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Bihar Politics: सत्ता पक्ष की टकराहट और विपक्ष की उम्मीद

जिस तरह के हालात हैं उसे देखते हुए जनता यह नहीं समझ पा रही है कि क्या सबकुछ सामान्य है या नए समीकरणों की तरफ बिहार की राजनीति जा रही है? कड़वे बोल केवल बोल भर हैं या टूटन का कारण भी बन सकते हैं?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 01:45 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 01:45 PM (IST)
Bihar Politics: सत्ता पक्ष की टकराहट और विपक्ष की उम्मीद
संजय जायसवाल: व्यवस्था पर सवाल, उपेंद्र कुशवाहा: जदयू की ओर से मोर्चे पर। फाइल

पटना, आलोक मिश्र। ऐसी दोस्ती आपने नहीं देखी होगी जो हमेशा टूटने पर उतारू दिखे, लेकिन टूटे फिर भी नहीं। ऐसा राजनीति में ही होता है, जहां प्रेम नहीं स्वार्थ जोड़ता है आपस में। हित न मिलने पर टकराहट भी होती है। इस समय बिहार को अगर आप देखें तो इसकी झलक आपको स्पष्ट दिखाई देगी, जहां सरकार में शामिल दल ही एक-दूसरे को अलग हो जाने को कह रहे हैं और विपक्ष तमाशा देख रहा है, इस उम्मीद के साथ कि किसी तरह आपस में इनकी फूट हो और उसकी मौज हो। लेकिन दिखने और होने में अंतर होता है।

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विपक्ष की उम्मीद अकारण ही नहीं है। बिहार की सत्ता का समीकरण ही कुछ ऐसा है। भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) 74, जदयू (जनता दल यूनाइटेड) 45, हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) चार, वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) तीन व एक निर्दलीय के समर्थन से एनडीए जादुई आंकड़े 122 से मात्र पांच सीट ही ज्यादा है। जबकि विपक्ष 115 पर टिका है और वीआइपी के मुसाफिर पासवान के निधन से रिक्त हुई बोचहा सीट पर उपचुनाव होना है। भाजपा इस सीट पर अपना प्रत्याशी लड़ाना चाहती है, जबकि चुनाव पूर्व गठबंधन के समय यह वीआइपी को मिली थी और उसने जीती भी थी। वह अपना दावा छोड़ना नहीं चाहती। इसलिए वह गठबंधन धर्म याद दिला रही है और अकेले दम पर भी जीतने का दावा कर रही है। भाजपा के सांसद अजय निषाद, मंत्री सम्राट चौधरी और नीरज कुमार बबलू सहित कई नेता वीआइपी को अलग होने को कह रहे हैं।

भाजपा की टकराहट जदयू से भी बढ़ रही है। पहले जातीय जनगणना को लेकर दूरी बढ़ी। उसके बाद एक पुस्तक में सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी शुरू हुई! उसके बाद शराबबंदी को लेकर गठबंधन तोड़ लेने तक के स्तर पर पहुंच गई। एक तरफ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल व उनके प्रवक्ता मोर्चा संभाले हैं तो दूसरी ओर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, प्रवक्ता नीरज कुमार सहित कुछ वर्तमान व पूर्व विधायक डटे हैं। दोनों के बीच शराबबंदी खटपट का एक बड़ा कारण है। इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में गत शनिवार को 13 लोगों की जहरीली शराब से हुई मौत के बाद भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने व्यवस्था पर जमकर सवाल किए। उन्होंने पूछा, क्या जहरीली शराब से मरने वालों के पूरे परिवार को जेल भेजा जाएगा? उन्होंने बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की। चूंकि शराबबंदी नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा से जुड़ी है, इसलिए जदयू इसे कैसे बर्दाश्त करता। उसकी तरफ से आए जवाब पर संजय जायसवाल ने जदयू नेताओं को मर्यादा में रहने और गठबंधन धर्म एकतरफा न चलने की चेतावनी तक दे डाली। शराबबंदी पर एक अन्य सहयोगी ‘हम’ भी विरोध पर उतारू है। वह इसकी समीक्षा पर जोर दे रहा है। हम ने कहा है कि शराबबंदी कानून में संशोधन का जो प्रस्ताव है उसमें जनता की राय ली जाए और अगर जनता इसे नकारे तो अविलंब यह कानून खत्म किया जाए।

बिहार में सत्तारूढ़ दलों में चल रही इस तरह की बयानबाजी को लेकर जनता हतप्रभ है और विरोधी आशान्वित। नालंदा में 13 मौतों पर न तो तेजस्वी यादव कुछ बोले और न ही लालू प्रसाद। उनकी चुप्पी का कारण तब समझ में आया जब राजद ने नीतीश कुमार को भाजपा से गठबंधन तोड़ राष्ट्रीय राजनीति में जाने की सलाह दे डाली। राजद चाहता है कि नीतीश कुमार उसे समर्थन देकर केंद्र की राजनीति का रुख करें। इधर मुकेश सहनी भी तेजस्वी को अपना छोटा भाई बताने में संकोच नहीं कर रहे। आपस में लड़ाई और विरोधियों के प्रति बढ़ता प्रेम जनता को भ्रम में डाले है। यहां का साथ उत्तर प्रदेश में वैसे ही नहीं चल पा रहा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर लड़ने का मुकेश सहनी का भ्रम तो टूट चुका है और वह अकेले ही ताल ठोक रहे हैं। वहीं जदयू की भी दाल अब नहीं गल पाई है। 51 सीटों की सूची लिए जदयू नेता भाजपा की ओर टकटकी लगाए हैं और बैठकों का क्रम जारी है, लेकिन अभी तक बात नहीं बन पाई है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]


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