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Bihar Chunav Results 2020: स्टारों की फील्ड में मजबूत बॉलिंग के बावजूद पूर्व क्रिकेटर तेजस्वी ने उड़ाए चौके-छक्के

Bihar Chunav Results 2020 बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में जन्म लेने के चलते तेजस्वी यादव को राजनीति विरासत में मिली है मगर सीखने की ललक के चलते उन्होंने राजद को बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनाए रखा।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 10:08 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 10:08 PM (IST)
Bihar Chunav Results 2020: स्टारों की फील्ड में मजबूत बॉलिंग के बावजूद पूर्व क्रिकेटर तेजस्वी ने उड़ाए चौके-छक्के
बल्लेबाजी में हाथ आजमाते राजद नेता तेजस्वी यादव। जागरण आर्काइव।

अरविंद शर्मा, पटना। विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी चाहे जिसके हाथ लगी हो, लेकिन इतना साफ हो गया कि तेजस्वी यादव राजनीति में नौसिखिए नहीं रह गए हैं। बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में जन्म लेने के चलते राजनीति उन्हें विरासत में मिली है, मगर सीखने की ललक के चलते उन्होंने राजद को बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनाए रखा। 31 वर्ष के इस पूर्व क्रिकेटर ने स्टारों से भरे फील्ड पर अच्छी बल्लेबाजी की। खूब चौके-छक्के उड़ाए। झारखंड से रणजी ट्रॉफी खेल चुके तेजस्वी ने पिछले तीन दशक तक बिहार की राजनीति के पर्याय बने लालू प्रसाद की कामयाबी को भी पीछे छोड़ दिया। 2015 में लालू के नेतृत्व में राजद ने चुनाव लड़कर सिर्फ 19 फीसद वोट प्राप्त किया था। आइपीएल टीम में शामिल रहे तेजस्वी ने इस बार 23 फीसद के पार पहुंचा दिया। 

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लोकसभा में हार से लिया सबक!

यह लोकसभा चुनाव में हार का सबक भी हो सकता है। तेजस्वी ने विधानसभा चुनाव के लिए शुरू से ही सधी चाल चली। सबसे महागठबंधन के लिए अप्रासंगिक हो चुके दलों को बाहर का रास्ता दिखाया और अपने हिसाब से फील्डिंग सजाई। नए साथियों के साथ बेहतर तालमेल किया। दाएं हाथ के इस पूर्व बल्लेबाज ने वामदलों से हाथ मिलाया और लिख डाली कामयाबी की नई कहानी।

अपने मुताबिक तय किए दोस्त 

लोकसभा चुनाव के दौरान रालोसपा, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी की अनाप-शनाप मांगों को पूरा करने में ही तेजस्वी को नौ दिए तेल जलाने पड़े थे। वोट बैंक राजद का था, लेकिन 12-12 सीटें लेकर भी उक्त सारे दल कोई करामात नहीं दिखा पाए। सबके सब जीरो पर आउट हो गए, जिसका नुकसान राजद को भी उठाना पड़ा, लेकिन अबकी तेजस्वी ने सबको महागठबंधन से बाहर किया और अपने मुताबिक दोस्त तय किए। चुनाव मैदान में जाने से पहले सिर्फ एक चूक हुई। कांग्रेस की फालतू मांगों को पूरा करने के चक्कर में तेजस्वी अपना नुकसान कर बैठे। उसे 70 सीटें दे दी, जिसमें से सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत मिल सकी। 51 सीटें बर्बाद हो गईं। इतनी बुरी स्ट्राइक रेट महागठबंधन में किसी भी दल की नहीं रही। 

पारिवारिक विरासत को संभालने में मददगार साबित हुए निर्णय

इस एक चूक के अलावा तेजस्वी ने अन्य जो भी कदम उठाए, वे पारिवारिक विरासत को संभालने में मददगार ही साबित हुए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी ने भी महागठबंधन को भारी नुकसान किया। शुरू में पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ओवैसी के साथ तालमेल का सुझाव भी दिया था, लेकिन तेजस्वी ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। क्योंकि ओवैसी से हाथ मिलाने का असर राजद के वोट बैंक पर दूरगामी पड़ सकता था। यह बात सिर्फ तेजस्वी के ही दिमाग में थी। 

एक-एक दिन में की 17-17 सभाएं

प्रचार के दौरान तेजस्वी ने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को मात दे दी। प्रति दिन पांच-छह सभाओं से शुरू करके बाद में तेजस्वी ने एक-एक दिन में 17-17 सभाएं करने लगे थे। यह उनकी रणनीति का हिस्सा था। इससे अधिकतम लोगों से रूबरू होने और संवाद करने का मौका मिल रहा था, जबकि भाजपा-जदयू के नेता प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा चार-पांच सभाएं ही कर रहे थे। पब्लिक उनके लंबे-लंबे भाषणों से ऊब रही थी। तेजस्वी के छोटे संवाद और रोजगार देने के वादे लोगों के दिल में उतर रहे थे। साथ ही वे ज्यादा से ज्यादा सभाएं भी कर रहे थे, जिसका फायदा महागठबंधन के प्रत्याशियों को मिल रहा था। तेजस्वी ने सबसे ज्यादा 251 सभाएं कीं। साथी दलों के कमजोर प्रत्याशियों को भी मुकाबले में ला दिया। 


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