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बिहार विधान परिषद की सीटें खाली हैं, फिर भी दावेदार-पैरवीकार गायब; सूने पड़े हैं नेताओं के दरबार

कोरोना का सितम हर जगह है। विधान परिषद की 29 सीटें खाली हैं। कोरोना का डर नहीं रहता तो दलों के निर्णायक नेता के दरबार में दावेदारों और पैरवीकारों की भीड़ लगी रहती।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 06:08 PM (IST)Updated: Sat, 23 May 2020 10:38 PM (IST)
बिहार विधान परिषद की सीटें खाली हैं, फिर भी दावेदार-पैरवीकार गायब; सूने पड़े हैं नेताओं के दरबार
बिहार विधान परिषद की सीटें खाली हैं, फिर भी दावेदार-पैरवीकार गायब; सूने पड़े हैं नेताओं के दरबार

पटना, अरुण अशेष। कोरोना का सितम हर जगह है। विधान परिषद की 29 सीटें खाली हैं। कोरोना का डर नहीं रहता तो दलों के निर्णायक नेता के दरबार में दावेदारों और पैरवीकारों की भीड़ लगी रहती। फिलहाल पूरी शांति है। पेशेवर पैरवीकारों की जिंदगी बेलज्जत हो गई है। सामान्य दिनों में टिकट मिलने न मिलने तक इनकी खूब इज्जत होती है।

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परिषद की 21 सीटें हैं खाली

परिषद की खाली हुई 29 में से 21 सीटें नेतृत्व की पसंद से भरी जाएंगी। इनमें से नौ सीटें विधायकों के वोट से भरेंगी। वोट देने के मामले में विधायकों की अपनी पसंद नहीं होती है। नेतृत्व जिसे उम्मीदवार बनाता है, विधायक वोट दे देते हैं। रिक्ति और उम्मीदवारों की संख्या बराबर हो गई तो चुनाव की नौबत ही नहीं आती है। ज्यादा यही होता है। राज्यपाल कोटे के 12 सदस्य सरकार तय करती है। ये विशेषज्ञ होते हैं। सरकार में दो दल शामिल हैं। जदयू और भाजपा से जुड़े लोग इस कोटे से जाएंगे।

जदयू-राजद के खाते में तीन-तीन

उधर, विधायकों के वोट से भरी जाने वाली नौ सीटों में जदयू-राजद के खाते में तीन-तीन, जबकि भाजपा तथा कांग्रेस के खाते में क्रमश: दो और एक सीट जाएगी। भाजपा और कांग्रेस में उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया अलग है। राज्य की ओर से भेजी गई उम्मीदवारों की सूची पर केंद्रीय नेतृत्व की स्वीकृति लेनी होती है। जबकि जदयू और राजद का निर्णय राज्य में ही हो जाता है। फिलहाल किसी दरबार में आम लोगों की एंट्री नहीं हो पा रही है। 

क्या है दरबारों का हाल

जदयू दरबार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। उनका निर्णय सर्वोपरि होता है। इस समय वे सिर्फ राहत, बचाव और इलाज के उपायों पर ध्यान दे रहे हैं। इंतजाम का फीडबैक और सुधार के बारे में सलाह लेने की गरज से रोजाना उनकी नेताओं-कार्यकर्ताओं से बातचीत होती है, लेकिन कोई कार्यकर्ता उम्मीदवारी का दावा पेश नहीं कर पाता है। उन्हें सुकून है।

भाजपा दरबार 

भाजपा में उम्मीदवारों का पैनल कोर कमेटी तैयार करती है। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की भूमिका बड़ी होती है। वह इन दिनों परहेज से रह रहे हैं। मुख्यमंत्री के साथ चुनिंदा बैठकों में शामिल होते हैं। अपने सरकारी आवास पर आम लोगों से मुलाकात नहीं करते हैं। हां, मोबाइल पर उनसे बातचीत हो जाती है। टोन से उम्मीदवारों की मंशा भांप जाते हैं। कह देते हैं- अभी कोरोना से लड़िए। बाकी बातें बाद में होंगी। 

राजद दरबार

विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के दरबार में भी सूनापन है। फिर भी कुछ लोग हालचाल पूछने के बहाने दावेदारी पेश कर देते हैं, लेकिन यहां अब भी अंतिम निर्णय सुप्रीमो लालू प्रसाद ही करते हैं। वे रांची के अस्पताल में हैं। कोरोना के चलते उनसे लोगों का मिलना मुश्किल है। मिलने के लिए यात्रा पास का मसला अलग से है। डाॅक्टरों ने भी कम मिलने की हिदायत दी है। लिहाजा, उम्मीदवार और पैरवीकार वहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

कांग्रेस दरबार

कांग्रेस को एक सीट के लिए उम्मीदवार का नाम तय करना है। अधिक उम्मीद यह है कि नाम आलाकमान के स्तर से ही तय हो जाए। प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. मदनमोहन झा कोरोना के प्रोटोकॉल का पूरा पालन कर रहे हैं। न टालने लायक बैठक में ही शामिल होते हैं। गैर-जरूरी मुलाकात नहीं करते हैं। 


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