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साक्षात्कार : न्यायपालिका के साथ सामंजस्य पहली प्राथमिकता : महाधिवक्ता

बिहार सरकार के नवनियुक्त महाधिवक्ता राम बालक महतो ने कहा है कि पहली प्राथमिकता न्यायपालिका के साथ सामंजस्य की स्थापना है। टकराव की स्थिति से बचने के लिए कानून सम्मत निर्णय लिया जाएगा। सरकारी अधिकारियों को अदालत की भावनाओं से अवगत कराना होगा।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2015 10:43 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2015 11:19 AM (IST)

पटना [निर्भय सिंह]। बिहार सरकार के नवनियुक्त महाधिवक्ता राम बालक महतो के राजेंद्र नगर आवास पर वकीलों, अधिकारियों एवं परिजनों के आने-जाने का सिलसिला जारी है।

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सुबह के दस बजे से ही वरीय अधिवक्ता एवं सिविल व क्रिमनल मामलों के जानकार महतो को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। महाधिवक्ता का पद उनके लिए नया नहीं है। वे छह मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में महाधिवक्ता रह चुके हैं।

यह इतिहास शायद ही किसी अन्य प्रदेश के महाधिवक्ता के नाम रहा हो। घर के अहाते में तेघड़ा से इस बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले उनके पुत्र विरेंद्र कुमार भी बैठे हैं। कुछ अन्य विधायक भी बधाई देने पहुंचे हैं। महाधिवक्ता ने 'दैनिक जागरणÓ से विशेष बातचीत में अपनी प्राथमिकताएं गिनाईं।

प्रश्न : नई पारी में आपकी प्राथमिकता क्या होगी?

उत्तर : पहली प्राथमिकता न्यायपालिका के साथ सामंजस्य की स्थापना है। टकराव की स्थिति से बचने के लिए कानून सम्मत निर्णय लिया जाएगा। सरकारी अधिकारियों को अदालत की भावनाओं से अवगत कराना होगा। उन्हें जानकारी देनी होगी कि किसी भी फाइल को लंबे समय तक रोके रखना कदापि उचित नहीं है।

प्रश्न : सेवानिवृत्ति और अवमानना के सैकड़ों मामले लंबित हैं। इस संबंध में क्या करेंगे?

उत्तर : संबंधित विभागाध्यक्ष से विचार-विमर्श कर मामूली बाधाओं का समाधान निकाला जाएगा। संबंधित विभागों से कोर्ट द्वारा मांगे गए जवाब पर त्वरित कार्रवाई करने के लिए कहा जाएगा। कोर्ट से बार-बार समय लेने से रोका जाएगा।

प्रश्न : बिहार लिटिगेशन पॉलिसी के तहत क्यों कार्रवाई नहीं होती है?

उत्तर : यदि बिहार सरकार द्वारा लाई गई लिटिगेशन पॉलिसी पर सख्ती से कार्रवाई शुरू हुई तो बड़ी संख्या में मामलों का विभागों से ही निपटारा हो जाएगा। मामले अदालत तक नहीं आएंगे। देखना होगा कि कहां पर बाधाएं हैं। दरअसल इस लिटिगेशन पॉलिसी का उद्देश्य ही ऐसे मुकदमों के कारणों को जड़ से समाप्त करना है। यह देखना है कि कोई अनावश्यक रूप से तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं फंसा है।

प्रश्न : केसों का बंटवारा किस प्रकार से होगा?

उत्तर : वैसे वकीलों को केस की फाइल सौंपी जाएगी, जो उस विषय के जानकार हैं अथवा उस मामले की विशेषज्ञता रखते हैं। सरकारी वकीलों से उनकी कठिनाइयों के बारे में भी पूछा जाएगा। विधि पदाधिकारी को अपने केस में होमवर्क करके आना होगा। अदालत में अनुपस्थित रहने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

प्रश्न : सरकारी वकीलों की कैसी टीम बनेगी?

उत्तर : सभी वर्गों के वकीलों को रखा जाएगा, लेकिन काम में लापरवाही करने वालों को नहीं बख्शा जाएगा। इसके अलावा भी अन्य बातों पर ध्यान रखना पड़ेगा।

निर्भय सिंह,

रामबालक महतो राज्य की छह सरकारों के दौरान महाधिवक्ता की जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर चुके हैं। पहली बार वे कांग्रेसी मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे केकार्यकाल 5 अप्रैल 1985 से 11 दिसंबर 1989 के बीच महाधिवक्ता नियुक्त किए गए।

उसके बाद कांग्रेसी मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद और सत्येंद्र नारायण सिन्हा के कार्यकाल 12 अप्रैल 1990 से 1 दिसंबर 1993 तक भी वे पद पर कायम रहे। राजद सरकार में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के कार्यकाल में भी वे महाधिवक्ता रहे।

भाजपा के सहयोग से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में भी वे महाधिवक्ता रहे और जदयू के सहयोग से आज भी पद पर बने हुए हैं। अपने कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने उन्हें पद से हटाते हुए डीके सिन्हा को महाधिवक्ता नियुक्त किया था, लेकिन उन्होंने कार्यभार नहीं संभाला। मांझी के बाद सत्ता संभालते समय नीतीश ने रामबालक महतो को पुन: महाधिवक्ता बना दिया।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र ने महतो को बधाई देते हुए कहा कि राज्य सरकार ने बतौर महाधिवक्ता अनुभवी और साफ-सुथरी छवि वाले व्यक्ति का चुनाव किया है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात अधिवक्ता रामजेठमलानी, वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा, अपर महाधिवक्ता जेपी कर्ण, बिहार प्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिवक्ता संघ के संरक्षक डॉ. सदानंद पासवान जदयू नेता एवं वकील रईसूल हक सहित अनेक वकीलों ने उन्हें बधाई दी है।


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