Bihar Vidhan Sabha Election: सुशांत को इंसाफ दिलाने पर बयानबाजी के साथ बाढ़ और कोरोना पर राजनीति
बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही सियासत का रंग भी बदल रहा है। पिछले एक हफ्ते के दौरान कई मसले उभरकर आए हैं। जानें बाढ़ कोरोना और सुशांत के लिए क्या-क्या हो रहा।
अरविंद शर्मा, पटना। बिहार में चुनाव करीब है तो सियासत का रंग भी क्षण-क्षण बदल रहा है। मौके के साथ मुद्दे बदल रहे हैं। पिछले एक हफ्ते के दौरान कई मसले उभरकर आए हैं। पहले कोरोना के बढ़ते संक्रमण और सरकार की व्यवस्था पर राजनीति गर्म रही। फिर यह स्थान बाढ़ ने ले लिया। अब दो-तीन दिनों से फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर भी सियासी बयानबाजी हो रही है। इसके पहले लॉकडाउन की दुश्वारियों के बीच दूसरे राज्यों से बिहारी कामगारों की वापसी पर भी खूब राजनीति हुई थी।
चुनाव के साथ बदल रहे मुद्दे
विधानसभा चुनाव की तैयारी आगे बढ़ चुकी है। अगले महीने तक अधिसूचना भी संभव है। चुनाव दर चुनाव यहां मुद्दे बदलते रहे हैं। अपराध और भ्रष्टाचार विरोधी नारों से लेकर सुशासन और बिहारी स्वाभिमान तक बारी-बारी से कई मुद्दे आते-जाते रहे, किंतु इस बार एक ही चुनाव में हफ्ते दर हफ्ते कई मुद्दे सामने आ रहे हैं।
सुशांत प्रकरण के हवाले से बयानबाजी
बिहार में सक्रिय सभी दल फिल्म फिलहाल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। सत्तारूढ़ से लेकर विपक्षी दलों तक सबके एजेंडे में सुशांत के परिजनों को इंसाफ दिलाने के बहाने अपने वोट बैंक को मजबूत करना है। दरअसल, सुशांत का मामला अभी राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ रहा है। इसने आम जनमानस को भी गहरे से प्रभावित किया है। बिहारियों की मांग है कि स'चाई पर्दे से बाहर निकले। इस भावना को नेता भी समझ रहे हैं। चुनाव का समय है तो वोटरों को बड़े स्तर पर प्रभावित करने के लिए इससे बढिय़ा तरीका कोई दूसरा नहीं हो सकता है। विभिन्न संगठनों एवं राजनीतिक दलों की ओर से सीबीआइ से जांच कराने की मांग की जा रही है। आम लोगों की भावना को समझते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी लगभग अपनी सहमति दे दी है। उन्होंने कहा है कि सुशांत के पिता अगर सरकार से मांग करेंगे तो सीबीआइ जांच के लिए आगे बढ़ा जा सकता है।
बाढ़ के मसले पर वोट की गुंजाइश
सुशांत से पहले बिहार में बाढ़ का मामला तूल पकडऩे लगा था, जो अभी भी जारी है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अभी तक 50 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। 14 जिलों की करीब सवा सौ पंचायतों में पानी फैल गया है। बिहार के लिए बाढ़ हर साल का सिरदर्द है। फिर भी राज्य सरकार ने अपनी ओर से उपाय करती है। लोगों को बचाने का प्रयास करती है, किंतु विपक्ष को भी राजनीति करने का मौका मिल जाता है। सत्तारूढ़ दलों पर हमले होते हैं। आगे भी होते रहेंगे। इस बार भी नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सरकार को घेरने और अपने वोट बैंक में इजाफा का प्रयास कर रहे हैं।
कोरोना जांच पर भी कहासुनी
इसके पहले कोरोना संक्रमण के मुद्दे पर राजनीति हो रही थी। तब प्रतिदिन 10 हजार से कम जांच हो रही थी और विपक्ष लगातार जांच की संख्या बढ़ाने की मांग कर रहा था। मुद्दा जब जोर पकड़ने लगा तो सरकार भी सतर्क हो गई। प्रशासन में शीर्ष स्तर पर फेरबदल किया और जांच की संख्या बढ़ाकर 30 हजार के करीब पहुंचा दिया। राजनीति में इसे विपक्ष से मुद्दा छीनने का प्रयास माना गया।
प्रवासियों की घर वापसी के बहाने सियासत
संक्रमण से पहले लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे बिहारियों की वापसी पर राजनीति गर्म थी। उनकी मदद के बहाने आरोप-प्रत्यारोप का खेल चला। कहा जाने लगा कि 60-70 लाख बिहारी कामगार एवं छात्र दूसरे प्रदेशों में फंसे हैं। सरकार ने उन्हें वापस लाने की व्यवस्था की। करीब 30 लाख प्रवासी कामगार आए तो उनके लिए रोजगार की व्यवस्था को भी मुद्दा बनाया गया। चुनाव में अभी देर है। अक्टूबर-नवंबर में प्रस्तावित है। तबतक मुद्दों का महाभारत कई दरवाजों को पार कर सकता है। बिहार में मुद्दों की कमी नहीं है और न ही राजनीति के तेवर कभी ढीले होते हैं।