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Bihar Politics: सर्दी के मौसम में भाजपा और जदयू के बीच जमी रिश्तों की बर्फ पिघलने लगी

Bihar Politicsमौसम के उतार-चढ़ाव का असर सियासी मौसम पर भी है। पटना में गुरुवार को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह से मुलाकात करते भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व बिहार प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल। जागरण

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 11:14 AM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 03:47 PM (IST)
Bihar Politics: सर्दी के मौसम में भाजपा और जदयू के बीच जमी रिश्तों की बर्फ पिघलने लगी
भी मौसम के रुख पर निगाह टिकाएं हैं और अपनी-अपनी हांडी पकाने के फेर में हैं।

पटना, आलोक मिश्र। बिहार में इस समय सबसे बड़ी खबर है सर्दी के मौसम में गर्मी की सेंधमारी। पिछले तीन-चार दिनों से गर्म कपड़े बोझ बन गए हैं। गत गुरुवार को तो पिछले 26 साल का रिकार्ड टूट गया, जब तापमान 28.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। मौसम विभाग बता रहा है कि शनिवार के बाद सर्दी के दिन फिर सुधरेंगे। सर्दी के मौसम में अरुणाचल प्रदेश को लेकर जदयू गरम थी तो अब गर्माहट में भाजपा और जदयू के बीच जमी रिश्तों की बर्फ पिघलने लगी है। शराब खुलवाने की मांग करने वाली कांग्रेस टूट की आशंका से घबराई हुई है और नीतीश को लेकर चुप्पी साधे लालू फिर हमलावर हो चले हैं।

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चुनाव बाद के मौसम में सबसे ज्यादा कांग्रेस प्रभावित है। उसके भीतर ही अंसतोष के स्वर इतने मुखर हैं कि बाहरियों को बोलने की जरूरत ही नहीं। पार्टी के विधायकों के टूटने की अटकलें, सदन गठन के महीने भर भीतर ही लगनी शुरू हो गई थी, लेकिन दबे स्वर में। इधर पार्टी के एक पुराने नेता भरत सिंह ने यह कहकर इसे हवा दे दी कि 11 विधायक टूट रहे हैं। उन्होंने विधायक दल के नेता अजीत शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा तक के नाम गिना दिए। भरत सिंह 1985 में कांग्रेस से विधायक बने थे, उसके बाद वे कभी सदन नहीं पहुंचे। लेकिन उनके बयान ने पटना से लेकर दिल्ली तक के कांग्रेस नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी। आखिरकार अजीत शर्मा को सफाई देनी पड़ी कि कोई कहीं नहीं जा रहा। भरत सिंह की बात कांग्रेस ने भले ही हवा में उड़ा दी हो, लेकिन संशय जरूर फैल गया। विधायकों का यह संभावित प्रवाह कांग्रेस से जदयू की तरफ आंका जाने लगा। तर्क दिए जाने लगे कि 43 सीटें पाने वाला जदयू, एनडीए में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए ऐसा कर सकता है।

हालांकि जब नीतीश कुमार से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने हंसी में उड़ा दिया, कहा- मुझसे किसी ने संपर्क नहीं किया।नीतीश भले ही इससे इन्कार करें, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के कान खड़े हो गए हैं। हालांकि सियासी जानकारों के अपने तर्क हैं, उनके अनुसार अरुणाचल प्रदेश में जदयू के छह विधायकों के भाजपा में जाने के बाद नीतीश कुमार को लेकर चली हवा को देखते हुए जदयू भविष्य की संभावना के आधार पर फिलहाल ऐसा नहीं करेगा। वह कांग्रेस को तोड़कर अपना दरवाजा नहीं बंद करेगा। इधर राजग में जदयू व भाजपा के बीच कुछ समय से बंद संवाद भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के गुरुवार को पटना पहुंचने के बाद फिर शुरू हो गया। दोपहर में वे जदयू के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह से मिले और शाम को अपने प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से। बातचीत को सामान्य शिष्टाचार बताया गया, लेकिन राजनीति में बिना मतलब मुलाकात नहीं होती, इस सिद्धांत को मानने वाले मंत्रिमंडल विस्तार व मनोनयन कोटे वाली एमएलसी की 12 सीटों के बंटवारे से जोड़कर इसे देखने लगे। यह माना जा रहा है कि खरमास के बाद दस दिनों के भीतर इस पर फैसला संभव है।

मंत्रिमंडल विस्तार में बंटवारा अब केवल भाजपा व जदयू के बीच ही होना है! चार दलीय एनडीए में चार-चार सीटें लाने वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा व विकासशील इंसान पार्टी को एक-एक पद मिल चुका है। अभी 22 मंत्री और बनाए जाने हैं, लेकिन इधर सहयोगी हम के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने एक और मंत्री पद की मांग करके अपनी महत्वाकांक्षा जता दी। चूंकि राजग का 125 का बहुमत (आवश्यक 122) हम व वीआइपी की चार-चार सीटों के पाये पर ही टिका है। इस पर विपक्ष की भी निगाहें टिकी हैं। वह इन पायों को दरकाने की जुगत में है। इसलिए मांझी की मांग राजग को सतर्क करने के लिए काफी है।

अभी भले ही उन्हें समझा लिया जाए, पर राजनीति में पली महत्वाकांक्षा भविष्य में कभी भी भारी पड़ सकती है। इसलिए इन दोनों सहयोगी को संभाले रखना चुनौती है, क्योंकि वीआइपी में भी सबकुछ ठीक नहीं है। नेता मुकेश सहनी चुनाव हार गए, पर मंत्री बन गए। जबकि विधायकों को कुछ नहीं मिला। उनके भीतर भी कुछ-कुछ पकने लगा है। धीरे-धीरे पकती इस हांडी पर भी महागठबंधन निगाहें गड़ाए है। सभी मौसम के रुख पर निगाह टिकाएं हैं और अपनी-अपनी हांडी पकाने के फेर में हैं।

[स्थानीय संपादक, बिहार]


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