Bihar MLC Election 2020: अत्यंत पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बढ़ी भागीदारी, अनुसूचित जाति हाशिये पर
विधायकों के वोट से भरी जाने वाली विधान परिषद की नौ में से चार सीटें इस बार अत्यंत पिछड़ी जातियों के हिस्से में आ गई। मुस्लिम-सवर्णों पर रहा ध्यान। एससी से नहीं बना कोई।
पटना, अरुण अशेष। विधायकों के वोट से भरी जाने वाली विधान परिषद (Bihar Legislative Council) की नौ में से चार सीटें इस बार अत्यंत पिछड़ी जातियों के हिस्से में आ गई। अल्पसंख्यकों और समग्रता में सवर्णों को भी संख्या के अनुपात में अच्छा हिस्सा मिला, जबकि अनुसूचित जाति (SC) के किसी सदस्य को कोई हिस्सा नहीं मिला। सवर्ण में भी कायस्थ और राजपूत को मौका मिला। ये सीटें जदयू के हारुण रशीद, पीके शाही, डा. अशोक चौधरी, सतीश कुमार, हीरा प्रसाद बिंद और सोनेलाल मेहता, भाजपा के कृष्ण कुमार सिंह, राधा मोहन शर्मा एवं संजय प्रकाश ऊर्फ संजय मयूख के रिटायर होने से खाली हुईं थीं।
जदयू ने अत्यंत पिछड़ी बिरादरी को दी तीनों सीटें
इन सबका जातीय हिसाब इस तरह है- अति पिछड़ा-दो, भूमिहार-तीन, पिछड़ा-एक, मुस्लिम-एक, अनुसूचित जाति-एक एवं कायस्थ-एक। नए चयन में सभी दलों ने अपने राजनीतिक समीकरण का ख्याल रखा। जदयू ने अपने सबसे बड़े सामाजिक समूह हो साधने की कोशिश की। पार्टी ने सभी तीन सीटें अत्यंत पिछड़ी बिरादरी से आने वाले नेताओं को दी। कुमुद वर्मा, भीष्म साहनी और प्रो. गुलाम गौस को उम्मीदवार बनाया। प्रो. गौस मुसलमानों में राइन बिरादरी के हैं। यह जाति अत्यंत पिछड़ों की सूची में शामिल है। राज्य में सौ से अधिक संख्या वाली अत्यंत पिछड़ी जातियों की आबादी करीब 40 फीसदी है। हाल के चुनावों में इनके बड़े हिस्से का झुकाव जदयू की ओर रहा है।
भाजपा, राजद व कांग्रेस ने रखा सवर्णों का ध्यान
भाजपा को तीन के बदले दो सीटें मिली। उसने कुशवाहा बिरादरी के सम्राट चौधरी को टिकट दिया। पिछली बार कुशवाहा बिरादरी के सोनेलाल मेहता जदयू के सदस्य थे। संजय मयूख को दूसरी बार परिषद में जगह मिली है। वह कायस्थ हैं। रिटायर हुए दो भूमिहार सदस्यों के बदले भाजपा ने इस बिरादरी के किसी को उम्मीदवार नहीं बनाया। राजद ने राजपूत, मुस्लिम और अत्यंत पिछड़ी जाति से उम्मीदवारों का चयन किया। उसके दो उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह और फारूख शेख सवर्ण हैं। कांग्रेस ने सवर्ण मुस्लिम तारिक अनवर को उम्मीदवार बनाया था। तकनीकी वजह से उनकी उम्मीदवारी संभव नहीं हो पाई। विकल्प के तौर पर डाॅ. समीर कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया गया। वह सवर्ण हैं।
रिटायर नौ में से एससी का कोई नहीं
रिटायर नौ में अनुसूचित जाति के इकलौते सदस्य डाॅ. अशोक चौधरी थे। उन्हें 2014 में कांग्रेस ने परिषद में भेजा था। 2018 में वे जदयू में शामिल हुए। दूसरे दलों से आने वाले परिषद सदस्यों को जदयू कम से कम एक बार जरूर विधान परिषद में अवसर देता है। फिलहाल, चौधरी इसके अपवाद बन गए हैं। वह राज्य सरकार में मंत्री हैं। अगर सदन की सदस्यता नहीं मिली तो अक्टूबर में मंत्री पद भी चला जाएगा। जदयू-भाजपा के लोगों की उम्मीद अब राज्यपाल कोटे की 12 सीटों पर है। वंचित लोगों को दोनों दलों के नेतृत्व ने इंतजार करने के लिए कहा है। अब तक सिर्फ भाजपा के कृष्ण कुमार सिंह ने चयन में नाराजगी पर असंतोष जाहिर किया है। बाकी लोग राज्यपाल कोटे के मनोनयन का इंतजार कर रहे हैं।