप में काशी विद्यापीठ बनारस में युवाओं को देश सेवा के लिए तैयार कर रहे हैं।
पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें बिछा जीता अखौड़ा
अखौड़ा शहर अगरतला से पश्चिम अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगभग 10 किलो मीटर दूर है। यहां पाकिस्तान की 12वीं फ्रंटियर फोर्स की तीन बटालियन कब्जा जमाए बैठी थी। यहां पाकिस्तान का टैंक और तोपखाना भी था। यह मोर्चा भौगोलिक बनावट के कारण काफी दुर्गम था। चारो तरफ पाकिस्तानी सैनिक माइन्स बिछाए बैठे थे। अगरतला की सुरक्षा के लिए अखौड़ा से पाकिस्तानियों को हटाना जरूरी था। जब भारतीय सेना के बिहारी सैनिकों ने अखौड़ा फतह की, तब वहां पाकिस्तानी सैनिकों की 37 लाशें पड़ी थीं। करीब 87 फौजी जख्मी हाल में मिले थे। बिहार रेजिमेंट ने मौके पर पाकिस्तान की एक पीटी 76, 105 एमएम तोप और 50 गाडिय़ों पर लदा गोला-बारूद जब्त किया था। इस युद्ध में पाक सैन्य अफसर के अलावा 24 सैनिक को मारे गए थे। उसके 8 सैनिकों को कैद किया गया था।