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Bihar Govt. Oath Ceremony: नई सरकार का नया हो सकता है रोडमैप, CM नीतीश के सामने चुनौतियां भी नईं

Bihar Govt. Oath Ceremony बिहार में नीतीश कुमार की नई एनडीए सरकार का रोडमैप नया हो सकता है। बदले हालात में नीतीश कुमार के सामने नई चुनौतियां भी होंगीं। उनकी कोशिश आम लोगों का विश्वास जीत कर लोकप्रिय सरकार देने की होगी।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 09:19 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 09:19 PM (IST)
Bihar Govt. Oath Ceremony: नई सरकार का नया हो सकता है रोडमैप, CM नीतीश के सामने चुनौतियां भी नईं
बिहार चुनाव: मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार। फाइल तस्‍वीर।

पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Govt. Oath Ceremony नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार नई नहीं है, किंतु चुनाव में विपक्ष की ओर से जिस तरह की चुनौतियां पेश की गईं, उससे साफ है कि अबकी शासन की प्राथमिकताओं में थोड़ी तब्दीली जरूर आ सकती है। नीतीश कुमार डेढ़ दशक तक बिहार में गठबंधन की सरकार चलाते आए हैं। बिहार के विकास का रोडमैप उनके दिमाग में है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि सुशासन के लिए कब और कौन सी तकनीक अपनाई जाए। सहयोगी दलों से कैसा व्यवहार किया जाए और उनसे कब-कैसी अपेक्षा की जाए। यह भी कि जरूरत पड़े तो रोडमैप में क्या-क्या तब्दीली लाई जाए? हालांकि, नई सरकार में उनके सामने कई चुनौतियां हैं। उनके सामने नई लकीर खींचने की बड़ी चुनौती भी है।

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पूरे करने होंगे रोजगार और नौकरियों के वादे

भारतीय जनता पार्टी (BJP), हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (HAM) और विकासशील इनसान पार्टी (VIP) के साथ सरकार चलाते हुए नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपसी एकता को बरकरार रखते हुए विपक्ष के उन मुद्दों का जवाब देने की होगी, जिनके बूते चुनाव के दौरान वितंडा खड़ा किया गया। रोजगार और नौकरियों के वादे ने आम जनता को आकर्षित किया और वोटों के समीकरण को प्रभावित किया। अबकी विधानसभा चुनाव में नजदीकी मुकाबले से सबक लेकर सरकार का पूरा जोर आम लोगों का विश्वास जीतने पर ज्यादा रहेगा। एक लोकप्रिय सरकार देने की पूरी कोशिश होगी।

सहयोगी दलों के साथ तालमेल बड़ी चुनौती

सरकार के सामने दूसरी चुनौती सहयोगी दलों के साथ तालमेल बिठाने की होगी। यह इसलिए भी कि पिछले डेढ़ दशक में पहली बार ऐसा होगा, जब एनडीए की सरकार में सुशील कुमार मोदी की भूमिका नहीं होगी। नई सरकार के सामने बीजेपी के नए प्रदेश नेतृत्व से समन्वय बिठाकर आगे बढ़ना होगा। गठबंधन की सरकार के लिए यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व के प्रति भरोसा जता दिया है। माना जा रहा है कि आलाकमान ने जब लाइन खींच दी है तो प्रदेश नेतृत्व के सामने भी कोई दिक्कत नहीं आएगी। सरकार अपने तरीके से ही चलती रहेगी।

प्रचार मंत्र आधुनिक बना सकती है सरकार

नीतीश कुमार की पहचान बिहार को नए रास्ते पर लाकर सुशासन देने से जुड़ी है। पिछले 15 वर्षों के दौरान नीतीश सरकार ने अपराध पर नियंत्रण किया, सड़कों का जाल बिछाया और गांव-गांव तक बिजली पहुंचाई। जो भी किया, चुपचाप किया। रीति-नीति और प्रीति के साथ किया। काम का हल्ला नहीं किया। नई चुनौतियों के चलते माना जा रहा है कि अगली सरकार की रणनीति थोड़ी अलग होगी। विकास का नीतीश फार्मूला तो पुराना ही होगा पर संकल्प का रोडमैप बदल सकता है। विपक्ष के प्रोपगंडा से बचने के लिए सरकार को अपने प्रचार तंत्र को अत्याधुनिक बनाना पड़ सकता है।

चुनाव में कठिन संघर्ष की भी करेंगे समीक्षा

नीतीश कुमार ने सरकार चलाने के दौरान क्राइम, करप्शन और कम्युनिलिज्म से कभी समझौता नहीं किया। बेबाक बोले और बेदाग शासन किया। फिर भी चुनाव में कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा तो नीतीश अपने तरीके से इसकी समीक्षा भी जरूर करेंगे। उनकी शैली भी रही है। उनके फैसले अगर गलत निकल जाते हैं तो समीक्षा भी करते हैं, जो निष्कर्ष आता है उसपर अमल भी करते हैैं।

आम लोगों का विश्वास जीतने पर जोर

लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बेदखल कर नीतीश कुमार को बिहार ने 15 साल पहले नेतृत्व की बागडोर सौंपी थी। कई मोर्चों पर उन्होंने अपेक्षाओं को पूरा भी किया। किंतु रोजगार के मोर्चे पर अभी भी काफी काम करने की गुंजाइश है। कोरोना के खतरे के बीच सरकार ने महसूस किया है कि प्रदेश की तरक्की के लिए पलायन रोकना जरूरी है। सरकार के स्तर से प्रयास भी किए गए हैैं। किए भी जा रहे हैैं। आंशिक सफलता भी मिली है। नीतीश कुमार बार-बार बिहार में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना कर रोजगार बढ़ाने पर जोर देते रहे हैैं, ताकि श्रमशक्ति के पलायन पर अंकुश लग सके। इस बार कोई ठोस काम करने की चुनौती होगी, ताकि विपक्ष से इस मुद्दे को छीना जा सके।


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