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Bihar Chunav 2020: चुनाव परिणाम से पहले जदयू में पूछा जाने लगा सवाल, नीतीश के बाद काैन करेगा नेतृत्व

Bihar Chunav 2020 जदयू की सामाजिक संरचना ऐसी है कि उसमें नीतीश को छोड़ किसी का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया जा सकता है। संगठन में काम और प्रभाव के लिहाज से कई नेता ऐसे हैं जिन्हें नीतीश के बाद माना जाता है।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 11:34 AM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 06:42 PM (IST)
Bihar Chunav 2020: चुनाव परिणाम से पहले जदयू में पूछा जाने लगा सवाल, नीतीश के बाद काैन करेगा नेतृत्व
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2020 विधानसभा चनाव को अपना अंतिम चुनाव बताकर सबको चाैंका दिया है।

पटना [ अरुण अशेष ]। Bihar Chunav 2020 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिर्फ यह कहा कि यह मेरा आखिरी चुनाव है। नीतीश ने सक्रिय राजनीति से अलग होने के बारे में कुछ नहीं कहा। यह भी नहीं कि वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। फिर भी जदयू की कतारों में यह सवाल तैरने लगा कि नीतीश के बाद कौन? असल में यह सवाल क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व संकट को ही उजागर करता है। क्योंकि इन दलों की मान्य परंपरा परिवारवाद को सम्मानित करती है। पिता के बाद पुत्र का संगठन पर स्वाभाविक अधिकार हो जाता है। समय रहते पिता अपनी संतान को नेतृत्व के लिए तैयार कर देता है। 

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नीतीश कुमार जदयू के सर्वेसर्वा

नीतीश कुमार जदयू के सर्वेसर्वा हैं। जनता दल जार्ज से शुरू होकर समता पार्टी होते हुए जदयू तक के सफर में कई लोग सक्रिय रहे। इसके संस्थापक समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस नहीं रहे। समता पार्टी का जनता दल में विलय हुआ। जदयू वजूद में आया। शरद यादव आए। अध्यक्ष बने। जार्ज का निधन हो गया। शरद अलग कर दिए गए। नेतृत्व नीतीश कुमार के हाथ में आ गया। जदयू की सामाजिक संरचना ऐसी है कि उसमें नीतीश को छोड़ किसी का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया जा सकता है। संगठन में काम और प्रभाव के लिहाज से कई नेता ऐसे हैं, जिन्हें नीतीश के बाद माना जाता है। इनकी राय पर नीतीश अमल भी करते हैं। लेकिन, इनमें से कोई ऐसा नहीं है, जिन्हें जदयू के वोटर नीतीश की जगह नेतृत्वकारी भूमिका में स्वीकार कर लें।

उत्तराधिकारी नहीं बनाया

दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेताओं की तरह नीतीश ने अपनी संतान की परवरिश राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने के लिहाज से नहीं की। उनके इकलौते पुत्र की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। नीतीश ने कभी उन्हें राजनीति में आने के लिए बाध्य भी नहीं किया। वे देश के पहले क्षेत्रीय दल के सुप्रीमों हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य, यहां तक कि निकट का रिश्तेदार भी राजनीति में सक्रिय नहीं है। किसी सदन या बोर्ड-निगम का सदस्य नहीं है। उनके बड़े भाई सतीश कुमार पार्टी के बड़े कार्यक्रमों में मंच पर जगह नहीं पाते हैं। भीड़ में खड़े नजर आते हैं। ये बातें जदयू कार्यकर्ताओं को इस सवाल से परेशान करती हैं कि नीतीश अगर राजनीति से संन्यास लेते हैं तो संगठन का नेतृत्व कौन करेगा। दूसरे नम्बर पर कई चेहरे हैं। उनमें से किसी एक का चयन खुद नीतीश कुमार ही उत्तराधिकारी के रूप में कर सकते हैं।

बच्चे संभाल लेते हैं

राज्य में सक्रिय दो अन्य क्षेत्रीय दलों राजद और लोजपा में उत्तराधिकार का सवाल आसानी से हल हो गया। राष्ट्रीय जनता दल में नेतृत्व का संकट दो बार आया। पहली बार 1997 में, जब पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद जेल चले गए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री का पद अपनी धर्मपत्नी राबड़ी देवी को दिया। संगठन का कार्यकारी अध्यक्ष डा. रंजन प्रसाद यादव को बनाया, जो उस समय उनके सबसे विश्वस्त थे। दूसरा संकट आठ साल पहले आया, जब लालू प्रसाद को सजा मिल गई। उन्होंने बड़ी आसानी से अपने छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी बना दिया। 2015 में राजद की मदद से सरकार बनी तो उनके दोनों पुत्र मंत्री बने। तेजस्वी को उप मुख्यमंत्री बनाकर संदेश दिया कि वही राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। इस चुनाव में तेजस्वी मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किए गए हैं। कभी लालू प्रसाद इसके हकदार होते थे। जेल में रहने के बावजूद लालू प्रसाद राजद के मामले में निर्णय लेते हैं। यहां भी तेजस्वी को वीटो का अधिकार हासिल है।

लोजपा के चिराग

2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक यही धारणा थी कि लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के इकलौते पुत्र चिराग पासवान की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है। वे फिल्मी दुनियां में लीन हैं। लेकिन, अचानक उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया गया। जीत के साथ ही रामविलास पासवान ने चिराग को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बना दिया। शुरू में वे चिराग की राय पर फैसले लेने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने संसदीय दल और उसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी चिराग को सौंप दिया।

समर्थक स्वीकार कर लेते हैं

क्षेत्रीय दलों के समर्थक बड़ी आसानी से पारिवारिक विरासत वाले नेतृत्व को स्वीकार कर लेते हैं। समर्थकों की पीढिय़ों को भी इसमें परेशानी नहीं होती है। तेजस्वी और चिराग की चुनावी सभाओं में उनके दल के दो पीढिय़ों के समर्थक शामिल हो रहे थे। टिकट बंटवारा में भी पीढिय़ों का सम्मान किया गया। ऐसे लोग, जिन्होंने लालू प्रसाद या रामविलास पासवान के साथ राजनीति की थी, उनकी संतानें दोनों दलों के नए नेतृत्व के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं।


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