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Bihar: पारस के मंत्री बनते ही भाजपा के बंधन से मुक्‍त हुए चिराग, अब चुनौती भी और अवसर भी

पारस को मंत्री बनाकर एक तरह से भाजपा ने चिराग को मुक्‍त कर दिया है। अब चिराग को खुद को साबित करने की चुनौती भी और खुलकर राजनीति की गुंजाइश भी। पारस को अब भाजपा के हिसाब से वैसे ही चलना होगा जैसे अब तक चिराग चलते रहे

By Vyas ChandraEdited By: Published: Wed, 07 Jul 2021 05:42 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jul 2021 10:39 PM (IST)
Bihar: पारस के मंत्री बनते ही भाजपा के बंधन से मुक्‍त हुए चिराग, अब चुनौती भी और अवसर भी
रामविलास पासवान और चिराग पासवान। फाइल फोटो

दीनानाथ साहनी, पटना। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में टूट और आंतरिक कलह पर अब तक खामोश भाजपा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) को शामिल कर चिराग पासवान को एक तरह से राजग (NDA) से भी मुक्त कर दिया है। इसके बाद भाजपा के मोह-माया में पड़े चिराग के लिए भी असमंजस की स्थिति खत्म हो गई, लेकिन उनके लिए चुनौतियां भी बढ़ गईं। गठबंधन की राजनीति के मौजूदा दौर में फिलहाल चिराग अकेले पड़ गए हैं पर उन्हें एक अवसर भी मिला है खुद को साबित करने और खुलकर राजनीति करने का। इस बीच उन्हें पार्टी सिबंल को लेकर भी चुनाव आयोग से लेकर न्यायालय तक में लंबी लड़ाई के लिए खुद को तैयार रखना होगा। इधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) में शामिल पशुपति पारस को भी अब भाजपा के हिसाब से वैसे ही चलना होगा जैसे अब तक चिराग पासवान चलते रहे।

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पासवान वोट पर नहीं पड़ने वाला खास असर

हाल-फिलहाल बिहार में कोई चुनाव नहीं होना है। ऐसे में चिराग आने वाले चुनावों के लिए लोजपा को कितना संगठित और मजबूत कर पाते हैं, यह उनकी राजनीति कौशल पर निर्भर करेगा क्योंकि राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि पारस के केंद्र में मंत्री बनने से रामविलास पासवान के समर्थकों (पासवान वोट) पर कोई खास असर नहीं पडऩे वाला है। पार्टी और परिवार में टूट से सबसे बड़े सियासी संकट का सामना कर रहे चिराग पर यह निर्भर करेगा कि ताकतवर सत्तारूढ़ दलों की सियासी दांव-पेच की काट कैसे निकाल पाते हैं। इतना ही नहीं, रामविलास पासवान की गढ़ी हुई लोजपा से जुड़े समर्पित कार्यकर्ताओं के हौसला बढ़ाने, मनोबल उठाने और समर्थकों को जोड़े रखने के लिए चिराग को बड़ी चतुराई से काम लेना होगा। ऐसा चिराग के करीबी नेताओं का भी मानना है। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि लोजपा को लेकर आखिरी फैसला तो अदालत में होगा और चुनाव आयोग के रूख के बाद चीजें तय होंगी और जो भी होगा लोजपा के संविधान के मुताबिक ही होगा।

पारस के संग चार सांसदों को तलाशना होगा नया ठौर

इधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल में पारस की नुमाइंदगी से तय माना जा रहा कि बिहार में पासवान वोटों को लेकर पारस के माध्यम से मजे की राजनीति होगी। पारस को भी संगठन को विस्तार देने पर तेजी से काम करना होगा। इसमें उन्हें सहयोगी दलों से भरपूर मदद मिलने की गुंजाइश है। लोजपा में विरासत की जो जंग छिड़ी है उसके तार जदयू से इसलिए भी जुड़े बताए जा रहे हैं, क्योंकि इसकी नींव वहीं पड़ी है, लेकिन भविष्य में वो कौन-सा मोड़ लेगी अभी नहीं कहा जा सकता क्योंकि पारस के संग चार और सांसद हैं, जिन्हें अगले लोकसभा चुनाव में ठौर तलाशना होगा।


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