बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई पर राजभवन को आपत्ति, मुख्य सचिव को लिखा पत्र
बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के मामले पर सरकार और राजभवन के नजरिए में अंतर विवि में पूर्व अनुमति बिना निगरानी कार्रवाई पर राजभवन को आपत्ति मुख्य सचिव आमिर सुबहानी बोले पत्र मिला है की जा रही है उसकी समीक्षा
पटना, राज्य ब्यूरो। बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के मसले पर सरकार और राजभवन के बीच दांव-पेंच के साथ ही तल्खियां भी बढ़ती जा रही हैं। ताजा जानकारी यह है कि मगध विश्वविद्यालय के साथ ही अन्य विवि में विशेष निगरानी की कार्रवाई पर राजभवन ने सवाल उठाए हैं। राज्यपाल सह कुलाधिपति फागू चौहान के निर्देश पर उनके प्रधान सचिव राबर्ट एल चोंग्थू ने राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा है। जिसमें बगैर कुलधिपति की अनमुति इस प्रकार की कार्रवाई पर आपत्ति की गई है। मुख्य सचिव को पत्र मिल गया है। उन्होंने कहा इसकी समीक्षा की जा रही है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का उल्लंघन
25 जनवरी को चोंग्थ ने मुख्य सचिव को भेजे पत्र में लिखा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (यथा संशोधिक -2018) के सेक्शन 17ए में प्रविधान का अक्षरश: पालन नहीं किया जा रहा। विशेष निगरानी इकाई वित्तीय प्रकरण में सीधे सूचनाएं मांग रही है। बिना कुलाधिपति की अनुमति ऐसा किया जाना गलत है। इस प्रकार की कार्रवाई से विवि की स्वायतता पर कुठराघात हो रहा और शैक्षणिक वातावरण प्रभावित हो रहा है।
मुख्य सचिव बोले पत्र की हो रही समीक्षा
राजभवन का यह पत्र मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को भेजा गया, जो उन्हें प्राप्त हो गया है। सुबहानी ने स्वयं इसकी पुष्टि की और कहा कि उन्हें पत्र मिल गया है और उसकी समीक्षा हो रही है। इस विषय पर और कुछ अभी कहना उचित नहीं।
मगध विवि कुलपति पर हुई थी कार्रवाई
बता दें कि पिछले वर्ष 17 नवंबर को विशेष निगरानी इकाई ने मगध विवि के कुलपति के खिलाफ 30 करोड़ की हेरफेर के मामले में कार्रवाई की थी। इस मामले में 20 दिसंबर को मगध विवि के रजिस्टार पुष्पेन्द्र प्रसाद वर्मा और प्रोक्टर प्रो. जयनंदन प्रसाद सिंह समेत चार पदाधिकारयों को एसवीयू ने पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। राजभवन का पत्र इस संदर्भ में लिखा गया है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (यथा संशोधिक -2018) के धारा 17ए में प्रविधान
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए में यह प्रविधान है कि किसी लोक सेवा के शासकीय कृत्य के निर्वहन में की गई सिफारिश या गड़बड़ के संबंध जांच या पूछताछ बिना शासन की अनुमति के नहीं की जा सकेगी। इसके पहले संबंधित पुलिस या जांच एजेंसी को शासन को तमाम दस्तावेज देकर अनुमति मांगनी होगी। दस्तावेज अध्ययन के बाद शासन कार्रवाई करने के संबंध में फैसला लेगा।