Bihar Assembly Election 2020: बिहार चुनाव में जिसका शनि ठीक, उसका होगा मंगल
तेजस्वी यादव बार-बार यही दोहराते रहे कि वे युवा हैं और जात-पात से ऊपर सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं। उनकी बात से युवा वर्ग कुछ प्रभावित भी दिखा। पूर्णिया में अंतिम चुनावी जनसभा में अपने आखिरी चुनाव का एलान करने के बाद लोगों का अभिवादन करते मुख्यमंत्री नीतीश।
पटना, आलोक मिश्र। जब आप यह डायरी पढ़ रहे होंगे तो उस समय बिहार में तीसरे चरण के लिए वोट डाले जा रहे होंगे। पहले दो चरणों में हुई कांटे की टक्कर से शनिवार का यह तीसरा और अंतिम रण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन, दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इसे जीतने के लिए सभी ने अपनी पूरी ताकत झोंकी और वादे करने में कोई किसी से पीछे नहीं रहा। भावुक अपीलें हुईं, जातीय और धार्मिक गोलबंदी के दांव चले गए, विचारधाराओं से समझौते किए गए और भी जो-जो हो सकता था, वह सब किया गया।
आज शाम तक सबकी किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी, जो मंगलवार को खुलेगी और तय करेगी अगली सरकार। गुरुवार को प्रचार का अंतिम दिन था। उस दिन अपनी आखिरी चुनावी सभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुंह से निकला कि यह मेरा अंतिम चुनाव है। इसके पीछे उनका मंतव्य जो भी रहा हो, लेकिन विपक्ष ने इसे अपने हिसाब से लपक लिया।
तेजस्वी कहने लगे कि हम तो पहले से ही कह रहे थे कि वे थक गए हैं, उन्हें रिटायरमेंट ले लेना चाहिए और आज इस पर उन्होंने मुहर भी लगा दी। चिराग पासवान भी भला कहां चुप बैठते, उन्होंने जनता से अपील कर डाली कि नीतीश को वोट मत दो, खराब हो जाएगा, क्योंकि वे तो अब हिसाब देने आएंगे नहीं। कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला नीतीश कुमार के इस बयान को उनकी हार के रूप में बताने लगे।
नीतीश के बयान से असहज जदयू तुरंत यह कहकर भरपाई में जुट गया कि राजनीति में कोई रिटायर नहीं होता। उनका आशय इस चुनाव की अंतिम सभा से था। बहरहाल, नीतीश राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और कोई बात बिना मतलब नहीं कहते। इसलिए इससे इतर भी इसके मायने तलाशे जाने लगे कि कहीं यह भावुक अपील वोटरों को भरमाने के लिए तो नहीं है। आखिरी सभा में यह दांव नीतीश ने इसलिए चला, ताकि वोटों की गोलबंदी कर सकें।
बहरहाल, तीसरे चरण में वोटों की खातिर बहुत कुछ ऐसा हुआ जो पहले दो चरणों में नहीं हुआ। इसमें जदयू और भाजपा के सुर भी एक-दूसरे को काटते दिखे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पार्टी लाइन के आधार पर यह कह दिया कि कटिहार सहित पूरा प्रदेश घुसपैठियों से त्रस्त है। इन्हें बाहर निकाल कर ही दम लेंगे। इसके आधे घंटे बाद ही बंगाल की सीमा से सटे बगल के जिले किशनगंज में नीतीश को कहना पड़ा कि आपको कौन भगा सकता है। किसी के बहकावे में न आवें। ऐसे में एक ही गठबंधन के दो अलग-अलग सुर मतदाताओं को सोचने के लिए पूरी खुराक दे गए।
सीमांचल में योगी-नीतीश के बीच टकराहट दिखी तो कोसी में राहुल गांधी समाजवादी नेता शरद यादव को अपना गुरु बता सबको हैरत में डाल गए। दरअसल राहुल गांधी बिहारीगंज से कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहीं शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव को बहन बता कर वोट मांग रहे थे। अब समाजवादी ही उपहास कर रहे हैं कि जीवनभर समाजवाद का झंडा उठाने वाले शरद यादव से कौन सा ज्ञान प्राप्त कर लिया है राहुल गांधी ने। वहीं कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब नहीं है।
तीन चरणों के इस चुनाव के परिणाम मंगलवार को सबके सामने आ जाएंगे और संभवत: उसी दिन नई सरकार तय हो जाएगी। लेकिन लगभग सवा महीने की यह लड़ाई आसान नहीं रही। हर चरण में मुद्दे बदले और क्षेत्र के हिसाब से वार-प्रतिवार हुए। पहले चरण में जहां एनडीए नक्सलवाद को लेकर हमलावर रहा तो दूसरे चरण में जंगलराज का युवराज बता तेजस्वी को घेरा गया। तीसरे चरण में अल्पसंख्यक इलाकों में एनआरसी का मुद्दा छाया रहा। जबकि जातीय गोलबंदी में एनडीए को भारी देख महागठबंधन रोजगार को ही मुद्दा बनाए रहा।
तेजस्वी यादव की सभाओं की भीड़ से तो ऐसा ही प्रतीत हुआ। अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के ये दांव जनता को कितना प्रभावित कर पाए, यह सब तो तीन दिन बाद यानी मंगलवार को ही पता चलेगा, जब चुनाव परिणाम आएगा। तब तक सभी जीत रहे हैं और अपनी सरकार बना रहे हैं।
[स्थानीय संपादक, बिहार]