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Bihar Assembly Election 2020: महागठबंधन में तेजस्वी को रास नहीं आ रहे जीतनराम मांझी, जानिए मामला

Bihar Assembly Election 2020 बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में जीतनराम मांझी को मनाने की कोशिश नाकाम नहीं है। लेकिन वे समन्‍वय समिति की माग पर अड़े हुए हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2020 05:44 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 06:31 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: महागठबंधन में तेजस्वी को रास नहीं आ रहे जीतनराम मांझी, जानिए मामला
Bihar Assembly Election 2020: महागठबंधन में तेजस्वी को रास नहीं आ रहे जीतनराम मांझी, जानिए मामला

पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Assembly Election 2020: चुनावी महासमर नजदीक है, लेकिन महागठबंधन में जीतनराम मांझी की स्थिति को छोड़कर अभी कुछ भी साफ नहीं है। मशक्कत जारी है। बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने राजधानी में तीन दिनों तक घूम-घूम कर बिखराव की ओर बढ़ रहे साथी दलों को जोडऩे और गतिरोध तोडऩे की कोशिश की। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के घर गए। मुकेश सहनी से मुलाकात की। उपेंद्र कुशवाहा से फोन पर बात हुई। पर्दे में रहते हुए गोहिल ने सारी कवायद की, किंतु फाइनल कुछ भी नहीं हुआ। सबकुछ भविष्य पर छोड़ दिया गया।

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जहां थे, वहीं रह गए महागठबंधन के मसले

इस बीच, महागठबंधन के मसले जहां थे, वहीं रह गए। गोहिल ने जीतन राम मांझी से मुलाकात की। घर जाकर चाय पी और लौट गए। बात आगे नहीं बढ़ी। मांझी अपनी एकमात्र मांग पर आज भी अड़े हैं, समन्वय समिति नहीं बनी तो गठबंधन का कोई मतलब नहीं। मांझी की मांग पर तेजस्वी गौर नहीं फरमा रहे हैं। अहमद पटेल की मध्यस्थता भी फेल हो गई। महागठबंधन की वर्चुअल मीटिंग के दौरान 25 जून को तेजस्वी के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए राज्यसभा सांसद मनोज झा ने अहमद पटेल से वादा किया था कि हफ्ते भर में समन्वय समिति बना दी जाएगी।

मांझी को रास्ते पर लाने की कोशिश नाकाम

अब दो हफ्ते बीत गए। राजद एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा। यहां तक कि कोई पहल भी नहीं की गई। मांझी का बिदकना स्वाभाविक है। गोहिल ने मांझी को महागठबंधन के रास्ते पर लाने की कोशिश की, किंतु मांझी नहीं माने। उन्होंने पूछ लिया कि जब अहमद पटेल की बात नहीं सुनी गई तो आपके वादों पर भरोसा कैसे करें। मांझी के पास विकल्प है। इसलिए वह अड़े हैं।

अन्य दलों के पास नहीं है और कोई विकल्प

तेजस्वी को पता है कि अन्य दलों के पास महागठबंधन में बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए उनके दबाव में आने की जरूरत नहीं है। अभी बिहार की राजनीति साफ तौर पर दो धाराओं में बंटी है, राजग और महागठबंधन। भाजपा-जदयू और लोजपा का एक मोर्चा है तो राजद-कांग्रेस एवं अन्य का दूसरा। रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति नीतीश कुमार की धारा के विपरीत है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) प्रमुख मुकेश सहनी की भी अपनी मजबूरी है। लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के साथ वह जितना आगे बढ़ चुके हैं, वहां से लौटना मुनासिब नहीं दिख रहा है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की रणनीति दोनों तरफ अपना बचाकर रखने की रही है। इसलिए मांझी को जल्दी नहीं है। उनकी इस मंशा को तेजस्वी अच्छी तरह समझ रहे हैं। इसलिए उन्हें भी बेताबी नहीं है।

वामदलों को भी मिलेगी हिस्सेदारी

लोकसभा चुनाव में भाकपा-माकपा के प्रति तो नहीं, किंतु माले के प्रति राजद ने दरियादिली दिखाई थी। अपने हिस्से से उसे एक सीट गिफ्ट किया था। करारी हार के बाद तेजस्वी ने अबकी रणनीति बदली है। अन्य वामपंथी दलों को भी जोडऩे की कवायद है। बात समझौते से आगे बढ़ चुकी है। सीटों पर अटकी है। संयुक्त रूप से 80 सीटें मांगी जा रही हैं। 10-12 फीसद भी मिल जाएं तो बात बन बननी तय है। गोहिल ने भी सकारात्मक संकेत ही दिया है।


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