Assam Assembly Election: पटना से 1400 किलोमीटर दूर 'मिनी बिहार', जहां बिहारी ही बनाते हैं सरकार
Assam Assembly Election 2021 बिहार की राजधानी पटना से करीब 1400 किलोमीटर दूर असम का एक शहर है तिनसुकिया जिसे मिनी बिहार भी कहते हैं। इस बार फिर तिनसुकिया में इतिहास दोहराया जा सकता है। बिहार के शिव शंभू ओझा तिनसुकिया से विधायक रहे थे।
पटना, बिहार ऑनलाइन डेस्क। Assam Assembly Election 2021: बिहारी जहां भी जाते हैं अपना डंका बजाते हैं। चाहे मारीशस हो या अमेरिका। भारत के अलग-अलग राज्यों में भी बिहार के लोगों ने समाज के विविध क्षेत्रों में डंका बजाया है। बिहार के व्यवसायी और शासकीय अधिकारी तो हर राज्य में अपना नाम ऊंचा कर रहे हैं। दूसरी तरफ बिहार के लोग देश के अलग-अलग राज्यों की राजनीति में भी दखल रखते हैं। असम का एक जिला है तिनसुकिया, जो पटना से करीब 14 किलोमीटर दूर है। यह जिला मिनी बिहार भी कहा जाता है। यहां बिहार के लोग चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। तिनसुकिया से बिहार के शिव शंभू ओझा विधायक रहे। उनका राज्य की राजनीति में जबरदस्त दखल था। इस बार यानी 2021 के चुनाव में तिनसुकिया में फिर से इतिहास दोहराया जा सकता है।
आरजेडी ने बिहारी महिला को बनाया है उम्मीदवार
असम की तिनसुकिया सीट से राष्ट्रीय जनता दल ने हीरा देवी चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह इस सीट से कांग्रेस के नेतृत्व वाले आठ दलों के गठबंधन की साझा उम्मीदवार हैं। हीरा देवी मूलत: बिहार के भागलपुर जिले की रहने वाली हैं। 1984 में शादी के बाद असम चली गईं। तिनसुकिया में वे एक बड़ी और सफल व्यवसायी हैं। यह सीट फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। यहां से मौजूदा विधायक मौजूदा संजोय किशन भी मैदान में हैं। उनकी चाय बागानों में अच्छी पकड़ है। पिछली बार उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार और लगातार तीन बार विधायक रहे राजेंद्र प्रसाद सिंह को हरा दिया था। बाद में राजेंद्र खुद भाजपा में शामिल हो गए। इस बार कांग्रेस ने यह सीट राजद को दे दी है। यहां राजद के लिए जीत की अच्छी संभावना हो सकती है।
आरा के शिव शंभू ओझा ने लहराया था परचम
तिनसुकिया की सीट ज्यादा समय हिंदी भाषियों के ही कब्जे में रही है। यहां से पहले विधायक राधा कृष्ण खेमका थे, जो लगातार दो बार जीते। 1985 और 1991 में यहां से कांग्रेस के शिव शंभू ओझा चुनाव जीते थे। वे असम की सरकार में मंत्री भी बने और परिवहन विभाग का जिम्मा संभाला। वे तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया के काफी करीब थे। ओझा मूलतः बिहार के भोजपुर (आरा) जिले के शाहपुर के नजदीक के एक गांव के रहने वाले थे। उनका बिहार में भी अपने परिवार से निरंतर संपर्क रहा। अपने आखिरी दिनों में भी वे गांव को नहीं भूले थे। 2013 के फरवरी महीने में वे बिहार आए थे। पटना से तिनसुकिया लौटने के अगले ही दिन उनकी हार्ट एटैक से मृत्यु हो गई।
1500 से अधिक परिवार हिंदी भाषी
तिनसुकिया में करीब 1500 परिवार ऐसे हैं, जिनकी जड़ें बिहार और यूपी से जुड़ती हैं। जिले के 1100 में से 300 गांवों में हिंदी भाषी बसते हैं। उल्फा का आतंक बढ़ने से पहले इनकी तादाद अधिक थी। इन परिवारों में ज्यादातर ऐसे हैं, जिनका अब बिहार, यूपी में कोई कनेक्शन नहीं है। यहां ऐसे बिहारी हैं, जिनकी असम में ही तीसरी या चौथी पीढ़ी हो गई। अब वे पूरी तरह असमी बन चुके हैं, लेकिन स्थानीय निवासी उन्हें बाहरी ही मानते हैं। असम में बिहारी लोगों को अक्सर क्षेत्रवाद आधारित हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है। इसकी वजह से बिहारियों की तादाद यहां घटी है। यहां बस चुके कई बिहारी नहीं चाहते कि लोग अब उन्हें बाहरी समझें।