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सत्ता संग्राम: बांका ने दिल्‍ली को दी थी चुनौती, यहां लिमये की जीत में थी इंदिरा की हार

लोकसभा चुनाव को लेकर बांका में सियासत गर्म है। इस सीट पर कभी दिल्‍ली कर सत्‍ता को चुनौती मिली थी। तब यहां मधु लिमये की जीत में थी इंदिरा गांधी की हार छिपी थी।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 09:22 PM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 10:26 PM (IST)
सत्ता संग्राम: बांका ने दिल्‍ली को दी थी चुनौती, यहां लिमये की जीत में थी इंदिरा की हार
सत्ता संग्राम: बांका ने दिल्‍ली को दी थी चुनौती, यहां लिमये की जीत में थी इंदिरा की हार
पटना [अरविंद शर्मा]। बांका संसदीय क्षेत्र की कहानी के दो बड़े कथानक हैं। पहला मधु लिमये और दूसरा दिग्विजय सिंह। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजवादी नेता मधु लिमये को बांका ने दो बार लोकसभा भेजा था। पहली बार 1973 के उपचुनाव में और दूसरी बार 1977 के आम चुनाव में। मुकाबले में कांग्र्रेस के चंद्रशेखर सिंह थे जो बाद में मुख्यमंत्री भी बने।
इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर लिमये को हराना चाहती थी। इसकी जिम्मेवारी तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय को दी गई थी, जिन्होंने पूरी ताकत लगा दी थी। किंतु नतीजा आया तो कांग्रेस प्रत्याशी से करीब तीन गुना अधिक वोट लिमये को मिले थे। उन्हें 2.39 लाख वोट मिले। चंद्रशेखर को मात्र 95 हजार वोट से संतोष करना पड़ा था।
जाहिर है, बांका ने दिल्ली को चुनौती दी थी। खाटी समाजवादी लिमये ने केंद्र में मंत्री बनना स्वीकार नहीं किया। अपने बदले उन्होंने मधु दंडवते और जॉर्ज फर्नांडीज की सिफारिश की।
इनमें है टिकट की होड़
आज उसी बांका का प्रतिनिधित्व राजद के जय प्रकाश नारायण यादव कर रहे हैं। 2014 के चुनाव में दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी को हराकर संसद पहुंचे हैं। वोट का अंतर मात्र पांच हजार का था। इसलिए माना जा रहा है कि अबकी भी कड़ा मुकाबला होगा, किंतु टिकट को लेकर दोनों तरफ पेंच है। महागठबंधन के उम्मीदवार जय प्रकाश नारायण होंगे। लालू परिवार से वफादारी ने उन्हें आगे कर रखा है। हालांकि बेलहर के पूर्व विधायक रामदेव यादव उन्हें अपने निशाने पर ले सकते हैं।
भाकपा की ओर से भी झमेला खड़ा हो सकता है। पिछली बार भाकपा प्रत्याशी संजय कुमार ने 2.20 लाख वोट लाकर मुख्य दलों के कान खड़े कर दिए थे। गठबंधन में भाकपा से जिन दो-तीन सीटों पर दावा किया जाएगा, उसमें बांका भी है। भाकपा को अगर मना भी लिया गया तो संजय को मनाना आसान नहीं होगा। पार्टी लाइन से अलग भी जुगाड़ कर सकते हैं।
राजग में भी अभी स्पष्ट नहीं है। भाजपा में पुतुल की दावेदारी पक्की है, किंतु बांका विधायक रामनारायण मंडल भी सांसद बनना चाहते हैं। मंत्री बनने के बाद कद का विस्तार हुआ है। पुतुल के लिए भाजपा की सहानुभूति अभी भी बरकरार है। इसलिए उलट-पुलट की संभावना नहीं है। धोरैया के रहने वाले पूर्व एमएलसी संजय यादव भी दौड़ लगा रहे हैं। नरेंद्र सिंह की वापसी के बाद जदयू का दावा भी मजबूत हुआ है।
पुतुल के पति दिग्विजय सिंह यहां से जदयू के टिकट पर लगातार दो बार चुने गए थे। हालांकि बाद में निर्दलीय हो गए और उनके निधन के बाद पुतुल भी पहली बार निर्दलीय चुनी गईं। 1996 में जनता दल और 2004 में राजद के टिकट पर जीतने वाले गिरिधारी यादव अभी बेलहर से जदयू विधायक हैं। गठबंधन में अगर जदयू को सीट मिली तो गिरिधारी दावेदार हो सकते हैं। दूसरा दल भी उनपर दांव लगा सकता है। राजद सांसद के विरोध में गिरिधारी और रामदेव की दोस्ती की चर्चा सरेआम है।
बाहरी पर बांका की मेहरबानी
दिलचस्प बात है कि बांका में सक्रिय सभी प्रमुख नेता बाहर के हैं। सांसद जय प्रकाश, पुतुल, गिरिधारी और नरेंद्र का संबंध जमुई जिले से है। जाहिर है, बाहरी लोगों पर बांका की मेहरबानी का सिलसिला मधु लिमये के समय से अभी तक जारी है। यहां से जॉर्ज फर्नांडीज भी चुनाव लड़ चुके हैं। शकुंतला देवी, बीएस शर्मा, शिव चंद्रिका प्रसाद, मधु लिमये, चंद्रशेखर सिंह, मनोरमा सिंह, प्रताप सिंह, गिरिधारी यादव, दिग्विजय सिंह एवं पुतुल कुमारी सांसद हुए हैं।
2014 के महारथी और वोट
जय प्रकाश नारायण यादव : राजद : 285150
पुतुल कुमारी : भाजपा : 275006
संजय कुमार : भाकपा : 220708
नरेश प्रियदर्शी : निर्दलीय : 30814
विधानसभा क्षेत्र
कटोरिया (राजद), धोरैया (जदयू), बेलहर (जदयू), अमरपुर (जदयू), सुल्तानगंज (जदयू), बांका (भाजपा)
 

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