साहित्यकारों की थी सियासत में गहरी पैठ
बिहार की सियासत में आरंभ के दिनों से ही साहित्यकारों की समृद्ध परंपरा रही है
प्रभात रंजन, पटना। बिहार की सियासत में आरंभ के दिनों से ही साहित्यकारों की समृद्ध परंपरा रही है। राष्ट्रकवि दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, लक्ष्मी नारायण सुधांशु, बुद्धिनाथ झा कैरव और मोहन लाल महतो वियोगी जैसे लोगों ने सियासत में अपनी जगह बनाने के साथ राजनीति को नई दिशा और दशा प्रदान की। बिहार की सत्ता से लेकर केंद्र की सत्ता तक इनकी दावेदारी रही। आजादी के बाद बिहार की राजनीति में इन साहित्यकारों का अमूल्य योगदान रहा।
जेल में जेपी के साथ बेनीपुरी ने गुजारा समय : कलम के जादूगर कहे जाने वाले रामवृक्ष बेनीपुरी स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते रहे। आजादी के दौरान वे जेल भी गए। हजारीबाग जेल में स्वाध्याय व साहित्य रचना करते रहे। उन्होंने 'कैदी' व 'तूफान' जैसी हस्तलिखित पत्रिकाएं निकालीं। शहर के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी के मुताबिक स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बेनीपुरी जी, जयप्रकाश के साथ जेल में भी रहे। उन्होंने जेपी की प्रामाणिक जीवनी भी उनके जीवन काल में ही लिखी थी। सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार 1952 में मुजफ्फरपुर के कटरा निर्वाचन क्षेत्र से खड़े हुए, लेकिन वे हार गए। शोधार्थी अरुण नारायण के मुताबिक बेनीपुरी 1957 में दूसरी बार चुनाव में उतरे और कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया था। उन्होंने अपने डायरी में भी चुनाव को लेकर कई बातें साझा की हैं।
राजनीति के छल-प्रपंच से रेणु का हुआ था मोहभंग : मैला आंचल, परिकथा, कितने चौराहे, तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम आदि कई कहानियों का सृजन करने वाले रेणु का साहित्य और सियासत से गहरा लगाव रहा। वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी की मानें तो रेणु 1972 के विधानसभा चुनाव में फारबिसगंज सीट पर चुनाव में खड़े होकर कद्दावर नेता सरयू मिश्र को चुनाव में हरा दिए थे। बाद के दिनों में राजनीति के छल-प्रपंच से रेणु का मोहभंग हुआ। आगे चलकर वर्ष 2010 में उसी फारबिसगंज सीट पर उनके पुत्र पद्म पराग राय वेणु भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए।
नौकरी छोड़ साहित्य और सियासत से प्रेम : राष्ट्रकवि दिनकर की रचनाएं साहित्य जगत से जुड़े लोगों के साथ राजनेताओं को भी प्रभावित करती रहीं। दिनकर का जेपी से भी गहरा लगाव रहा। साहित्य के रास्ते उन्हें राज्यसभा में भी जगह मिली और सांसद बने। इसके बावजूद दिनकर ने हमेशा शब्दों की बेबाकी से राजनीति पर प्रहार किया। जेपी ने जब 1946 में पटना के गांधी मैदान में आमसभा के दौरान अपनी कविता 'भावी इतिहास तुम्हारा है..' का पाठ किया था। आपातकाल के दौरान मुखर रहे कवि बाबू लाल मधुकर विधान पार्षद बने।
सियासत की गलियों से गुजरे और कई नाम : बिहार की राजनीति में साहित्यकार लक्ष्मी नारायण सुधांशु का भी अहम योगदान रहा। जिन्होंने गाड़ियों के नंबर प्लेट जो अंग्रेजी में लिखे थे उसे हटाने और हिदी में नंबर प्लेट लगाने को लेकर अभियान भी चलाया था। वही रेलवे की नौकरी छोड़कर सूर्य नारायण चौधरी ने पत्रकारिता के साथ सियासत में जगह बनाई। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में शामिल पटना के साहित्यकार गंगा शरण सिंह तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे। साहित्यकार शंकर दयाल सिंह साहित्य सृजन करने के साथ सियासत से भी जुड़े रहे। वे 1971-77 तक चतरा से सांसद रहे और बाद के दिनों में राज्यसभा सांसद भी बने। वर्तमान पर गौर करें तो साहित्यकारों में डॉ. रामवचन राय, प्रेमकुमार मणि जैसे लोगों की सियासत में सक्रियता देखी जाती है।