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Bihar Chunav 2020: विधानसभा चुनाव में ओवैसी के पंजे ने रोका तेजस्वी का रास्ता, आगे भी बन सकते हैं चुनौती

Bihar chunav 2020 विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कभी लालू प्रसाद यादव का आधार क्षेत्र रहे सीमांचल में उन्‍होंने सेंध लगा दी है। यह आरजेडी सहित अन्‍य दलों के लिए आगे भी खतरे की घंटी है।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 05:23 PM (IST)Updated: Sat, 14 Nov 2020 11:47 AM (IST)
Bihar Chunav 2020: विधानसभा चुनाव में ओवैसी के पंजे ने रोका तेजस्वी का रास्ता, आगे भी बन सकते हैं चुनौती
बिहार चुनाव: तेजस्‍वी यादव एवं असदुद्दीन ओवैसी। फाइल तस्‍वीरें।

पटना, अरविंद शर्मा। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की कहानी करीब साल भर पहले से शुरू होती है, जब कमरूल होदा पहली बार किशनगंज उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्वीटी सिंह को हराकर विधानसभा पहुंचे। नि:संदेह जीत बड़ी नहीं थी, लेकिन इससे हौसले को ताकत मिली और विधानसभा का आम चुनाव आते-आते महागठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। महागठबंधन को नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव को सबसे ज्यादा निराशा उसी सीमांचल से मिली है, जिसे कभी लालू प्रसाद अपना आधार क्षेत्र मानते थे। निसंदेह भाजपा विरोध की राजनीति करने वाले बिहार के सियासी दलों के लिए यह खतरे की घंटी है।

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सीमांचल में बदल रहा है सियासत का समीकरण

ओवैसी ने अपनी सक्रियता से सत्यापित कर दिया है कि सीमांचल में सियासत का समीकरण बदल रहा है और महागठबंधन को किसी दल से अगर सबसे ज्यादा खतरा है तो वह एआइएमआइएम से है। विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को वैसी ही पांच सीटों पर जीत मिली है, जो पहले कांग्रेस और राजद के पास हुआ करती थीं। अन्य कई सीटों पर भी मजलिस ने महागठबंधन का काम बिगाड़ा है। प्रचार के दौरान राजद-कांग्रेस के स्टार प्रचारकों द्वारा ओवैसी की मजलिस को भाजपा की बी टीम बताया जा रहा था, किंतु उसको मिली कामयाबी ने साफ कर दिया कि राजद के रास्ते में बड़ा अवरोध आने वाला है।

राजद-कांग्रेस के लिए खतरे का संकेत बने ओवैसी

बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण को राजद के पक्ष में माना जाता है। सीमांचल का इलाका पहले भी भाजपा के लिए दुरुह रहा है। कारण कि यहां कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी 30 से 70 फीसद तक है। यादव-मुस्लिम मतदाताओं की संयुक्त ताकत के आधार पर इस इलाके को राजद का बड़ा वोट बैैंक माना जाता है। ओवैसी ने यहां से सीटें निकालकर राजद-कांग्रेस के लिए खतरे का संकेत दे दिया है। पांचों सीटें जिनपर ओवैसी को जीत मिली है, पिछली बार उनमें से ज्यादा महागठबंधन के खाते में आ सकती थीं। पिछले चुनाव में आई भी थीं। कांग्रेस, राजद और जदयू के गठबंधन ने मिलकर सारी सीटें जीत ली थीं। भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था।

लोकसभा चुनाव से ही दे दी थी धमक

ओवैसी ने खतरे का संकेत तो लोकसभा चुनाव के वक्त ही दे दिया था। महागठबंधन को 40 में से सिर्फ एक सीट किशनगंज ही मिल सकी थी। उस पर भी एआइएमआइएम ने बेहतर प्रदर्शन किया था और मामूली अंतर से तीसरे नंबर पर थी। तब उस संसदीय क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से दो पर बढ़त भी मिली थी। उसके तुरंत बाद अक्टूबर में उपचुनाव में किशनगंज विधानसभा क्षेत्र को ओवैसी ने कांग्रेस से छीन लिया था। दुर्गति ऐसी हुई थी कि कांग्रेस रनर भी नहीं रह पाई थी। तीसरे नंबर पर खिसक गई थी।

कहां कितने मिले वोट

किशनगंज : 33193

ठाकुरगंज : 18045

शेरघाटी : 14022

साहेबपुर कमाल : 7889

अररिया : 7670

सिकटा : 7805

बरारी : 6564

एआइएमआइएम की जीती सीटें

अमौर, बहादुरगंज, बैयसी, जोकीहाट, कोचाधामन


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