Bihar Politics: बिहार के राजनीतिक माहौल में सभी चल रहे अपने-अपने दांव
आलाकमान को लगता है कि बिहार में ठंडी पड़ी पार्टी को इस युवा जोश से गर्मी मिलेगी। आलाकमान की खुशी देख स्थानीय नेता भी ताली बजा रहे हैं। हालांकि ताली बजाने वालों के भीतर क्या है इसका पता तो आगे ही चलेगा।
पटना, आलोक मिश्र। उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल बन रहा है। पंजाब में चुनाव से पहले कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बदल दिया और जिसके कारण बदला वही प्रदेश अध्यक्ष इस्तीफा देकर फजीहत करा बैठा। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिष्ठा अपनी सीट पर लगी है। वोट पड़ चुके हैं और आज नतीजा आना है। ऐसे राजनीतिक माहौल में बिहार भी शांत नहीं है। यहां भी सभी अपने-अपने दांव चलने में लगे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता विपक्ष तेजस्वी यादव में मुद्दे छीनने की होड़ लगी है तो लोक जनशक्ति पार्टी में चाचा पारस और भतीजे चिराग में चुनाव चिन्ह बंगले को लेकर लड़ाई तेज हो चली है। कन्हैया कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ कांग्रेस की बंशी बजाने चल दिए हैं।
बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पुरानी है। नीतीश कुमार इसे लेकर चुनावी मैदान में भी उतर चुके हैं, लेकिन यह मांग पूरी नहीं हो सकी। अभी सोमवार को जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि हम थक गए इसकी मांग करते-करते इसलिए अब विशेष पैकेज मांगे जाएंगे। बात व्यावहारिक थी, कई बार ऐसे पैकेज बिहार को मिले भी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी मंच से भी इसे बता चुके हैं। विजेंद्र यादव की बात का समर्थन राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी किया, लेकिन विपक्ष ने इसे मुद्दा बना दिया। मंगलवार को तेजस्वी यादव ने यह घोषणा कर दी कि अगर आगामी लोकसभा चुनाव में हमारे पास 40 में 39 सीटें आ जाती हैं तो प्रधानमंत्री कोई भी हो, बिहार आकर मांग पूरी करेंगे। नीतीश ने इसे दिल पर ले लिया और अगले दिन स्पष्ट कर दिया कि हम पीछे नहीं हटे हैं, यह हमारी पुरानी मांग है। भले ही पूरा न हो, लेकिन मुद्दा फिर जिंदा हो गया है। जातिगत जनगणना के बाद यह दूसरा अवसर है जब तेजस्वी द्वारा बनाए जा रहे मुद्दे को लपक कर नीतीश अगुआ बने हैं, लेकिन तेजस्वी भी पीछे नहीं हैं। इधर नीतीश विशेष राज्य के मुद्दे पर बोले तो बिहार की नदियों को जोड़ने का मुद्दा उठा उन्होंने नीतीश के लिए एक पिच और तैयार कर दी है। अब देखना है कि इस पर नीतीश कब आते हैं?
नई दिल्ली में रविवार को विशेष राज्य के मुद्दे पर पत्रकारों से बात करते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। प्रेट्र
बिहार में कल से विधानसभा की दो सीटों (तारापुर एवं कुश्वेश्वर स्थान) पर उपचुनाव के लिए नामांकन शुरू हो गया है। चिराग पासवान इन सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुके हैं। स्थिति यह है कि उनकी लोक जनशक्ति पार्टी चाचा पारस और उनके बीच दो फाड़ हो चुकी है और असली दावेदार का मुद्दा चुनाव आयोग में फंसा है। आठ अक्टूबर को नामांकन का अंतिम दिन है। इससे पहले अगर फैसला नहीं आता है तो सिंबल किसी को नहीं मिलेगा। पारस को संसदीय दल के नेता की मान्यता मिल चुकी है और रामविलास की जगह केंद्र में मंत्री भी बना दिए गए हैं। पार्टी का असली दावेदार वह खुद को मानते हैं और एनडीए का घटक होने के कारण उन्हें भी चुनाव नहीं लड़ना है, इसलिए फैसले को लेकर उन्हें कोई जल्दी नहीं है, लेकिन चिराग को है। चिराग ने आयोग से मांग की है कि सुनवाई जल्दी करके इस पर फैसला करें, ताकि उनकी पार्टी चुनाव लड़ सके। चिराग चुनाव के बहाने चाहते हैं कि जल्दी फैसला हो जाए। उन्हें उम्मीद है कि फैसला उनके पक्ष में ही आएगा, लेकिन चाचा पारस भी कम आश्वस्त नहीं हैं। लड़ाई रोचक है और देखना दिलचस्प रहेगा कि रामविलास की पार्टी का कौन असली दावेदार होगा। हालांकि चिराग के समर्थकों को आठ से पहले फैसला आने की उम्मीद कम ही है। ऐसे में बिना बंगले के चुनाव में उतरना चिराग की मजबूरी बन सकती है।
इन उपचुनाव में कुश्वेश्वर स्थान पर लड़ने का मन कांग्रेस ने भी बनाया है और वह इस समय खुश भी है, क्योंकि भाकपा के तेज तर्रार युवा नेता कन्हैया कुमार अब उसके साथ आ गए हैं। कन्हैया के कांग्रेस में आने की हवा तो दो-तीन महीने से ही चलने लगी थी, लेकिन दो बार राहुल गांधी से उनकी मुलाकात के बाद भी कन्हैया इसे नकारते रहे और भाकपा भी उन पर विश्वास करती रही। जब मंगलवार को कन्हैया पूरी तरह कांग्रेस के हो लिए तब भाकपा की नींद टूटी। अब भाकपा याद दिला रही है कि उसने कन्हैया को क्या-क्या नहीं दिया। पार्टी में ओहदा दिया, लोकसभा चुनाव में अपनी सबसे मजबूत सीट बेगूसराय से चुनाव लड़ाया, उनके साथ कारों का काफिला लगाया। इसके बाद भी जब वह उनके नहीं हुए तो किसी और के कितने दिन रहेंगे? इधर भाकपा से इतर कांग्रेस कन्हैया को पाकर फूली नहीं समा रही है।
[स्थानीय संपादक, बिहार]