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Bihar Politics: बिहार के झटके को अवसर के रूप में देख रही भाजपा, खुलकर उतरने का मिलेगा मौका

भाजपा नेताओं की मानी जाए तो मंगलवार को नीतीश कुमार की ओर से राजग तोड़ने का फैसला सुनाया गया। यानी भाजपा के सिर गठबंधन तोड़ने का जिम्मा नहीं है। पिछले दो वर्षों में विकास योजनाएं परवान चढ़नी शुरू हुई थी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 08:24 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 08:24 PM (IST)
Bihar Politics: बिहार के झटके को अवसर के रूप में देख रही भाजपा, खुलकर उतरने का मिलेगा मौका
पीएम मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिहार में जो कुछ हुआ भाजपा के लिए वह मनमाफिक तो नहीं है लेकिन इस झटके को सकारात्मक रूप से लेते हुए अवसर के रूप में देखा जाने लगा है। दरअसल यही क्षण भाजपा के लिए आगे की लड़ाई का पूरा मैदान तैयार करेगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि उसका स्ट्राइक रेट किसी भी दूसरे दल से ज्यादा है। अब से डेढ़ दो साल बाद लोकसभा चुनाव है और तीन साल बाद विधानसभा चुनाव। यानी भाजपा के पास खुलकर राजग और महागठबंधन सरकारों में तुलना करने का मौका भी होगा और अपनी नीतियों को जनता के पास परोसने का अवसर भी। कार्यकर्ताओं की भी इसी मनोदशा के साथ जमीन पर जुटने को कहा जाएगा।

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बिहार में परिस्थितियां बदलनी तय

भाजपा नेताओं की मानी जाए तो मंगलवार को नीतीश कुमार की ओर से राजग तोड़ने का फैसला सुनाया गया। यानी भाजपा के सिर गठबंधन तोड़ने का जिम्मा नहीं है। पिछले दो वर्षों में विकास योजनाएं परवान चढ़नी शुरू हुई थी। रोजगार परक उद्योग क्षेत्र में तो पहली बार विकास की आहट मिलनी शुरू हुई थी और खुद नीतीश ने इसे स्वीकारा था। केंद्रीय योजनाओं को धार मिली थी। अब जबकि सरकार बदल चुकी है तो परिस्थितियां बदलनी तय है।

खुद के भरोसे ही सरकार बनाने की कवायद

इस मुद्दे पर तो भाजपा अभी से मुखर हो गई है और इतिहास की याद दिलाते हुए नीतीश की राजनीति को व्यक्तिगत अवसरवाद की तरह दिखाने का प्रयास शुरू हो चुका है। इसमें संदेह की कोई जगह नहीं कि भाजपा देर सबेर खुद के भरोसे ही सरकार बनाने की कवायद में जुटने वाली थी। हाल के दिनों में बिहार में भाजपा के तीन दिवसीय कार्यक्रम में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी से इस संदेश को और बल मिला था और जदयू असहज हुआ था इसमें भी संदेह नहीं। भाजपा नेताओं को यह भी भरोसा है कि 2020 चुनाव के बाद मंत्रिमंडल गठन में भी जिस तरह अतिपिछड़ी जाति से आने वाली रेणु देवी को उप मुख्यमंत्री बनाया था उसका संदेश आगे तक जाएगा।

अति पिछड़ा और महिला में विशेष सेंध की तैयारी

ध्यान रहे कि नीतीश ने ही अतिपिछड़ा का कार्ड खेला था और राजनीतिक रूप से वह उनके लिए लाभदायक भी था। अब यह जताने की कोशिश होगी कि नीतीश को अतिपिछड़ा और सशक्त महिला बर्दाश्त नहीं है। यह भी ध्यान रहे कि 2010 में नीतीश के महिला कार्ड ने असर दिखाया था। भाजपा इन दोनों कार्ड पर ही वार करेगी। बिहार की राजनीतिक लड़ाई में भाजपा, जदयू और राजद के बीच जातिगत खांचा कुछ इस तरह उलझा रहा है कि किसी के लिए भी अकेले पार पाना मुश्किल रहा है। नीतीश लंबे समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। ऐसे मे भाजपा इसे एक ऐसे अवसर के रूप में देख रही है, जहां सीधे नीतीश पर वार कर जदयू के वोट को खींचने की कोशिश होगी।

2020 में सबसे अच्छा रहा था भाजपा का स्ट्राइक रेट

गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीट लड़कर 74 सीटें जीती थी जबकि राजद 144 लड़कर 75। जबकि जदयू 115 लड़कर 43 सीट हासिल कर पाई थी। हालांकि 2015 में स्थिति अलग थी, जब राजद और जदयू इकट्ठा मैदान में था। तब इन दोनों दलों का स्ट्राइक रेट अच्छा था। पर भाजपा नेताओं की मानी जाए तो उसके बाद से मोदी सरकार की योजनाओं ने जमीन पर असर दिखाना शुरू कर दिया है। कार्यकर्ता पहले भी मैदान में थे। अब उनके हाथ पैर खुले हैं।


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