Bihar Politics: राजग में फिलहाल तुम्हारी भी जै-जै, हमारी भी जै-जै वाली स्थिति
Bihar Politics विधानसभा चुनाव में कम सीटें मिलने के बाद भी बिहार एनडीए में नीतीश कुमार का कद बना है। विभागों की संख्या भले ही भाजपा के हक में हो लेकिन कामकाज वाले विभाग जदयू के पाले में ही हैं।
आलोक मिश्र। Bihar Politics आखिरकार 84 दिनों बाद भाजपा व जदयू में सहमति बन गई और सीमित मंत्रिमंडल विस्तार पा गया। हमेशा की तरह कुछ को तकलीफ हुई तो कुछ के छीके (भाग्य से) फूट गए। छीके उन 10 के फूटे जो पहली बार मंत्री बने और अरमान उनके फूटे जो फूल-माला तैयार रखे थे। बने 17 मंत्रियों में नौ भाजपा के और आठ जदयू के हैं। अभी भी पांच मंत्री और बनाए जा सकते हैं। पार्टियों के पास यह लालीपाप है, इसलिए तमाम भरोसे में हैं कि शायद उनके दिन भी बहुरें।
सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार लंबे समय से लटका था। सदन के हिसाब से 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसमें अपनी संख्या के आधार पर भाजपा का दावा 22 का था। बड़े भाई की भूमिका में हमेशा रहने वाले नीतीश के कोटे में 12 ही आ रही थीं। जदयू बराबरी पर अड़ी थी। इसलिए मामला लटका था। लटकने का कारण नीतीश कुमार भाजपा के पाले में डाल रहे थे। लंबी बातचीत के बाद सहमति बनी।
सोमवार को भी जब नीतीश कुमार से पूछा गया कि विस्तार कब तक तो उन्होंने भाजपा की तरफ से देरी होने की बात कही। इस बयान को गुजरे कुछ घंटे ही बीते थे कि मंगलवार को विस्तार की खबर आम हो गई। मंत्रियों के नाम सामने आते ही बाढ़ से भाजपा के विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू की कसक खुल कर बाहर आ गई। खुद के लिए तो कह नहीं सकते थे, इसलिए किनारे किए गए पुराने नेताओं, नंदकिशोर यादव व प्रेमकुमार के नाम कटने को गलत ठहराने लगे। भाजपा के दोनों उप मुख्यमंत्रियों तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी को नाकाबिल बताने लगे। किसी ने भी उनके प्रलाप को तवज्जो नहीं दी, लेकिन उनका विरोध गुरुवार तक बीच-बीच में रह-रह कर फूटता रहा।
यह तो रही भाजपा की बात, लेकिन चार-चार सीटों के सहारे राजग की सरकार बनाने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) और हंिदूुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की भी आस बंधी थी कि एक-एक मंत्री उनका और बन जाए। कोटे के हिसाब से एक-एक पद पहले ही मिल चुका है, इसलिए ऐसा होना था नहीं, सो नहीं हुआ। हम के जीतनराम मांझी तो चुप्पे बैठ गए, लेकिन वीआइपी के मुकेश सहनी नाराजगी जाहिर करते हुए दिल्ली चले गए अमित शाह से मिलने। सहनी का बोलना बनता भी है, क्योंकि मांझी और सहनी में अंतर यह है कि मांझी चुनाव जीते और मंत्री नहीं बने, जबकि सहनी चुनाव हारे और उसके बाद भी मंत्री बने। उनकी टीम के जीते चारों टापते रह गए। इसके बाद डेढ़ साल के लिए भाजपा कोटे से विधानपरिषद के सदस्य भी बन गए। अब पार्टी के भीतर महत्वाकांक्षाएं ठोकर मार रही हैं। इससे संगठन की एकता चरमराने का खतरा बढ़ा है। सहनी की ताकत उनकी चार विधानसभा सदस्यों की यह टीम ही है। अगर यह टूटी तो उनका भाव गिरने में वक्त नहीं लगेगा। इसलिए वह शोर मचाते नजर आ रहे हैं कि मिले चाहे नहीं, लेकिन टीम को तो लगे।
भाजपा व जदयू दोनों ने ही नए चेहरों पर ज्यादा भरोसा दिखाया है। जदयू के आठ में दो पद ऐसों को मिले जो सदन में उनकी 43 की टीम में नहीं थे। 11 मुस्लिम प्रत्याशी लड़ाने के बाद भी एक भी न जिता पाने के कारण सदन में जदयू के पास मुस्लिम चेहरा नहीं था। बसपा से जीते जमा खां को पार्टी में शामिल कर उन्हें मंत्री बनाया गया। चिराग पासवान से खता खाए नीतीश ने उनकी संसदीय सीट जमुई की एक विधानसभा से निर्दलीय जीते उनके विरोधी सुमित सिंह को मंत्री बना उनके लिए रोड़े बिछाए। पूर्व आइपीएस सुनील कुमार को मंत्री बनाया। पहली बार सदन पहुंचे जयंत राज को भी मंत्री पद मिला। वहीं भाजपा ने किसी भी सदन का सदस्य न होने के बावजूद पूर्व सांसद जनक राम को मंत्री बना दिया और शाहनवाज हुसैन को वाया विधान परिषद, कैबिनेट में शामिल किया।
मंत्रिमंडल का विस्तार जिस ढंग से हुआ है, उससे एक बात फिर साबित हुई है कि विधानसभा चुनाव में कम सीटें मिलने के बाद भी बिहार एनडीए में नीतीश कुमार का कद बना है। विभागों की संख्या भले ही भाजपा के हक में हो, लेकिन कामकाज वाले विभाग जदयू के पाले में ही हैं। इस तरह तुम्हारी भी जै-जै, हमारी भी जै-जै वाली स्थिति राजग में फिलहाल बन गई है।
[स्थानीय संपादक, बिहार]