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नीतीश कुमार ने लोगों के दिल पर एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसे दशकों तक याद रखा जाएगा

वर्ष 1990 से लेकर 2005 तक बिहार में विकास के नाम पर बहुत ही कम कार्य हुए जिस कारण नीतीश कुमार में लोगों ने एक नई उम्मीद देखी। नीतीश भी निरंतर राज्य को विकास की राह पर आगे लेकर जाते रहे जिसका नतीजा भी आज सामने है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 10:55 AM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 10:10 PM (IST)
नीतीश कुमार ने लोगों के दिल पर एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसे दशकों तक याद रखा जाएगा
Bihar Chunav 2020: लोगों के जेहन में नीतीश के बारे में एक बेहतर मुख्यमंत्री की छवि।

रिजवान अंसारी। बिहार की राजनीति में यह चर्चा बहुत जोरों पर रही कि सरकार चाहे किसी भी गठबंधन की हो, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हमेशा नीतीश कुमार ही विराजमान होते हैं। लेकिन इस पहलू पर शायद कम ही बात हुई कि चुनाव में जीत उसी गठबंधन की होती है जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार करते हैं। चुनाव की गहमागहमी खत्म होने के बाद दूसरे पहलू पर भी बात होनी चाहिए। इस पहलू पर बात होने की दो अहम वजहें हैं।

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इसकी पहली वजह है कि तमाम एग्जिट पोल और राजनीतिक पंडितों द्वारा राजग की जीत को खारिज करने के बाद भी जनादेश राजग के पक्ष में आया और दूसरी वजह है कि इस चुनाव में तेजस्वी यादव की मेहनत और आत्मविश्वास ने महागठबंधन की संभावना को प्रबल कर दिया था। लेकिन तमाम अटकलों को खारिज करते हुए नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन ने जीत अपने नाम दर्ज की।

सवाल है कि एनडीए की इस जीत में नीतीश को एक बड़ा फैक्टर क्यों समझा जाए? कैसे माना जाए कि यह जीत नीतीश की कुशलता और उनके विकास पुरुष वाली छवि का नतीजा है? यह सच है कि अगर 2014-15 में जीतनराम मांझी के नौ माह के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए, तो 2005 से नीतीश लगातार मुख्यमंत्री की भूमिका में हैं। यानी हम कह सकते हैं कि 2020 के चुनाव में नीतीश के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर रही होगी। लेकिन इसके बावजूद अगर वह वापसी करने में कामयाब हुए हैं, तो सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अपने काम से बिहार की जनता के दिल पर एक छाप छोड़ रखी है और इस बात की चर्चा तब-तब होगी जब-जब लालू के 15 साल के शासन का जिक्र होगा। इसे समझने के लिए 15 साल पीछे जाना होगा।

वर्ष 1990 से 2005 के उन दिनों को याद करना होगा जब बिहार की सड़कें बदहाल थीं। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में सड़कों का जाल बिछाने को अपनी प्राथमिकता में रखा। शुरू के सात वर्षो में नीतीश सरकार ने नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे और जिले की मुख्य सड़कों को बनाने में कड़ी मेहनत की और कुल 15,052 किमी सड़कें बनाईं, जबकि लालू के पूरे 15 साल के शासन में 8,492 किमी सड़कें बनीं। एक आंकड़ा यह भी है कि 2007-08 में सड़क निर्माण पर नीतीश सरकार ने 2,222 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि 2003-04 में महज 51.2 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

नीतीश राज में कानून व्यवस्था को बेहतर करना भी बड़ी चुनौती थी। लालू का शासन बदतर कानून व्यवस्था के लिए भी बदनाम रहा। लेकिन नीतीश के सत्ता संभालने के बाद इसमें उल्लेखनीय कमी आई। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2004 में जहां बिहार में 1,297 डकैती के मामले सामने आए, वहीं 2019 में 391 केस दर्ज हुए। यानी इस मामले में 69 फीसद की कमी आई। हत्या के मामले में भी यह आंकड़ा 2004 के 3,861 के बरक्स 2019 में 3,138 पर आया। लिहाजा हत्या और डकैती के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है, जिसे लोगों ने खूब सराहा।

वर्ष 2005 के बाद नीतीश मुस्तैदी से विकास कार्यो में लग गए। देशभर में बिहार की छवि बदलने लगी। 2005 के बाद कई सामाजिक-आíथक संकेतकों पर बिहार का प्रदर्शन न केवल पिछले एक दशक में अपने पिछले प्रदर्शन से बेहतर रहा, बल्कि तुलनात्मक राज्यों या राष्ट्रीय औसत से भी बेहतर रहा। 1999 से 2008 के दौरान राज्य जीडीपी में सालाना 5.1 फीसद का इजाफा हुआ, जो राष्ट्रीय औसत 7.3 से नीचे था। 2010 में, भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने बताया कि 2004-05 और 2008-09 के बीच पांच साल की अवधि में बिहार की जीडीपी 11.03 बढ़ी, जिसने बिहार को उस दौरान भारत में दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना दिया।

बिहार में महिलाओं को नीतीश कुमार के बड़े वोट बैंक में गिना जाता है। भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद यह पहला राज्य है जहां महिला को एक महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग के रूप में गिना जाता है। इसकी शुरुआत विद्यालयों में छात्रओं को साइकिल और पोशाक बांटने से हुई, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। फिर पंचायती राज में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण देने वाला पहला मुख्यमंत्री बनकर नीतीश कुमार ने सबको हैरान कर दिया था। नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसद आरक्षण, शराबबंदी, दहेजबंदी जैसे अभियानों ने नीतीश कुमार को महिलाओं के बीच लोकप्रिय बनाया। और यही कारण है कि चुनाव-दर-चुनाव नीतीश की कामयाबी में महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय होने लगी। हालिया चुनाव में भी जिन 77 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से 10 फीसद ज्यादा वोट डाले, उनमें से 53 पर राजग की जीत हुई।

एक आंकड़ा यह भी है कि जिन 166 सीटों पर पुरुषों से अधिक महिलाओं ने वोट डाले, उनमें 102 सीटों पर राजग की जीत हुई। हालांकि ऐसा नहीं है कि बिहार देश के हर राज्यों को चुनौती पेश कर रहा है। ऐसा भी नहीं है कि बिहार से सभी समस्याएं खत्म हो गई हैं। दरअसल बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था आदि को लेकर अभी भी कई समस्याएं हैं। लेकिन सत्ता संभालते ही जनता की नब्ज को टटोल कर नीतीश कुमार ने राहत देने वाले कई ऐसे काम किए। 

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]


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