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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: बिहार में भी हुई है चौथे खंभे की आवाज को दबाने की कोशिश

आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है। प्रेस को लोकतंत्र का चौथा खंभा माना जाता है। लेकिन इनके सामने काफी चुनौतियां हैं। आये दिन मीडिया का गला घोंटने की कोशिश की जाती है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 03 May 2017 12:38 PM (IST)Updated: Wed, 03 May 2017 10:52 PM (IST)
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: बिहार में भी हुई है चौथे खंभे की आवाज को दबाने की कोशिश
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: बिहार में भी हुई है चौथे खंभे की आवाज को दबाने की कोशिश

पटना [रवि रंजन]। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसकी स्वतंत्रता की वकालत की जाती है। जनता स्वतंत्र मीडिया की हिमायती है, लेकिन कभी-कभी यह अपराधियों को रास नहीं आता। गलत काम करने वाले हमेशा यही चाहते हैं कि कोई उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाये। इसके लिए बकायदा वे अपने बाहुबल और धनबल का भी इस्तेंमाल करते हैं।

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स्वतंत्र, निर्भिक और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले पत्रकार किसी भी धमकी से नहीं डरते हैं। हमेशा सच के साथ खड़े रहते हैं। कलम की ताकत को जनता की आवाज बनाते हैं। भारत में कई ऐसे मौके आए हैं, जब मीडिया का गला घोंटने की कोशिश हुई। स्वतंत्र व बेखौफ मीडिया को खौफजदा करने के प्रयास भी कम नहीं हुए। बिहार में पत्रकारों की हत्याएं इसी की कड़ी हैं। 

3 जनवरी 2017 को समस्तीपुर में एक हिन्दी दैनिक के पत्रकार ब्रजकिशोर ब्रजेश की बदमाशों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। पत्रकार ब्रजकिशोर शाम को सलखनी गांव स्थित अपने पिता के चिमनी ईंट-भट्ठा गए थे, तभी एक बोलेरो पर सवार अपराधियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। 

12 नवंबर 2016 को बिहार में रोहतास जिले के सासाराम में शनिवार सुबह अज्ञात बदमाशों ने हिन्दी दैनिक के पत्रकार धर्मेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। धमेंद्र सुबह अमरातालाब क्षेत्र स्थित एक दुकान पर चाय पी रहे थे, तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार तीन अपराधियों ने उन्हें गोली मार दी।

स्थानीय लोग उन्हें तुरंत इलाज के लिए सदर अस्पताल ले गए, जहां उनकी स्थिति गंभीर देखते हुए वाराणसी रेफर कर दिया गया। वाराणसी ले जाने के दौरान रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। बताया गया कि धर्मेंद्र अवैध खनन करने वाले माफियाओं के खिलाफ लिख रहे थे, इस वजह से वे उनके निशाने पर थे। बताया गया कि पत्रकार की हत्या पत्थर माफियाओं और सासाराम जेल में बंद एक कैदी के इशारे पर हुई है।

सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या 13 मई 2016 को हुई थी। ऑफिस से घर लौटते समय उनके सिर और गर्दन में गोलियां मारी गई थी। जिससे उनकी मौत हो गई। वे पिछले 24 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे थे। इनकी हत्याौ के पीछे सिवान के पूर्व बाहुबलि सांसद शहाबुद्दीन का नाम सामने आया है जो फिलहाल दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं। पुलिस के मुताबिक इस हत्याेकांड में पकड़े लोगों ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया था कि शहाबुद्दीन के करीबी लड्डन मियां ने उन्हें पत्रकार को मारने के लिए सुपारी दी थी। 

इस हत्यापकांड के पीछे की वजह एक फोटो बतायी गई है जिसमें जो अप्रैल माह 2016 की थी। इस तस्वीर में शहाबुद्दीन राजद के एक मंत्री के कंधे पर हाथ रखा हुए था। साथ में एक और नेता के साथ मिलकर यह तीनों जेल के नियमों के विरुद्ध नाश्ते-पानी का मज़ा ले रहे थे। फिलहाल इस मामले की जांच चल रही है। 

वर्ष 2016 में गया के परैया के पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की भी अपराधियों ने गोलीमार कर हत्या कर दी थी। 30 सितंबर 2015 को सीतामढ़ी में स्वतंत्र पत्रकार अजय विद्रोही की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। शहर के बसुश्री चौक के पास दो अपराधियों ने विद्रोही को दौड़ाकर गोली मार दी। गोली लगने के बाद पत्रकार को अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। वे पिछले कई वर्षों से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे थे और अपनी बेबाक टिप्पगनी के लिए जाने जाते थे। 

पत्रकारों पर हमले की बात नयी नहीं है। आये दिन असमाजिक तत्व पत्रकारों को निशाना बनाते रहते हैं। कभी खबर को कवर करने गये पत्रकारों पर हमले कर दिये जाते हैं तो कभी खबर न लिखने के लिए धमकी दी जाती है। चौथे खंभे के इन प्रहरियों को किसी तरह की विशेष सुविधा नहीं दी गई है। इसके बावजूद ये अपनी कलम को हथियार बनाकर हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहते हैं। कलम की धार ही इनकी पहचान है। 


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