Bihar Assembly Election 2020: निर्दलीय उम्मीदवारों की घटी पूछ, राजनीतिक दलों पर बढ़ा दबाव
Bihar Assembly Election 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में जीते निर्दलीय विधायक कभी सरकारों का भाग्य दत करते थे। वे मंत्री तक बनते रहे। लेकिन अब वो पहले वाली बात नहीं रही।
पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Election 2020: विधानसभा चुनाव के समय पार्टी टिकट के लिए आपाधापी बेवजह नहीं मचती है। दरअसल, किसी दल के टिकट के बिना विधानसभा में प्रवेश का रास्ता धीरे-धीरे संकरा होता जा रहा है। यह रास्ता निर्दलीय उम्मीदवारी के जरिए विधानसभा तक ले जाता है। पिछले 30 वर्षों में इसकी उपयोगिता कम हुई है। बीच की अवधि में वह समय भी आया था, जब निर्दलीय विधायक सरकार बनाने में अहम हो गए थे। 2000 के विधानसभा की संरचना ऐसी थी, जिसमें बगैर निर्दलीय की मदद के किसी की सरकार नहीं बनती। उनकी मदद से नीतीश कुमार सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे। सात दिन बाद राबड़ी देवी की सरकार बनी। उसमें निर्दलीय विधायकों की मांग इतनी अधिक थी कि उन्हेंं मंत्री तक बनाया गया। अभी जदयू के विधायक ददन यादव निर्दलीय की हैसियत से ही राबड़ी देवी मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री बने थे। उसके बाद ददन भी दलीय उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीत रहे हैं।
निर्दलीय के लिए स्वर्णकाल था 1990 का चुनाव
राज्य में निर्दलीय राजनेताओं के लिए 1990 का विधानसभा चुनाव स्वर्णकाल था। एकीकृत बिहार विधानसभा की 324 में से 30 सीटों पर उनकी जीत हुई थी। विधानसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। इसके बावजूद निर्दलीयों की खास पूछ नहीं थी, क्योंकि कांग्रेस विरोध के नाम पर सभी दलों ने लालू प्रसाद की अगुआई वाली जनता दल सरकार का समर्थन किया था। यहां तक कि भाजपा ने भी लालू प्रसाद के समर्थन में राज्यपाल को पत्र लिखा था। नतीजतन संख्या में अधिक होने के बावजूद निर्दलीय विधायक बेमोल रह गए।
मौका मिला तो डाल दिया सांसत में
1995 के चुनाव में लालू प्रसाद को अपार समर्थन मिला। वह अपने दम पर सरकार बना चुके थे। उस स्थिति ने निर्दलीय को हतोत्साहित किया। 1990 की तुलना में उनकी संख्या भी कम हो गई थी। वे 30 से घटकर 11 पर आ गए थे। 2000 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा के चलते स्थिति ऐसी बनी कि बिना निर्दलीय की मदद के किसी की सरकार नहीं बन सकती थी। विधानसभा में उनकी संख्या 20 थी। उनकी मदद से बारी-बारी से नीतीश कुमार और राबड़ी देवी की सरकार बनी। सूरजभान, राजन तिवारी, रामा सिंह जैसे निर्दलीय विधायक उन्हीं दिनों चर्चा में आए थे।
इतना उछले कि गिनती के रह गए
2005 में निर्दलीय विधायकों की पूछ बढ़ी थी। फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी संख्या 17 थी। त्रिशंकु विधानसभा में हैसियत बढ़ रही थी। मोलभाव हो रहा था, लेकिन विवाद बढऩे के बाद किसी की पार्टी-नेता की सरकार नहीं बन पाई। विधानसभा भंग होने के चलते अक्टूबर-नवंबर में दोबारा चुनाव हुआ। निर्दलीय 17 से घटकर दस पर आ गए। सरकार बनाने के लिए जदयू-भाजपा के पास जरूरी संख्या बल था, लिहाजा निर्दलीय विधायकों की भूमिका गौण हो गई। उसके अगले चुनाव में तो उनकी भूमिका और कम हो गई। 2010 में जदयू-भाजपा गठबंधन को दो तिहाई बहुमत मिल गया था। उस चुनाव में कुल छह निर्दलीय जीत कर आए थे। सरकार बनाने या चलाने के लिए इनकी जरूरत नहीं रह गई थी।
ऐसा दौर कि जरूरत ही नहीं रही
2015 का चुनाव भी निर्दलीय राजनेताओं के लिए कुछ अच्छा नहीं रहा। एक तो संख्या सिर्फ चार रही। उपर से महागठबंधन के दलों को सरकार बनाने के लिए जरूरत से अधिक विधायक मिल गए थे। बाद में जदयू-भाजपा एक साथ हुए, तब भी निर्दलीय विधायकों की जरूरत नहीं रह गई थी। हालांकि दो विधायकों ने सरकार को अपना एकतरफा समर्थन दिया।
दबंगई व लोकप्रियता वजूद के आधार
दबंग होना निर्दलीय विधायकों की सबसे बड़ी पूंजी होती थी। एक पूंजी उनकी लोकप्रियता भी होती थी। ऐसे नेता या विधायक, जिनकी क्षेत्र में काम के बल पर छवि बनी हुई है, उन्हेंं किसी कारण से बेटिकट किया गया है तो वे निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीत जाते थे। कांग्रेस शासनकाल में यह खूब होता था। बैलेट छापने का दौर भी निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत में मदद करता था। ईवीएम के आने के बाद यह संभव नहीं हो पा रहा है। दलों की अधिक संख्या निर्दलीय उम्मीदवारों की बाढ़ रोकने में मददगार साबित हुई है। कई ऐसे लोग जो निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं, उनमें से अधिसंख्य को किसी न किसी दल का टिकट मिल ही जाता है।
टिकटों के बढ़े बाजार भाव की असली वजह
मतदाता चाहते हैं कि उनका विधायक किसी दल से जुड़ा हो। खासकर उस दल से, जिसकी सत्ता में आने की संभावना हो। यह भाव क्षेत्र के विकास की आकांक्षा से प्रेरित होता है। यही भाव उम्मीदवारों को दलीय टिकट हासिल करने के लिए प्रेेरित करता है। यह जो टिकटों के बढ़े हुए बाजार भाव की चर्चा होती है, यह इन्हीं उम्मीदवारों से नियंत्रित होता है।
चुनाव का वर्ष : निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या : विजयी उम्मीदवार : मत प्रतिशत
1990 4320 30 18.42
1995 5674 11 13.8
2000 1442 20 11.4
2005 (फरवरी) 1493 17 16.16
2005 (अक्टूबर) 766 10 8.77
2010 1342 06 13.22
2015 1150 04 9.4