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इस 'बंदरिया' का बंदरों से वास्ता नहीं, ...और यहां लगता था हुस्न का बाजार

यहां न तो बंदरों का डेरा है, न ही किसी लड़की को बंदरिया कहकर चिढ़ाया जाता है, लेकिन नाम है बंदरिया गली। इसी तरह लंगूर गली का लंगूरों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। ऐसी ही गलियों में शामिल कचौड़ी गली, फुलौरी गली आदि कई और हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 21 Apr 2016 08:31 AM (IST)Updated: Fri, 22 Apr 2016 09:30 PM (IST)
इस 'बंदरिया' का बंदरों से वास्ता नहीं, ...और यहां लगता था हुस्न का बाजार

पटना [अनिल कुमार]। यहां न तो बंदरों का डेरा है, न ही किसी लड़की को बंदरिया कहकर चिढ़ाया जाता है, लेकिन नाम है बंदरिया गली। इसी तरह लंगूर गली का लंगूरों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। ऐसी ही गलियों में शामिल कचौड़ी गली, फुलौरी गली आदि कई और हैं। इन्हीं में एक में कभी हुस्न का बाजार गुलजार था। ये संकरी गलियां पटना सिटी की पहचान हैं और इनके अजीब नाम के पीछे भी इतिहास है।

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पटना सिटी की संकीर्ण गलियों के अजब-गजब नाम हैं। बनारस की तरह यहां की भी गलियां भी भूल-भुलैया वाली हैं। यहां के बाशिंदे गली-गली होते काफी दूर निकल जाते हैं। वे गलियों के नाम के पीछे का इतिहास भी बताते हैं।

फुलौरी गली

चौक थाना क्षेत्र में रहने वाले बताते हैं कि पांच दशक पूर्व यहां ढेर सारे फुलवारी थे। फुलवारी को देखने लोग दूर-दूर से जाते थे। कालांतर में फुलवारी वाली गली का छोटा नाम फुलौरी गली हो गया।

कचौड़ी गली

स्थानीय नागरिकों ने बताया कि आजादी के पूर्व यहां कचहरी लगती थी। यहां आने वाले को न्याय मिलता था। आजादी के आसपास गली के मोड़ पर कचौड़ी-जलेबी-घुघनी की तीन-चार दुकानों पर लोग खाने आते थे। धीरे-धीरे कचहरी गली का नाम कचौड़ी गली प्रचलित हो गया।

लंगूर गली

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब के निकट गली में शाह अजीमाबाद द्वारा गरीबों को लंगर खिलाया जाता था। इसके अलावा बड़े आयोजन के दौरान गली में गुरुद्वारा की ओर से लंगर चलता था। इस कारण इसका नाम लंगर गली है। कालांतर में लंगर गली का अपभ्रंश नाम लंगूर गली प्रचलित हो गया।

बारे की गली

तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब के सटे दूसरी ओर वर्षो पूर्व जौहरी घराना रहता था। इस गली में बड़े लोगों का निवास स्थान था। कालांतार में बड़े लोगों की गली की जगह इसका नाम बारे की गली हो गया।

गुरहट्टा

मोहल्लेवासियों के अनुसार इस क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष पूर्व गोरों (अग्रेजों) की हत्या हुई थी। लोगों ने गोरे की हत्या वाले मोहल्ले को गुरहट्टा के नाम से पुकारने लगे।

मच्छरहट्टा

लोगों की माने तो यहां पहले हुस्न का बाजार लगता था। तवायफें यहां मुजरा किया करती थीं। इस कारण यहां शाम की सजी महफिलों में शहर के धनाढ्य पहुंचते थे। मछली का बाजार लगता था। इस कारण यह मोहल्ला मच्छरहट्टा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

कठौतिया गली

इस गली में पहले काठ की वस्तुएं बनती थी। इसी गली में बने काठ के कंघे सिख सिर में लगाते थे। इसके अलावा काठ की खूबसूरत कठौती तथा अन्य सामान को राज्य के विभिन्न हिस्से से खरीदकर ले जाते थे। इस कारण गली का नाम कठौतिया गली पड़ा।

बंदरिया गली

लोगों की मानें तो इस गली में पुराने मकानों में बंदरों का बसेरा था। दिनभर उछल-कूद के बाद बंदर अपने घरों में आ जाते थे। इस कारण इसका नाम बंदरिया गली पड़ा।

टेढ़ी घाट

भूल-भुलैया वाले मार्ग से घाट जाने के कारण गली का नाम टेढ़ी घाट पड़ा।

जिरिया तमोली की गली

जिरिया तमोली की प्रसिद्ध पान की दुकान गली में होने से दूर-दूर से लोग पान खाने आते थे। पान की खुशबू में राजधानी समेत दूसरे जिलों से भी आते थे। यही कारण है कि जिरिया तमोली के नाम पर गली का नाम पड़ गया।

मिरचाई गली

चौक थाना क्षेत्र में स्थित मिरचाई गली में कभी मिरचाई का हाट लगता है। नाव से घाट पर भारी मात्रा में मिरचाई उतरता था। गली में काफी संख्या में मिरचाई के गोदाम थे। कालांतर में मिरचाई का कारोबार समाप्त हो गया लेकिन गली का नाम मिरचाई गली रह गया।

और भी हैं कई

पटना सिटी में ऐसी और गलियां भी हैं। इनके नाम सुनकर अचंभा होता है। लेकिन, सबके पीछे लोगों के तर्क हैं।


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