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Bihar Politics: सीएम नीतीश को पंचायती राज की पसंद आ गई यह बात, विपक्ष की भी भावना का किया सम्‍मान

नीतीश कुमार ने 15 जून के बाद बिहार में विघटित त्रिस्‍तरीय पंचायतों के लिए परामर्शी समिति बनाने का फैसला सबकी सुनकर लिया। विपक्ष ने सबसे पहले कार्यकाल बढ़ाने की मांग की थी। सत्तारूढ़ दलों पर दबाव बढ़ा तो पक्ष में खड़े हुए। जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से अब सब खुश हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Wed, 02 Jun 2021 01:18 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jun 2021 02:11 PM (IST)
Bihar Politics: सीएम नीतीश को पंचायती राज की पसंद आ गई यह बात,  विपक्ष की भी भावना का किया सम्‍मान
बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तस्‍वीर ।

पटना, अरुण अशेष। विघटित त्रिस्तरीय पंचायतों में निवर्तमान जन प्रतिनिधियों की भागीदारी तय कर सीएम नीतीश की सरकार ने सर्वदलीय भावना का सम्मान किया है। शुरुआती दौर में सरकार दुविधा में थी। उसके पास दो विकल्प था। एक-15 जून के बाद पंचायती राज व्यवस्था सरकारी अधिकारियों के हवाले कर दिए जाएं। दो-प्रबंध या परामर्शी समिति का गठन कर निवर्तमान प्रतिनिधियों की भागीदारी कायम रखी जाए। पहला विकल्प इसलिए सहज लग रहा था कि राज्य के नगर निकायों में यह पहले सेे लागू है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले साल जब पंचायतें  विघटित हुई थीं, प्रशासक बहाल कर दिए गए थे। झारखंड ने ऐसी ही स्थिति आने पर दूसरे विकल्प का चयन किया है। वहां सभी तीन स्तरों पर प्रबंध समिति बना दी गई है। वरीयता निवर्तमान जन प्रतिनिधियों को दी गई है।

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यह अप्रैल के तीसरे सप्ताह में तय हो गया था कि कोरोना संक्रमण के कारण पंचायत चुनाव समय पर नहीं होंगे। 21 अप्रैल को राज्य चुनाव आयोग ने विचार करने के लिए 15 दिनों का समय मांगा था। मई के पहले सप्ताह में संक्रमण कम होने के बदले बढ़ गया। इसके साथ ही साफ हो गया कि 15 जून तक चुनाव होना किसी भी हालत में संभव नहीं है। सरकार को वैकल्पिक व्यवस्था करनी ही होगी।

विरोधी दलों से उठी मांग

मुख्य विपक्षी दल राजद, सहयोगी भाकपा, माकपा और भाकपा माले ने सबसे पहले यह मांग की कि पंचायती राज संस्थाओं के कार्यकाल छह महीने या अगले चुनाव तक के लिए बढ़ा दिए जाएं। इस मांग पर जोर देने के लिए भाकपा की ओर से तीन जून को सभी प्रखंड मुख्यालयों पर वर्चुअल धरना प्रस्तावित था। नई बात यह हुई कि सरकार की सहयोगी हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी भी कार्यकाल बढ़ाने की मांग के पक्ष में खड़ी हो गई। भाजपा का प्रदेश नेतृत्व निर्णय लेने में देर कर रहा था। शायद इसलिए भी ग्राम पंचायतों में किसी अन्य दल की तुलना में भाजपा समर्थकों का प्रतिनिधित्व कम है। जबकि स्थानीय निकायों से चुने गए सबसे अधिक विधान पार्षद भाजपा के ही हैं।

विधान पार्षदों ने बढाया दबाव

स्थानीय क्षेत्र प्राधिकार से निर्वाचित भाजपा के तीन विधान परिषद सदस्य डा दिलीप कुमार जायसवाल, टुन्नाजी पांडेय और आदित्य नारायण पांडेय ने नेतृत्व पर दबाव बढ़ाया। पंचायती राज मंत्री सम्राट चैधरी पहले से जन प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी के पक्ष में थे। इधर मुखिया संघ के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने भाजपा सांसद रामकृपाल यादव से संपर्क किया। इन गतिविधियों का नतीजा यह निकला कि भाजपा भी निवर्तमान जन प्रतिनिधियों के पक्ष में खड़ी हो गई।

यह संरचना नीतीश की देन

राज्य की त्रिस्तरीय पंचायतों की मौजूदा संरचना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की देन है। पंचायतों में विभिन्न स्तर पर दिए गए आरक्षण के कारण उनका एक बड़ा समर्थक वर्ग तैयार हो गया है। आरक्षण के कारण महिलाएं अति पिछड़ी एवं अनुसूचित जाति, जन जातियां गुमनामी से सीधे मुख्यधारा की राजनीति में अगली कतार में आ गई हैं। इसका असर लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी नजर आता है। लिहाजा, निवर्तमान जन प्रतिनिधियों की परामर्शी समिति में भागीदारी का प्रस्ताव नीतीश को पसंद आ गया।


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