Bihar Assembly Election 2020: चुनाव से पहले चोला बदल रहा राजद, नई लीक बना रहे तेजस्वी
Bihar Assembly Election 2020 तेजस्वी यादव जान चुके हैं कि राजनीति में सफलता बनी-बनाई लीक पर चलने से नहीं मिलती है। इसलिए वह अपनी पार्टी में सबकुछ बदल देना चाहते हैं। लालू प्रसाद के उस ट्रैक को भी जिसके सहारे वे राजनीति में यहां तक पहुंचे।
पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Assembly Election 2020: चुनाव सामने है और राजद की कोशिश नए अवतार में आने की है। एक नया फलसफा लिखने की, जिसके पार्श्व में तो डेढ़ दशक के चमकदार प्रदर्शन का जिक्र रहे, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर एक नया समीकरण गढऩे की कोशिश भी है, जिसमें आबादी के हिसाब से सबकी भागीदारी हो। तेजस्वी यादव जान चुके हैं कि राजनीति में सफलता बनी-बनाई लीक पर चलने से नहीं मिलती है। इसलिए वह अपनी पार्टी में सबकुछ बदल देना चाहते हैं। लालू प्रसाद के बनाए उस ट्रैक को भी, जिसके सहारे वह राजनीति में इतनी दूर तक पहुंच सके हैं। राजद में इस नई बयार की चर्चा इसलिए मौजूं है कि पार्टी के पोस्टरों में अब लालू प्रसाद नहीं दिखते हैं। राबड़ी देवी भी नहीं। सिर्फ तेजस्वी को ही राजद की नई सोच का प्रतिबिंब बताया जाता है।
राजद में यह बदलाव अचानक नहीं है। प्रक्रिया पिछले एक साल से जारी है। सिर्फ पोस्टर में ही परिवर्तन नहीं आया है और भी बहुत कुछ बदला है। सिलसिला आगे भी जारी है। 2015 में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले लालू ने अपने क्रिकेटर पुत्र तरुण यादव को राजनीति में उतारकर राजद को नया चेहरा देने का प्रयास किया था। पांच सालों के दौरान तरुण कई तरह के उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरते हुए बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उप मुख्यमंत्री से लेकर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक का सफर तय कर चुके हैं। तब लालू-राबड़ी की जोड़ी ने राजद का चेहरा बदला था। अब उनके उत्तराधिकारी का प्रयास पार्टी का चरित्र और चोला बदलने का है। उसी करिश्माई चोले को, जिसके सहारे लालू तीन दशक तक बिहार की राजनीति के पर्याय बने रहे हैं।
शून्य से ही दोबारा सफर शुरू किया गया
यह जानते हुई भी कि बिहार में लालू प्रसाद के बिना फिलहाल राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, तेजस्वी ने अपनी 23 साल पुरानी पार्टी में बदलाव की पहल कर दी है। बारी-बारी से सब कुछ बदला जा रहा है। सवाल उठता है कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, लोकसभा चुनाव तक सारी चीजें पुराने ट्रैक पर ही चलती रहीं, लेकिन परिणाम ने नए नेतृत्व को समीक्षा के लिए विवश कर दिया। पहली बार राजद के पक्ष में नतीजा शून्य आया था। इसलिए शून्य से ही दोबारा सफर शुरू कर दिया गया।
माय समीकरण से ठप्पे से भी उबरने का प्रयास
तेजस्वी ने सबसे पहले आम लोगों के बीच बनाई गई उस धारणा में बदलाव की पहल की, जिसके चलते राजद के जनाधार में लगभग पूर्ण विराम आ गया था। पार्टी को मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण के ठप्पे से उबारने का प्रयास किया गया। इशारा कर दिया गया कि राजद किसी खास जाति-समुदाय की पार्टी नहीं, बल्कि ए-टू-जेड की पार्टी है। यहां तक कि उन्होंने राजद विरोधी मतदाताओं पर डोरे डालते हुए लालू-राबड़ी के कार्यकाल की गलतियों के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने से भी संकोच नहीं किया। मंचों से माफी मांगी। कई बार मांगी। राजद के रणनीतिकारों ने इस पहल की व्याख्या उभरते उदारवादी नेता के रूप में पेश की, किंतु जदयू-भाजपा ने यह भी बताने को कहा कि तेजस्वी को लालू के किस गुनाह के लिए माफी चाहिए।
नया नेतृत्व, नया तरीका
पार्टी में बदलाव की प्रक्रिया में अड़चन महसूस की तो तेजस्वी ने लालू-राबड़ी के जमाने के लोगों से अलग अपनी टीम बना ली। इससे कुछ पुराने दिग्गज असहज महसूस करने लगे तो खुद ब खुद दरकिनार भी होते गए। जिन्होंने बदलाव की हवा पहचानी और खुद को समर्पित कर दिया, वे आज भी तेजस्वी की टीम के अहम किरदार बने हुए हैं। जिन्होंने नहीं समझी या जानबूझकर समझने की कोशिश नहीं की, वे अभी हाशिये पर हैं या पार्टी से बाहर हैं।
टिकट भी बढ़ाएगा दायरा
अबकी विधानसभा चुनाव में उन्हें भी टिकट देने की पहल की जा रही है, जिन्हें लालू ने तीन-चार चुनावों से दरकिनार कर रखा है। पांच साल पहले राजद ने टिकट वितरण में सवर्णों को तरजीह नहीं दी थी। सिर्फ तीन टिकट दिए गए थे। ब्राह्मïण के नाम पर शिवानंद तिवारी के पुत्र और राजपूत के नाम पर प्रभुनाथ सिंह के भाई और पुत्र को। भूमिहारों को भागीदारी के लायक नहीं समझा गया था, किंतु राज्यसभा में अमरेंद्रधारी सिंह को भेजकर राजद ने अपनी पुरानी गलती को सुधारने का प्रयास किया है।